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    25.03.2023 : करोना महामारी काल में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले करोना वीरोंको ‘स्पिरिट ऑफ मुंबई’ पुरस्कार प्रदान समारोह, श्री षण्मुखानंद चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती सभागृह, मुंबई

    प्रकाशित तारीख: March 25, 2023

    करोना महामारी काल में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले करोना वीरोंको ‘स्पिरिट ऑफ मुंबई’ पुरस्कार प्रदान समारोह, श्री षण्मुखानंद चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती सभागृह, मुंबई

    डॉ व्ही. शंकर, अध्यक्ष, श्री षण्मुखानंद फाईन आर्ट और संगीत सभा एवं अध्यक्ष, साऊथ इंडियन एज्युकेशन सोसायटी

    लोकसभा में जिनके साथ काम करने का अवसर मिला ऐसे सांसद मित्र श्री राहुल शेवाले,

    सभा के उपाध्यक्ष डॉ व्ही रंगराज,

    श्री एम व्ही रामनारायण, उपाध्यक्ष, साऊथ इंडियन एजुकेशन सोसायटी

    मुंबई महानगरपालिका आयुक्त श्री इकबाल सिंह चहल,

    आज के ‘द स्पिरिट ऑफ मुंबई अवॉर्ड्स’ पुरस्कार प्राप्त करने वाले मुंबई के नायक

    (श्री किरण दिघावकर, डॉ अनिल पाचनेकर, श्री शाहनवाज शेख, श्री पास्कल सलढाणा, श्री दत्तात्रय सावंत)

    आज सम्मानित हो रहे एनजीओ ‘खाना चाहिए’ और ‘भजन समाज’ घाटकोपर के पदाधिकारी गण

    सभी आमंत्रित बेहेनों और भाइयों

    मुंबई के दो प्रमुख संस्थान – श्री षण्मुखानंद फाईन आर्टस् और संगीत सभा तथा ‘साउथ इंडियन एजुकेशन सोसायटी’ के तत्वावधान में आयोजित इस शानदार कोरोना वीरोंके सम्मान समारोह में आप सबके बीच उपस्थित होना मेरे लिए बहुत ख़ुशी की बात है।

    सर्व प्रथम आज यहाँ पर सम्मानित सभी कोरोना वीरों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं।

    आप सब भाग्यशाली है कि आपका सम्मान श्री षण्मुखानंद सभा तथा साऊथ इंडियन एजुकेशन सोसायटी जैसे विख्यात संस्थाओं के तत्वावधान में हो रहा है।

    दोनों संस्थाओं का मुंबई के सामाजिक, सांस्कृतिक तथा शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान रहा है।

    इस आयोजन के लिए मैं दोनों संस्थाओं के अध्यक्ष डॉ व्ही. शंकर जी को धन्यवाद देता हूँ, अभिनंदन करता हूँ।

    मुंबई अनेक रुप से एक अद्भुत महानगर है।

    लोग इसे माया नगरी कहते है, पर मै इसे मानवता की नगरी मानता हूँ।

    यहाँ भारत के हर प्रदेश से, देश के हर कोने से लोग आते है, मेहनत करके अपनी रोजी-रोटी ईमानदारी से कमाते है। और फिर एक दिन वे इस शहर के हो जाते है।

    उन्नीसवी सदी के आरंभ में जिस मुंबई महानगर की आबादी मात्र दो – ढाई लाख थी, आज इक्कीसवीं सदी में डेढ करोड से भी ऊपर हो चुकी है।

    परस्पर सहयोग और सहकार से ही यह शहर बना है, बढा है और फला-फूला भी है।

    एक दुसरे को मदद करना मुंबई के डीएनए में है। लोकल ट्रेन में एक बेंच पर पहले से तीन लोग बैठे हो, और चौथा व्यक्ति ट्रेन में चढ गया, तो लोग अपनी जगह कम करके उसे बैठने को जगह देते है।

