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    23.02.2024 : महाराष्ट्र स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय, नासिक का 23 वां दीक्षांत समारोह

    प्रकाशित तारीख: February 23, 2024

    महाराष्ट्र स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय, नासिक का 23 वां दीक्षांत समारोह । 23 फरवरी 2024

    श्री हसन मुश्रीफ, प्रति कुलपति, महाराष्ट्र स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय तथा मंत्री, मेडिकल एजुकेशन

    डॉ नितीन गंगने, कुलपति, K L E अकादमी ऑफ हायर एजुकेशन एंड रिसर्च, बेलगाम,

    लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. माधुरी कानिटकर, PVSM, AVSM, VSM, कुलपति, महाराष्ट्र स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय

    डॉ. मिलिंद निकुंब, प्रो वाइस चांसलर

    डॉ. राजेंद्र बंगाल, रजिस्ट्रार,

    डॉ. संदीप कडु, परीक्षा नियंत्रक

    अधिसभा सदस्य, प्रबंधन परिषद तथा विद्वत परिषद के सम्मानित सदस्य

    डीन और वरिष्ठ प्रोफेसर

    सभी स्नातक छात्र छात्राएं

    आज के इस यादगार अवसर पर, अपनी डिग्री प्राप्त कर रहे हैं, ऐसे सभी स्नातक छात्र छात्राओं का मै हार्दिक अभिनंदन करता हूं।

    यह अत्याधिक प्रसन्नता की बात है कि डिग्री प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों में छात्राओं की संख्या निरंतर बढ रही है।

    पदक विजेता छात्र तथा पीएच डी उपाधि प्राप्तकर्ता विशेष बधाई के हकदार है क्योंकि इनसे प्रेरणा लेकर अन्य छात्र छात्राएं भी आगे बढ़ेंगे।

    प्यारे विद्यार्थियों, दीक्षांत समारोह के अवसर पर मै आप के माता-पिता का अभिनंदन करता हुं।

    मैं महाराष्ट्र राज्य स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों और यहां की पूरी टीम को भी बधाई देता हूं, जिनकी कड़ी मेहनत के फल स्वरुप आज आप अपने लक्ष्य को हासिल कर पाए हैं।

    इस विश्वविद्यालय की कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. माधुरी कानिटकर ने सशस्त्र बल मेडिकल विंग में लंबे समय से बहुत विशिष्टता के साथ देश सेवा की है। उन्हे भी मै आज के इस अवसर पर बधाई देता हू।

    छब्बीस वर्ष पहले, शुरू किये गये इस विश्वविद्यालय ने मेडिकल शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में बहुत सराहनीय कार्य किया है।

    यह बड़े गर्व और संतुष्टि की बात है कि विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र, डॉक्टर्स और स्पेशालिस्ट के रूप में देश विदेश में महत्वपूर्ण पदों पर विराजमान हैं।

    मित्रो

    भारत में मानव स्वास्थ्य पर काफी शोध और चिंतन हुआ है।

    महाकवि कालिदास ने शिव – पार्वती संवाद में एक महत्वपूर्ण उक्ति लिखी है –

    ‘शरीरम आद्यम खलु धर्म साधनम’

    जिसका अर्थ शरीर ही धर्म की साधना का प्रमुख साधन है।

    वैदिक संहिताओं में मानव शरीर को स्वस्थ तथा निरोग रहने के बारे में सलाह दी गयी है।

    अथर्व वेद में रोग, रोगों के कारणो, उनके निवारण के उपायों, रोग नाशक औषधियों एवं वनस्पतियों, तथा रोग दूर करने वाले वैद्यो की विस्तृत चर्चा की है।वेदो में मनोवैज्ञानिक चिकित्सा के संकेत भी मिलते है।

    ग्रीस, मिस्र और अन्य पुरानी सभ्यताओं को छोड़कर, किसी भी अन्य सभ्यता में मानव स्वास्थ्य और कल्याण पर उतना शोध नहीं किया गया है, जितना भारत में हुआ है।

