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    27.07.2024 : ‘भारतीय CSR दशक पूर्ती’ के उपलक्ष में आयोजित सम्मान समारोह

    प्रकाशित तारीख: July 27, 2024
    'भारतीय CSR दशक पूर्ती' के उपलक्ष में आयोजित सम्मान समारोह

    ‘भारतीय CSR दशक पूर्ती’ के उपलक्ष में आयोजित सम्मान समारोह। 27 जुलै 2024

    श्री कैलाश सत्यार्थी, नोबेल पुरस्कार विजेता तथा बाल श्रमिकों के मुक्तिदाता

    डॉ हुजेफा खोराकीवाला, अध्यक्ष, भारतीय CSR दशक पूर्ती समारोह समिति

    डॉ भास्कर चॅटर्जी, IAS (रिटायर्ड) सह अध्यक्ष, भारतीय CSR दशक पूर्ती समारोह समिति

    समिति के सभी सम्मानित सदस्य

    भारतीय CSR एक्सीलेंस पुरस्कार विजेता

    देश के विभिन्न सार्वजनिक उद्यमों, तथा विभिन्न कंपनियों के प्रमुख एवं CSR प्रमुख

    भाइयों और बहनों,

    राजभवन में आप सभी का हार्दिक स्वागत करते हुए मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है।

    सबसे पहले भारत में ऐतिहासिक CSR कानून के कार्यान्वयन के दशक को मनाने के लिए भारतीय CSR दशक पूर्ती समारोह समिति को बधाई देता हूं।

    यह अवसर है अगले 10 वर्षों के लिए भारत में CSR का विजन दस्तावेज तैयार करने का। मुझे ख़ुशी है कि आज ‘भारतीय CSR के दस साल : अगले दस साल बेमिसाल’ पुस्तक के कव्हर का भी विमोचन हो रहा है।

    विगत दस वर्षो में, शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल विकास, पर्यावरण स्थिरता, महिला सशक्तिकरण, बाल विकास, जल, स्वच्छता जैसे विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए मै सभी संगठनों को हार्दिक बधाई देता हूं।

    यह बहुत गर्व और संतुष्टि की बात है कि डॉ. भास्कर चटर्जी, जिन्हें भारत में CSR प्रावधान का जनक माना जाता है, आज हमारे बीच उपस्थित हैं।

    उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के लिए CSR दिशानिर्देश तैयार करने और जारी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मैं उन्हें ‘लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड’ से सम्मानित किये जाने पर बधाई देता हूं।

    एक पारंपरिक कहावत है,

    “वृक्ष कबहुँ न फल भखै,
    नदी न संचय नीर।
    परमार्थ के कारने,
    साधुन धरा शरीर।”

    वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं और सरोवर (तालाब) भी अपना पानी स्वयं नहीं पीते है।

    इसी तरह सज्जन व्यक्ति परमार्थ तथा दूसरों की सेवा के लिए ही शरीर को धारण करते हैं।

    भारत में CSR नीति के कार्यान्वयन के एक दशक के दौरान, विभिन्न सार्वजनिक उद्यम तथा कॉर्पोरेटस द्वारा शिक्षा, कल्याण, पर्यावरण सेवा आदि के क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य हुआ है। इससे लाखों करोडो वंचित लोगों के जीवन में गुणात्मक सुधार आया है।

    मनुष्य जीवन ईश्वर की अद्भुत देन है। केवल मनुष्य जन्म में ही आप परोपकार कर सकते है।

    हमारे प्राचीन पुराणों में परोपकार के कई उदाहरणों का उल्लेख है।

    पुराणों में महर्षि दधीचि की दानवीरता की प्रशंसा की है। सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र के निस्वार्थ दानवीरता की भी बड़ी प्रशंसा की है।

    ‘कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी’ शब्द और CSR प्रावधान अपेक्षाकृत नए हो सकते है।

    लेकिन सामाजिक उत्तरदायित्व का मूल विचार भारतीयों के लिए नया नहीं है।

    CSR नीति नहीं होने पर भी व्यापारिक संगठन अपने सामाजिक दायित्व का निर्वाह करते आये हैं।

    जहां तक टाटा, बिरला, बजाज और कई अन्य व्यावसायिक परिवारों की बात है, इन समूहों ने अपने व्यवसायों के साथ परोपकार की शुरुआत की थी। यह उनके अस्तित्व और जीविका का अभिन्न अंग रहा है।