    यहाँ लोग ये नहीं देखते कि सामने वाला व्यक्ति किस प्रदेश से आया है, वह कौन सी भाषा बोलता है। यहां जात पात तो कोई किसी से पूछता ही नहीं, ना ही पूछता है किसी का धर्म।

    मुझे संत कबीर का दोहा याद आता है।

    जाति पांति पूछे नहिं कोई। हरि को भजै सो हरि का होई।

    बस, एक दुसरे की मदद करना, एक दूसरे के सुख दुख बांटना, एक दुसरे के त्योहार मनाना, यही इस शहर का करम और धरम रहा है।

    और इसलिए, मुंबई पर चाहे शहर पर आतंकी हमला हो, या फिर २६ जुलाई २००५ जैसी भारी बाढ़ हो, या और भी कोई हादसा हो, मुंबईकर एक दुसरे के मदद के लिए हमेशा आगे आये, और एक दुसरों की सहायता की। खुद भी संभल जाते और दूसरों को भी संभल प्रदान कर देते है और इस प्रकार देश के आर्थिक इंजन को कभी रुकने नहीं देते।

    कितना काम करते है इस महानगर के लोग; मैं तो सचमुच हैरत में पडता हूँ। सुबह से लेकर देर रात तक मुंबई कभी सोती भी या नहीं।

    यही है मुंबई का स्पिरिट, जो करोना काल में फिर एक बार लोगों ने जगाया।

    देश के अन्य कई शहरों की अपेक्षा में मुंबई महानगर का एरिया बहुत छोटा है।

    एरिया की बात करे तो, मुंबई से नागपुर, छत्रपती संभाजी नगर, पुणे ये जिले काफी बडे है। लेकिन यहाँ के लोगों का दिल बहुत बडा है।

    यहाँ लोकसंख्या की घनता यानी ‘डेन्सिटी ऑफ पॉपुलेशन’ देश से कई गुना ज्यादा है।

    धारावी, कालबादेवी जैसे इलाकों में १ स्क्वेअर किलोमीटर क्षेत्र में एक लाख तक लोग रहते है।

    कोरोना महामारी के काल में येही सबसे बड़ी समस्या थी।

    ऐसे भीड भरी धारावी में श्री किरण दिघावकर जी ने सुंदर काम किया।

    ऐसेही विभिन्न जगहो पर डॉ अनिल पाचनेकर जी, शाहनवाज शेख, पास्कल सलढाणा और दत्तात्रय सावंत जी ने अनुपम कार्य किया और वे सभी हमारी प्रशंसा के पात्र है।

    जब हम पिछले दो वर्षों को याद करते हैं तो हमें स्मरण होता है कि कैसे देश में भय का माहौल बन गया था। रोजी रोटी कमाने वालों के लिये जीवन कितना कठिन बन गया था।

    सरकार के सामने, एक ओर नागरिकों के जीवन की रक्षा की चुनौती थी, तो दूसरी तरफ अर्थव्यवस्था की चिंता भी करनी थी।

    अर्थव्यवस्था को संभालने के साथ ही सरकार ने इस बात का भी ध्यान रखा कि किसी गरीब को भूखा न रहना पड़े।

    मैं स्वयं एक किसान का बेटा हूँ, और मानता हूं कि देश के सबसे बडे करोना वीर हमारे किसान भाई थे। वे खेतों में काम नहीं करते तो शायद ही हमारी थाली में रोज खाना मिल पाता।

    ऐसे कठिन समय में मुंबई के दान वीर लोग, यहाँ की हजारो सेवा भावी संस्थाए, हाऊसिंग सोसायटीज, प्राणी प्रेमी संगठन सामने आये और सभी ने मिलकर मनुष्य मात्र तथा अबोल जीवों के खाने की और इलाज की व्यवस्था की।

    ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना’ के माध्यम से ८ महीनों तक ८० करोड़ लोगों को ५ किलो प्रतिमाह अतिरिक्त अनाज निशुल्क सुनिश्चित किया गया। सरकार ने प्रवासी श्रमिकों, कामगारों और अपने घर से दूर रहने वाले लोगों की भी चिंता की। वन नेशन-वन राशन कार्ड की सुविधा देने के साथ ही सरकार ने उन्हें निशुल्क अनाज मुहैया कराया और उनके लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलवाईं।

    हमारे शास्त्रों में कहा गया है – “कृतम् मे दक्षिणे हस्ते, जयो मे सव्य आहितः” अर्थात, हमारे एक हाथ में कर्तव्य होता है तो दूसरे हाथ में सफलता होती है।

    कोरोना महामारी के समय में, जब दुनिया का प्रत्येक व्यक्ति, हर देश इससे प्रभावित हुआ, लेकिन भारत एक नए सामर्थ्य के साथ दुनिया के सामने उभर कर आया है।

    मुझे संतोष है कि हमारी केंद्र सरकार और प्रदेश सरकार के समय पर लिए गए सटीक फैसलों से लाखों देशवासीयों का जीवन बचा है। एक गम्भीर संकट को हमने अपने सामूहिक प्रयासों से न केवल परास्त किया अपितु उसे एक इष्टापत्ती में तब्दील कर दिया।

    इस दौरान भारत ने बहुत ही कम समय में २२०० से अधिक प्रयोगशालाओं का नेटवर्क बनाकर, हजारों वेंटिलेटर्स का निर्माण करके, पीपीई किट से लेकर टेस्ट किट बनाने तक में आत्मनिर्भरता हासिल करके अपनी वैज्ञानिक क्षमता, अपनी तकनीकी दक्षता और अपने मजबूत स्टार्ट-अप इकोसिस्टम का भी परिचय दिया है।

    हमारे यहा कोविशील्ड, कोवॅक्सीन जैसी वैक्सीन बने और यह और भी गर्व की बात है कि भारत ने दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चलाया।

    विश्व के अनेक देशों को भारत ने कोरोना वैक्सीन की लाखों खुराक उपलब्ध कराई हैं। भारत के इस कार्य की विश्व भर में प्रशंसा हुई।

    भारतीयों ने व्यक्ति, परिवार और एक राष्ट्र के रूप में बहुत कुछ सीखा और सहा है।

    हमें हमेशा दूसरों के लिए निस्वार्थ भाव से काम करना चाहिए।

    एक राष्ट्र सिर्फ मिट्टी, पानी और पत्थर नहीं होता है, बल्कि एक राष्ट्र ‘हम लोग’ के लिए खड़ा होता है।

    भारत में इसी भावना के साथ कोरोना से लड़ाई लड़ी गई है। इस भावना की मिसाल मुंबई ने देश के सामने रखी।

    आज के दिन हम याद करे ऊन डॉक्टरों, नर्सों, पैरा मेडिकल स्टाफ, एंबुलेंस चालकों, आशा कार्यकर्ताओं, सफाई कर्मचारियों, पुलिस और अन्य लोगों को जो अग्रिम पंक्ति में आकर महामारी के साथ लडे।

    जिन्होंने दूसरों को बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाली। जिन्होंने अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के ऊपर मानवता के प्रति अपने कर्तव्य को तरजीह दी।

    उनमें से कुछ अपने घर भी नहीं लौटे क्योंकि उन्होंने वायरस के खिलाफ लड़ाई में अपनी जान गंवा दी।

    आज आप सबका अभिनंदन करते समय उन सब अनाम वीरोंको याद करता हूँ और उनके परिजनों के कल्याण के लिए प्रार्थना करता हूँ।

    मुंबई का स्पिरिट पुरे भारत का स्पिरिट बने और हमारा देश विश्वगुरू बने इस अपेक्षा के साथ एक बार फिरसे द स्पिरिट ऑफ मुंबई पुरस्कार विजेताओं का हार्दिक अभिनंदन करता हूँ और डॉ व्ही शंकर को इस आयोजन के लिए बधाई देता हूँ।

    जय हिंद । जय महाराष्ट्र ।।