21.04.2023 : रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन मुंबई शाखा के शताब्दी समारोह का उदघाटन, स्थल : रंगशारदा ऑडिटोरीअम, बांद्रा, मुंबई
रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन मुंबई शाखा के शताब्दी समारोह का उदघाटन
परम श्रद्धेय स्वामी गौतमानंदजी महाराज, उपाध्यक्ष, रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन, बेलूर मठ
श्रद्धेय स्वामी सुवीरानंदजी महाराज, महासचिव, बेलूर मठ
स्वामी सत्यदेवानंदजी महाराज, अध्यक्ष, रामकृष्ण मिशन, मुंबई
स्वामी मुक्तिदानंदजी महाराज, ट्रस्टी, रामकृष्ण मिशन, बेलूर मठ और अध्यक्ष रामकृष्ण आश्रम, मैसुरु
स्वामी सर्वलोकानंदजी महाराज, अध्यक्ष रामकृष्ण मठ व मिशन, नई दिल्ली
श्री राकेश पुरी, प्रबंधन समिति सदस्य, रामकृष्ण मिशन, मुंबई
रामकृष्ण मठ और मिशन के सभी श्रद्धेय स्वामीजी,
सेवाभावी स्वयंसेवक
विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधी,
बहनों और भाइयों,
सबसे पहले, स्वामी रामकृष्ण परमहंस, माँ शारदा और स्वामी विवेकानंद के पावन चरणोंमें शत शत नमन करता हूँ।
स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित रामकृष्ण मिशन मुंबई शाखा के शताब्दी समारोह में उपस्थित होने का हमें अवसर दिया इसलिये परमात्मा ईश्वर को वंदन करता हूँ। आप सभी को इस ऐतिहासिक समारोह के साथ जुड़ने के लिए बधाई देता हूं।
आज के समारोह के लिए खास बेलूर मठ, चेन्नई, दिल्ली, मैसुरु तथा अन्य रामकृष्ण मिशन शाखाओं से आये सभी श्रद्धेय स्वामीजी का स्वागत करता हूँ तथा उन्हे प्रणाम करता हूं।
दुनिया में कई आध्यात्मिक और सेवा संगठन हैं जो ईश्वरीय संदेश के प्रचार प्रसार के लिए समर्पित हैं।
लेकिन, रामकृष्ण मठ और मिशन एक अनूठा संगठन है, जिसने आध्यात्मिक विचार और मानवता कि निःस्वार्थ सेवा के बीच एक सही संतुलन बनाया है।
आज भारत में रामकृष्ण मिशन की ३५० शाखाएं और देश के बाहर १२५ शाखाएं है।
‘रामकृष्ण मिशन’ यह सही मायने में स्वामी विवेकानंद का पूरे विश्व के लिए सबसे बड़ा उपहार है, ऐसा मै मानता हूं।
‘आत्मनो मोक्षार्थम…. जगत हिताय च’ यह रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन का मार्गदर्शक सिद्धांत रहा है।
इस आदर्श के अनुरूप, रामकृष्ण मिशन अध्यात्मिक शिक्षा के साथ सामान्य शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबों, जरूरतमंदों एवं आदिवासियों के कल्याण जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सामुदायिक सेवा में लगा हुआ है।
विगत १०० वर्षों मे रामकृष्ण मिशन मुंबई ने २५० से अधिक राहत कार्यो में उल्लेखनीय योगदान दिया है।
रामकृष्ण मिशन में दुर्गा पूजा, नवरात्री और दीपावली तो मनाते है। खास बात ये है कि यहां क्रिसमस, महावीर जयंती और बुद्ध पौर्णिमा भी मनाई जाती है। सचमुच रामकृष्ण मिशन इस धर्म निरपेक्षता की जिती जागती मिसाल है ।
मुंबई का रामकृष्ण मिशन चॅरिटेबल हॉस्पिटल अनेक वर्षो से हजारो लोगों को अपने ओपीडी के माध्यम से अत्याधुनिक स्वास्थ्य सेवा मुहईया करा रहा है।
यहां पर डेंटल केअर, नेत्र चिकित्सा नी – रिप्लेसमेंट, फिजिओथेरपी, आदि अनेक विकारों के लिये पेशेंट्स आते है। अनेक डॉक्टस सेवा भाव से अपनी सेवाएं प्रदान करते हैं, जो अत्यंत सराहनीय है।
मुझे ज्ञात है कि मुंबई से एक सौ किलोमीटर दूरी पर ‘साकवार’ है। इस आदिवासी क्षेत्र में मुंबई रामकृष्ण मिशन द्वारा विगत ५१ वर्षों से ‘रूरल हेल्थ एन्ड वेल्फेअर सेंटर’ चलाया जा रहा है।
साकवार में आदिवासी बहन भाईयोंको शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाएं दी जाती है। वैसे ही युवाओं को कौशल प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बनाया जाता है, जो बहुत ही सराहनीय बात है।
लगभग १०० आदिवासी बच्चों के रहने तथा भोजन की भी वहा व्यवस्था हो रही है, यह जानकर प्रसन्नता हुई। किसानों को अच्छे बीज दिये जाते हैं, बोरवेल द्वारा पानी दिया जा रहा है। कुष्ट रोगियों की भी देखभाल की जाती है। इतना सुंदर कार्य खडा करने के लिए रामकृष्ण मिशन मुंबई अभिनंदन के पात्र है ।
बहनों और भाइयों,
स्वामी विवेकानंद का आगमन भगवद् गीता में भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य शब्दों की याद दिलाता है,
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥
स्वामीजी के जीवन और कार्यों पर एक नज़र डालने से यह विश्वास हो जाता है कि उनका जन्म धर्म को पुनर्जीवित करने और विश्व को भारतीय सभ्यता की महिमा बताने के लिए हुआ था।
