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    17.09.2023 : ONLINE: कविकुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय, रामटेक द्वारा ‘पाठ समीक्षा संपादन’ विषय पर आयोजित एक दिवसीय संगोष्ठी का उद्घाटन

    प्रकाशित तारीख: September 17, 2023

    ONLINE: कविकुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय, रामटेक द्वारा ‘पाठ समीक्षा संपादन’ विषय पर आयोजित एक दिवसीय संगोष्ठी का उद्घाटन। दिनांक 17 सितंबर 2023

    डॉ. पंकज चांदे, संस्थापक कुलपति, कविकुलगुरु कालिदास संस्कृत विद्यापीठ

    प्रो. मुरली मनोहर पाठक, कुलपति, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय

    प्रो. हरेराम त्रिपाठी, कुलपति, कवि कुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय

    प्रो. मधुसूदन पेन्ना, पूर्व कुलपति,

    डॉ. रामचन्द्र जोशी, कुलसचिव

    परिषद की निमंत्रक प्रोफेसर कविता होले,

    निमंत्रक प्रो. पराग जोशी

    विश्वविद्यालय के विभिन्न प्राधिकरण बोर्डों के सदस्य,

    डीन और संकाय सदस्य,

    कर्मचारी, शोधकर्ता, आमंत्रित देवियों और सज्जनों,

    आज हम बहुत महत्वपूर्ण दिन पर मिल रहे हैं।

    आज ही के दिन, 75 साल पहले, हैदराबाद और मराठवाड़ा, निज़ाम संस्थान से मुक्त हुए थे और भारत का हिस्सा बने थे।

    आज का यह दिन हमारे जन प्रिय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का जन्मदिन भी है।

    कल के दिन, कविकुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय अपने स्थापना की २६ वी वर्षगांठ मना रहा है।

    विश्वविद्यालय द्वारा निर्मित ‘संशोधक छात्र भवन’ (रिसर्च स्कॉलर होस्टल) तथा ‘कुलगुरु निवास’ के लोकार्पण समारोह में स्वयं उपस्थित रहने स्वीकृति दी थी, लेकिन समय के अभाव के कारण उपस्थित नहीं हो सका। मैं चाहता था कार्यक्रम के साथ सभी अधिकारियों व छात्रों से भी मुलाकात करने का अवसर मिल जाता।

    संशोधक छात्र भवन निर्माण से संस्कृत में अनुसंधान करने हेतू विभिन्न प्रदेशों, तथा देशों से विश्वविद्यालय में आनेवाले छात्रों को बहुत सुविधा होगी। इसके लिये मै विश्वविद्यालय का हार्दिक अभिनंदन करता हुं।

    आज कवि कुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय के संस्कृत भाषा और साहित्य विभाग द्वारा ‘पाठ्य आलोचना’ पर एक दिवसीय संगोष्ठी का भी आयोजन किया जा रहा है।

    हमने पढ़ा था कि संत एकनाथ महाराज ने ज्ञानेश्वरी के विभिन्न पाठ भेद का लगभग 250 वर्षों के बाद शुद्धिकरण किया था।

    मैं आशा करता हूं कि आज की संगोष्ठी में भारत में पाठ्य आलोचना, महाभारत में पाठ्य आलोचना, संस्कृत और अन्य भाषाओं में पांडुलिपि अध्ययन और सॉफ्टवेयर भाषाओं के उपयोग पर चर्चा निश्चित रूप से शिक्षकों, छात्रों और शोधकर्ताओं को समृद्ध करेगी।

    इस अवसर पर मै विश्वविद्यालय को, कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी जी को, तथा आयोजन कर्ता प्रो कविता होले और प्रो पराग जोशी का विशेष रूप से हार्दिक अभिनंदन करता हुं।

    मैं अक्सर विश्वविद्यालयों से कहता हूं कि उन्हें समाज से अलग होकर काम नहीं करना चाहिए।

    विश्वविद्यालय समाज और देश का अभिन्न अंग हैं। उन्हें लोगों के बीच और लोगों के हित के लिए काम करना चाहिए।

    इस पृष्ठभूमि में, महिलाओं को सिलाई मशीन देकर, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए विश्वविद्यालय का आउटरीच कार्यक्रम, वास्तव में सराहनीय है।

    छात्र-छात्राओ,

    कई भाषाओं की जननी संस्कृत भारत की विरासत में गहराई से निहित है, यह दुनिया की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक है।