    भारत के हर कस्बे और शहर में महान व्यक्तियों द्वारा किए गए परोपकारी कार्यों के पदचिन्ह हैं, जैसे स्कूल्स, कॉलेजेस, धर्मशाला, लाइब्ररी, अस्पताल और यहां तक कि कब्रिस्तान भी।

    ये सभी सार्वजनिक स्थान बरसो से समाज की सेवा कर रहे हैं। उनके निर्माता ना होते हुए भी उनके द्वारा निर्मित जनसेवा कर रही है।

    आज उपस्थित सार्वजनिक उद्यम तथा कॉर्पोरेट्स में से भी कई लोग पहले से ही विभिन्न CSR गतिविधियों में लगे हुए होंगे।

    मैं यह भी जानता हूं कि कई संगठन CSR पर अनिवार्य 2 प्रतिशत खर्च से कहीं अधिक खर्च कर रहे हैं। ऐसी कंपनियां भी हैं, जो अच्छा मुनाफा ना होने के बावजूद अपनी कमाई का हिस्सा सामाजिक कार्यों में लगा रही हैं।

    अभी चार दिन पहले ही मैं आयकर दिवस समारोह में शामिल हुआ था।

    मैंने वहां कहा कि आयकर को सजा के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.. आयकर हमें राष्ट्र निर्माण में अपने योगदान के रूप में देना चाहिए।

    महाराष्ट्र और विशेष रूप से मुंबई का इतिहास व्यापारिक परिवारों द्वारा परोपकार के कार्यों के उदाहरणों से भरा हुआ है।

    मैं यह जानकर प्रभावित हुआ कि माहीम कॉजवे का निर्माण, गेट वे ऑफ इंडिया का निर्माण, जेजे हॉस्पिटल, जेजे स्कूल ऑफ आर्ट, जहांगीर आर्ट गैलरी, डेव्हिड ससून लायब्ररी और अन्य कई संस्थाओं का निर्माण दानवीर लोगों द्वारा किया गया हैं।

    यह शहर आधुनिक मुंबई के निर्माता नाना जगन्नाथ शंकरशेट का उनके परोपकार के लिए भी ऋणी है। नाना शंकरशेठ ने रेलवे की शुरुआत, मुंबई विश्वविद्यालय की स्थापना आदि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने लोगों को शमशान भूमि के लिए भी अपनी जमीन दी। आज के परिदृश्य में परोपकार की जगह कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी ने ले ली है।

    कई बार एक ही काम अलग अलग संस्थाएं करती रहती है।

    प्रभावी सामाजिक परिणामों को सुनिश्चित करने के लिए सरकार और निजी क्षेत्र एवं सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों के बीच तालमेल विकसित करने की आवश्यकता है।

    अब समय आ गया है कि हम CSR से आगे बढ़कर ISR यानी व्यक्तिगत (निजी ) सामाजिक उत्तरदायित्व – इंडिविजुअल सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी – की ओर बढ़ें।

    CSR और ISR गतिविधियों के माध्यम से युवा शक्ति को चैनलाइज करने से हमें अपने लोगों के सभी वर्गो के जीवन स्तर में सुधार करने और बेहतर भविष्य बनाने में मदद मिलेगी।

    राज्यपाल के रूप में मैं राज्य में अनुसूचित क्षेत्रों का संरक्षक हूं। दो दिन हमने पालघर जिले का दौरा किया था । हमें राज्य में आदिवासी आश्रम शालाओं की स्थिति में सुधार के लिए तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

    राज्यपाल के रूप में मैं राज्य के 28 विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति भी हूं। CSR कार्यक्रम चलाने के लिए हमें विशेष प्रोफेशनल्स की भी जरूरत है।

    मैं महाराष्ट्र के विश्वविद्यालयों से कॉर्पोरेट संगठनों और सार्वजनिक उद्यम संगठनों द्वारा CSR नीतियों के कार्यान्वयन के लिए प्रोफेशनल्स को प्रशिक्षित करने के लिए कार्यक्रमों को डिजाइन और विकसित करने का आह्वान करता हूं।

    अंत में, फिर एक बार मै CSR दशक पूर्ती समिति का अभिनंदन करता हूं। ‘CSR एक्सिलेंस पुरस्कार’ विजेताओं को बधाई देता हूं और आपके भविष्य के प्रयासों में सफलता की कामना करता हूं।

    जय हिंद। जय महाराष्ट्र।।