जब स्वामी विवेकानंद राष्ट्रीय पटल पर आए, तब लंबे समय तक चल रहे विदेशी आधिपत्य के कारण भारत ने अपना राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव खो दिया था । अपनी पहचान और अपने गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत को देश भूल चुका था।
गरीबी, भूख, अभाव, बीमारी, अज्ञानता और अंधविश्वास में लोग डूबे थे।
मुंबई के इसी भूमि से स्वामी विवेकानंद विश्व धर्म संसद में भाग लेने के लिए शिकागो रवाना हुए थे।
शिकागो में स्वामीजी के भाषण का प्रभाव इतना महान था कि इसने पश्चिमी दुनिया का भारत की ओर देखने का नजरिया बदल दिया।
उससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि, भारत के लोगों की अपने खुद के देश के प्रति धारणा बदल गयी।
बहनों और भाइयों,
स्वामी जी ने कहा कि वे ऐसे ईश्वर या धर्म में विश्वास नहीं करते जो ‘विधवा के आंसू नहीं पोंछ सकता या अनाथ के मुंह में रोटी का टुकड़ा नहीं ला सकता’।
“पहले रोटी और फिर धर्म” को उन्होंने प्राथमिकता दी ।
आज विश्व एक बड़े जनसांख्यिकीय संक्रमण के दौर से गुजर रहा है।
भारत दुनिया का सबसे युवा देश बनकर उभरा है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष रिपोर्ट के अनुसार अगले दो महीनों में भारत की जनसंख्या चीन से अधिक हो जाएगी । भारत विश्व का एकमात्र देश है जहा 46.9% लोग 25 साल से कम उम्र के हैं। ६८ प्रतिशत लोग १५ और ६४ वर्ष के बीच में होंगे ।
दुसरी ओर जापान, जर्मनी, इटली, फ्रांस, रोमानिया, पुर्तगाल जैसे दुनिया के कई देश वृद्ध हो रहे हैं।
ये सभी देश युवा और कुशल मानव संसाधनों की अपनी आवश्यकताओं के आपूर्ति के लिए भारत की ओर देख रहे हैं।
यह हमारे लिए सबसे बडा अवसर भी है और चुनौती भी।
सीआईआई की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की जीडीपी मौजूदा 3 ट्रिलियन डॉलर से 2030 तक 9 ट्रिलियन डॉलर बढ़ सकती है। और 2047 तक 40 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ सकती है।
लेकीन इसके लिये हमें कामकाजी उम्र के हर युवक को कौशल प्रशिक्षण देकर उपयुक्त मानव संसाधन में तबदील करना होगा।
हाल ही में एक जर्मन राजनयिक ने मुझे बताया कि अकेले जर्मनी को हर साल कम से कम 4 लाख कुशल युवाओं की आवश्यकता है। जर्मनी नर्सों, इलेक्ट्रिशिअन्स, और यहां तक कि कसाइयों की भारी कमी का सामना कर रहा हैं।
कौशल शिक्षा पर हम लक्ष्य केंद्रित करते है, तो हम निश्चितही स्वामी विवेकानंद का सपना साकार कर सकते है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्किल, रिस्कील और अपस्किल का मंत्र दिया है।
एक किसान का बेटा होने के नाते मैं हमेशा कहता हूं की भारत का कल्चर ‘एग्रीकल्चर’ है। लेकिन भारत का DNA अध्यात्म, नैतिकता है।
इस वर्ष से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का क्रियान्वयन होने जा रहा है। शिक्षा नीति मूल्य आधारित शिक्षा पर जोर देती है।
सरकार और विश्वविद्यालय युवाओं को शिक्षा और कौशल के साथ सशक्त बनाने के लिए काम कर रही है। रामकृष्ण मिशन जैसे संगठनों को युवाओं का चरित्र निर्माण और उनमें राष्ट्र भावना पैदा करने के लिए काम करना होगा।
कुलाधिपती होने के नाते मैं विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों को रामकृष्ण मिशन के साथ कार्य करने का आह्वान करता हूं।
एक पिता और दादा के रूप में, मुझे चिंता है कि युवा पीढ़ी मोबाइल फोन और ऑनलाइन ऍक्टिव्हिटी में बहुत समय गवां देते है।
मुझे लगता है कि एडवेंचर, बाहरी यात्राएं, खेलकूद, ऐतिहासिक और विरासत स्थलों की यात्रा, दिव्यांग बच्चों के साथ इन्टेरॅक्शन, अन्य धर्मों के पूजा स्थलों का दौरा स्कूल की गतिविधियों का हिस्सा होना चाहिए।
तभी हम उदार और व्यापक विचारों वाली पीढ़ी का निर्माण कर पाएंगे।
स्वामी विवेकानंद के विचारों को अपनाकर अनेक समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। मैं रामकृष्ण मिशन को शताब्दी वर्ष के दौरान स्वामी विवेकानंद के विचारों को अधिक से अधिक फैलाने का आह्वान करता हूं।
‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के लक्ष्य को प्राप्त करना हमारा लक्ष्य होना चाहिए जो स्वामी जी के संदेश का सार था।
पुनः एकवार मैं रामकृष्ण मिशन मुंबई को शताब्दी के अवसर पर हार्दिक बधाई देता हूं और भविष्य के प्रयासों में मिशन की सफलता की कामना करता हूं।
धन्यवाद
जय हिंद ।। जय महाराष्ट्र ।।