    सदियों से संस्कृत ने हिमालय के पहाड़ी रास्तों को पार किया है। इसने सप्त सिंधु को पार कर लिया है और इस प्रक्रिया में इसने हमारी संस्कृति को आकार दिया है।

    विज्ञान और प्रौद्योगिकी के संदर्भ में, संस्कृत ग्रंथों में बहुत कुछ समाहित है।

    वैदिक गणित, संस्कृत में उपलब्ध साहित्य का एक हिस्सा है, जिसमें त्रिकोणमिति, बीजगणित और खगोल विज्ञान शामिल है।

    यह उस चीज़ का स्रोत है जिसे आज हम अंकों की अरबी प्रणाली कहते हैं।

    आर्यभट्ट की शून्य की अवधारणा वैदिक गणित का आविष्कार रही है।

    प्राचीन भारतीय गणित ने हमें पृथ्वी और अन्य खगोलीय पिंडों का आकार निर्धारित करने का सूत्र भी दिया।

    यूरोप के पुनर्जागरण से बहुत पहले स्वास्थ्य चिकित्सा संस्कृत साहित्य का एक हिस्सा थी।

    हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारे देश में सुश्रुत और चरक जैसे वैद्य राज हुए है, जिनकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गिनती होती है।

    इसलिए मेरा दृढ़ता से मानना है कि हमारे संस्कृत संस्थानों को अलग-थलग रहकर काम नहीं करना चाहिए।

    इसे सभी विश्वविद्यालयों, आईआईटी, एम्स जैसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थानों के साथ भी काम करना चाहिए।

    अक्सर, संस्कृत को देवताओं की भाषा कहा जाता था। इस धारणा को दूर कर इसे मनुष्यों की भाषा के रूप में प्रचारित करने की आवश्यकता है।

    यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों की तरह, जिन्हें मूर्त विरासत कहा जाता है, संस्कृत भाषा अमूर्त विश्व धरोहर है, जो भारतीय उपमहाद्वीप की कई भाषाओं की जननी है।

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने लोगों से संस्कृत भाषा को संजोने और संरक्षित करने का आह्वान किया है। उन्होंने यह भी कहा कि संस्कृत ज्ञान के पोषण और देश की एकता को मजबूत करने में मदद करती है।

    मेरा मानना है कि शैक्षणिक संस्थानों के साथ सहयोग, न केवल सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देंगे, बल्कि अनुसंधान को भी सक्षम बनाएंगे, जिससे विज्ञान, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा और साहित्य के क्षेत्र में संस्कृत की पूरी क्षमता का पता चलेगा।

    इसके अलावा, संस्कृत साहित्य हमारी समृद्ध साहित्यिक परंपरा के प्रमाण के रूप में खड़ा है। महाकवि कालिदास ने स्वयं ऐसा अद्भुत साहित्य निर्माण किया है, जो कालजयी विश्व धरोहर है। इन कालजयी क्लासिक्स में गहराई से जाकर, हम मानवीय विचार और अभिव्यक्ति के नए आयामों को उजागर कर सकते हैं।

    तकनीकी प्रगति के इस युग में, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और मशीन लर्निंग (एमएल) संस्कृत सहित सभी भाषाओं में सीखने और अनुसंधान को बढ़ाने के लिए शक्तिशाली उपकरण के रूप में उभरे हैं।

    ये प्रौद्योगिकियां बुद्धिमान भाषा प्रसंस्करण उपकरणों के विकास में सहायता कर सकती हैं, जिससे संस्कृत ग्रंथों की गहरी समझ और विश्लेषण की सुविधा मिल सकती है।

    राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने और संरक्षित करने के महत्व को रेखांकित करती है।

    आपके विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के रूप में, मैं संस्कृत शिक्षा को आगे बढ़ाने के आपके प्रयासों का हृदय पूर्वक समर्थन करता हूं। आइए हम इस प्राचीन भाषा की अपार क्षमता को उजागर करने और इसके ज्ञान को हमारे आधुनिक समाज के ताने-बाने में पिरोने के लिए मिलकर काम करें।

    इन्हीं शब्दों के साथ मैं विश्वविद्यालय को उसके स्थापना दिवस की बधाई देता हूं और आज की संगोष्ठी में आप सभी के सार्थक विचार-विमर्श की कामना करता हूं।

    धन्यवाद

    जय हिंद। जय महाराष्ट्र।।
    जयतु संस्कृतम्। जयतु भारतं।