30.06.2024 : विधि एवं न्याय मंत्रालय, विधि मामलों के विभाग द्वारा आयोजित ‘नवीनतम आपराधिक कानून सुधार 2023’ पर सम्मेलन का समापन सत्र
विधि एवं न्याय मंत्रालय, विधि मामलों के विभाग द्वारा आयोजित ‘नवीनतम आपराधिक कानून सुधार 2023’ पर सम्मेलन का समापन सत्र। 30 जून 2024
जस्टिस श्री रमेश सिन्हा, चीफ जस्टिस, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
जस्टिस श्रीमती सुनिता अगरवाल, चीफ जस्टिस, गुजरात हाईकोर्ट
जस्टिस एन कोटिस्वर सिंह, चीफ जस्टिस, जम्मू एवं कश्मीर हाईकोर्ट तथा लद्दाख हाईकोर्ट
डॉ रिटा वसिष्ठ, सदस्य – सचिव, केन्द्रीय विधि आयोग
डॉ राजीव मणि, सचिव, विधि मामले विभाग, विधि एवं न्याय मंत्रालय, भारत सरकार
डॉ अंजू राठी राणा, अतिरिक्त सचिव, विधि मामले, विधि एवं न्याय मंत्रालय
मुंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश
अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीश
अधिवक्ता, शिक्षाविद
कानून प्रवर्तन एजेंसियों के प्रतिनिधि
सबसे पहले मैं भारत सरकार के विधि एवं न्याय मंत्रालय को ‘आपराधिक न्याय प्रणाली के प्रशासन में भारत का प्रगतिशील पथ’ इस विषय पर संगोष्ठी आयोजित करने के लिए तथा इस समापन सत्र में मुझे आमंत्रित करने के लिए धन्यवाद देता हूँ।
मुझे खुशी है कि यह सम्मेलन मुंबई में आयोजित किया जा रहा है। बॉम्बे हाई कोर्ट देश के सबसे पुराने और सबसे प्रतिष्ठित हाई कोर्टों में से एक है, जिसका उद्घाटन 14 अगस्त 1862 को हुआ था।
बॉम्बे हाई कोर्ट कानून और न्याय के क्षेत्र में बहुत महत्व रखता है। इसने कानूनी पेशे में कई दिग्गजों और अनगिनत संख्या में उच्चतम योग्यता वाले न्यायाधीशों को जन्म दिया है, जिनमें से कई ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय को सुशोभित किया है।
आज के इस सत्र में उपस्थित विभिन्न उच्च न्यायालयों के सभी माननीय मुख्य न्यायाधीशों और यहां उपस्थित प्रतिष्ठित कानूनी विशेषज्ञों का मैं हार्दिक स्वागत करता हूं।
मुझे आशा है कि आज सुबह से आयोजित विभिन्न सेशन्स में नये कानून पर सार्थक चर्चा हुई होगी।
औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार ने भारत में अपने लंबे और शोषणकारी शासन के दौरान कई कानून बनाए थे।
कुछ कानून तो सनकी प्रशासकों की मर्जी से बनाए गए, जबकि कुछ अन्य कानून सत्तारूढ़ कंपनी के लाभ को सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए थे।
ये कानून भारत के लोगों को किसी भी तरह से न्याय दिलानेवाले नहीं थे।
कुछ कानूनों का उद्देश्य भारत के संसाधनों का निरंकुश दोहन करना था तथा ब्रिटिश शासकों के खिलाफ जनता द्वारा किए जाने वाले किसी भी विद्रोह को दबाना था।
दुर्भाग्यवश, स्वतंत्रता के बाद भी अनेक दशको तक से कुछ कानून बरकरार रखे गए। ये कानून लोगों को मूल अधिकारों से वंचित कर रहे थे।
मुझे ख़ुशी है कि केंद्र सरकार ने स्वतंत्रता के अमृत काल में पुराने औपनिवेशिक आपराधिक कानूनों, यानी भारतीय दंड संहिता, 1860 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 और दंड प्रक्रिया संहिता, 1983 को निरस्त कर दिये है।
यह वास्तव में हमारे इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण है।
साथ ही भारत के राष्ट्रपति की सहमति से तीन नए कानून १. भारतीय न्याय संहिता, 2023, २. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 और ३. भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023, मंजूर किये है जो ब्रिटिश छापों के निशानों को हटाने की दिशा में एक सशक्त कदम है।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने गणतंत्र दिवस के भाषण में पंच प्रण या पांच संकल्पों की बात की थी।
उसमे से एक महत्वपूर्ण है। गुलामी की मानसिकता और निशानियों को जल्द से जल्द मिटाने और नए आत्मविश्वास के साथ महान भारत की रचना का रास्ता प्रशस्त करने का आग्रह रखा है।
इन सुधारों से न्यायपालिका बैकलॉग में कमी आने और न्यायिक प्रक्रिया को शीघ्र पूरा होने की उम्मीद है।
इससे न्यायपालिका की समग्र दक्षता बढ़ेगी और न्याय प्रदान करने में सुधार होगा।
अमेरिकी इतिहासकार और लेखक विल डुरंट ने 1930 में अपनी पुस्तक ‘द केस फॉर इंडिया’ में लिखा था:
“भारत में ब्रिटिश कानून जटिल और महंगा है। पहले भारत में साधारण पंचायतें या ग्राम समुदाय विवादों का निपटारा करते थे और व्यवस्था बनाए रखते थे। उनकी जगह अब एक ऐसी कानूनी प्रणालीने ले ली है, जो केवल वकीलों को ही समझ में आती है, जिसका संचालन धीमा है और गरीबों के लिए यह बहुत महंगी है।”
इसमे कुछ बाते वर्तमान में भी सच लगती है।
कानून बदलते समय यह जरूरी है कि हम लोगों की मानसिकता बदलें।
दुर्भाग्यवश, सरकारी दफ्तरों में, अदालतों में, तहसीलदार दफ्तरों में और कई अन्य जगहों पर यह मानसिकता देखने को मिलती है। असली बदलाव तब आएगा जब हम आम नागरिकों को सरकारी दफ्तरो में सम्मान देकर सहायता करेंगे।
कुछ महीने पहले, मैं पुणे गया था, जहाँ एक संगठन पारधी समुदाय के बच्चों की शिक्षा और कौशल विकास के लिए काम कर रहा है।
अंग्रेजों ने भारत में कई समुदायों को आपराधिक जनजाति – क्रिमिनल ट्राईब – करार दिया था।
आज भी कुछ समाज उन निशानों को लेकर जीवन यापन कर रहे है। आज भी पारधी समुदाय के लोगों का आधार कार्ड नहीं बनता। हमारे देश में कई समुदायों को अभी भी सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है।
हमें ऐसे समुदायों को समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए सकारात्मक कदम उठाने की ज़रूरत है ताकि उनके सदस्य सम्मानपूर्वक जीवन जी सकें।
भारत के कई राज्यों आदिवासी, शासको में से थे।
दुर्भाग्य से, आज आदिवासी सबसे पिछड़े लोगों में से हैं, जो समाज के हाशिये पर रहते हैं।
आज़ादी का अमृत काल तभी सार्थक होगा, जब हम आदिवासियों, हाशिए पर पड़े और पहले अपराधी माने जाने वाले समुदायों को सम्मान और सभ्य जीवन वापस दिला सकें।
बहरहाल, नये आपराधिक कानून से पुलिस और जांच एजेंसियों को स्पष्ट, अद्यतन दिशा निर्देशों और बढ़ी हुई जवाबदेही उपायों से लाभ होगा। जिससे अधिक पारदर्शिता आएगी और प्रभावी कानून प्रवर्तन होगा।
इस विषय में प्रशिक्षण कार्यक्रम और नई प्रौद्योगिकी साइबर अपराध जैसे आधुनिक अपराधों से बेहतर तरीके से निपटने में सहायता करेगी।
सबसे अहम बात ये है कि, पीड़ितों को सशक्त अधिकारों, बेहतर मुआवजा तंत्र और न्यायिक प्रक्रिया में बढ़ी हुई भागीदारी के माध्यम से अधिक सहायता होगी।
इससे यह सुनिश्चित होगा कि उनकी आवाज़ सुनी जाए और उन्हें न्याय अधिक प्रभावी ढंग से मिले।
सामान्य जन को अधिक उचित और कुशल विधि प्रणाली से लाभ होगा। न्याय प्रणाली में जागरूकता और भागीदारी बढ़ने से नागरिक सशक्त होंगे और सामुदायिक सुरक्षा बढ़ेगी।
ये सभी सुधार आधुनिकीकरण और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के पालन के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को प्रतिबिंबित करेंगे, जिससे मानवाधिकारों और न्याय के संदर्भ में भारत की वैश्विक स्थिति में सुधार होगा।
हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि जनता को परिवर्तनों के बारे में जानकारी दी जाए तथा यह भी बताया जाए कि इन परिवर्तनों से उनके अधिकारों और जिम्मेदारियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
तीनों अधिनियम सुधारों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता के प्रमाण हैं।
ये अधिनियम हमारे समाज के गरीब, हाशिए पर रह रहे और कमजोर वर्गों के लिए बेहतर सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।
इन सुधारों की सफलता सावधानीपूर्वक कार्यान्वयन, स्पष्ट दिशा-निर्देशों और निरंतर निगरानी पर निर्भर करेगी जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि कानून बिना किसी अनैच्छिक परिणाम के अपने इच्छित उद्देश्य को पूरा करे।
कुछ कानून जैसे विदेशी अधिनियम, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, गैरकानूनी सभा, नाटकीय प्रदर्शन अधिनियम आदि अभी भी किसी न किसी रूप में जीवित हैं। हमें उम्मीद है कि उपयुक्त संशोधन होंगे।
महाराष्ट्र में विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में, मैं अपने कुलपतियों से नए कानूनों के अध्ययन को पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए कहूंगा। इससे छात्र नए कानूनों से अवगत रहेंगे।
मैं कानून और न्यायपालिका मंत्रालय को मुंबई और अन्य शहरों में इस मुद्दे पर संगोष्ठी आयोजित करने के लिए धन्यवाद देता हूँ। मैं आपके इस महान मिशन में सफलता की कामना करता हूँ।
धन्यवाद।
जय हिंद। जय महाराष्ट्र।।