    इस महान विरासत के प्राप्तकर्ता के रूप में, हमें आधुनिक चिकित्सा और अतीत में किए गए शोध के बीच एक अच्छा संतुलन बनाना चाहिए।

    आज आप अपने जीवन के एक नए चरण में प्रवेश कर रहे हैं।

    वर्ष 2047 में, जब भारत दुनिया का एक विकसित राष्ट्र बन कर विश्व में उभरेगा, तब आप में से कई लोग अपने प्रोफेशनल करियर के शिखर पर होंगे।

    लेकिन, 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने की संभावना इस बात पर निर्भर करती है कि हम अपनी अर्थव्यवस्था कैसे विकसित करते हैं। उससे भी महत्वपूर्ण बात है कि, हम अपने शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों को कैसे विकसित करते हैं।

    विकसित भारत का लक्ष्य तब तक अधूरा रहेगा जब तक हम सभी के लिए – चाहे व्यक्ति शहरों में रहे या गांव में – स्वास्थ्य समानता नहीं लाएंगे।

    भारत में स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में ग्रामीण-शहरी विभाजन विशेष रूप से तीव्र है। चुनौती इस विभाजन को पाटने की है।

    पिछले दो दशकों के दौरान, भारत चिकित्सा नवाचार और प्रतिभा के केंद्र के रूप में उभरा है। सबसे कम समय में कोविड वैक्सीन के विकास ने देश को दुनिया का सम्मान दिलाया है।

    हमारे कुछ शहर जैसे मुंबई, नागपुर, दिल्ली, हैदराबाद, बैंगलोर, चेन्नई स्वास्थ्य चिकित्सा उत्कृष्टता के केंद्र के रूप में उभरे हैं।

    कई देशों के लिए भारत गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल के ‘मेडिकल टूरीजम’ डेस्टिनेशन के रूप में उभरा है।

    दूसरी ओर, हमारे पास ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में लोग हैं जिनके लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल समान रूप से उपलब्ध नहीं है।

    भारत का सबसे बड़ा लाभ इसका जनसांख्यिकीय लाभांश है।

    लगभग 1.4 अरब लोगों की आबादी के साथ, भारत 29 वर्ष की औसत आयु के साथ सबसे युवा देशों में से एक है।

    हमारे पास दुनिया को सर्वश्रेष्ठ डॉक्टर, सर्वश्रेष्ठ नर्सें और सर्वश्रेष्ठ पैरामेडिकल स्टाफ उपलब्ध कराने की क्षमता है।

    लेकिन, हमारे सामने कई चुनौतियां भी हैं।

    भारत को विश्व की मधुमेह राजधानी होने का संदिग्ध गौरव प्राप्त है।

    देश में दस करोड़ से अधिक मधुमेह रोगी और साधे तेरा करोड़ से अधिक प्रि – डाईबेटिक लोग हैं।

    कार्डियो वैस्कुलर रोग मृत्यु दर में हम शीर्ष स्थान पर हैं।

    वर्ष 2040 तक कैंसर की घटनाओं में 57.5 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है। हमें चाहिए कि हमारे विश्वविद्यालय इन चुनौतियों से निपटने के लिए अनुसंधान करें।

    दीर्घकालिक बीमारी के बोझ से बचने के लिए सबसे अच्छा तरीका निवारक स्वास्थ्य देखभाल होनी चाहिये है।

    भारत ने दुनिया को योग दिया है। हमें बीमारियों से बचाव के लिए योग की शक्ति का उपयोग करने की आवश्यकता है।

    आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस निवारक स्वास्थ्य देखभाल में डायग्नोसिस के साथ इलाज में एक परिवर्तनकारी भूमिका निभाने जा रहा है। इससे बीमारियों का निदान आसान हो जायेगा। चुनौती है उपचार के साथ लोगों तक पहुंचने की।

    इस उद्देश्य के लिए हमें अपने सार्वजनिक अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों को मजबूत करने की आवश्यकता है। हमें ऐसे डॉक्टरों की भी जरूरत है जो लाखों गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा करने को तैयार हों।

    मेडिकल शिक्षा सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक रही है।

    पिछले 10 वर्षो में देश में सरकारी मेडिकल कॉलेज की संख्या 145 से बढ़कर 260 हो गयी है।

    लेकिन, भारत में डॉक्टर-से-मरीज अनुपात बेहद कम बना हुआ है। जो प्रति 1,000 लोगों पर केवल 0.7 डॉक्टर है।

    इसकी तुलना WHO के प्रति 1,000 लोगों पर 2.5 डॉक्टरों के औसत से की जाती है।

    स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय को देश में डॉक्टरों और नर्सों की संख्या बढ़ाने के लिए सुझाव देने चाहिए।

    इसकी विशेष रूप से आवश्यकता इसलिये है, क्योंकि, जर्मनी, अमेरिका जैसे देश पहले से ही अपनी नर्सों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए भारत की ओर देख रहे हैं।

    माननीय प्रधान मंत्री ने मेडिकल पाठ्यक्रमों को हिन्दी, मराठी तथा अन्य प्रादेशिक भारतीय भाषाओं में प्रदान करने का भी आह्वान किया है।

    मुझे विश्वास है कि महाराष्ट्र में जल्द ही मराठी में MBBS कार्यक्रम होगा। इससे लाखों विद्यार्थी जहां अपनी भाषा में पढ़ाई कर सकेंगे, वहीं उनके लिए अवसरों के भी अनेक द्वार खुलेंगे।

    चिकित्सा, सर्जरी, आयुर्वेद, होम्योपैथी, यूनानी और सिद्ध के क्षेत्र में शिक्षकों और शोधकर्ताओं के रूप में, इस विश्वविद्यालय के पास गुणवत्तापूर्ण डॉक्टर तैयार करने की कुंजी है जो महाराष्ट्र और उसके बाहर स्वास्थ्य देखभाल के भविष्य को आकार देंगे।

    सभी स्नातको से मेरा आग्रह है कि मरीजों के साथ विनम्र संवाद होना चाहिए।

    विश्वविद्यालय के भीतर अनुसंधान पहल के लिए पर्याप्त संसाधन और धन उपलब्ध कराना महत्वपूर्ण है।

    हमें प्रोफेसरों और शोधकर्ताओं को ऐसे अनुसंधान और नवीन परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा जो गंभीर स्वास्थ्य देखभाल चुनौतियों का समाधान करें।

    राष्ट्रीय शिक्षा नीति शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देती है।

    हमें अनुसंधान क्षमताओं का विस्तार करने और ज्ञान के आदान-प्रदान के लिए अंतरराष्ट्रीय चिकित्सा संस्थानों के साथ साझेदारी को बढ़ावा देना चाहिए।

    भारत में वरिष्ठ नागरिकों की बढ़ती जनसंख्या के साथ, विशेष वृद्धावस्था देखभाल सुविधाएं विकसित करना जरूरी है।

    अनुमान है कि 2050 तक भारत में लगभग 350 मिलियन यानी 35 करोड़ बुजुर्ग लोग होंगे। वृद्धावस्था चिकित्सा में स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों को तैयार करने और बुजुर्ग मरीजों की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप बुनियादी ढांचे का निर्माण करने की आवश्यकता है।

    आयुर्वेद और आयुष की अन्य शाखाओं जैसे यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी में हमें विशिष्ट लाभ है। हमारा प्रयास होना चाहिए कि हम भारत में आयुर्वेद और अन्य आयुष विषयों में डिग्री और स्नातकोत्तर कार्यक्रमों के लिए विदेशी छात्रों को भी आकर्षित करें।

    मुझे आशा है उपाधि प्राप्त युवा सत्य, पवित्रता और निःस्वार्थता से सुसज्जित होकर एक चिकित्सक के रूप में समाज का एक बहुत ही जिम्मेदार और सम्मानित हिस्सा होंगे।

    मैं सभी स्नातको का हार्दिक अभिनंदन करता हूं और विश्वविद्यालय को आगे की यात्रा के लिए शुभकामनाएं देता हूं।

    धन्यवाद।
    जय हिन्द। जय महाराष्ट्र।।