19.03.2023 : ‘चला जाणूया नदीला’ अभियान के तहत सांसद श्रीमती हेमा मालिनी द्वारा प्रस्तुत ‘नाट्य विहार’ ‘गंगा’, स्थान : जमशेद भाभा सभागृह, एनसीपीए, नरीमन पॉईंट, मुंबई
‘चला जाणूया नदीला’ अभियान के तहत सांसद श्रीमती हेमा मालिनी द्वारा प्रस्तुत ‘नाट्य विहार’ ‘गंगा’, स्थान : जमशेद भाभा सभागृह, एनसीपीए, नरीमन पॉईंट, मुंबई
श्री राहुल नार्वेकर, सम्मानित अध्यक्ष, महाराष्ट्र विधान सभा
श्री सुधीर मुनगंटीवार, मंत्री, वन, सांस्कृतिक कार्य एवं मत्स्यपालन विभाग, महाराष्ट्र शासन
सांसद श्रीमती हेमा मालिनी
स्वामी चिदानंद सरस्वती, परमार्थ निकेतन
श्री मनुकुमार श्रीवास्तव, मुख्य सचिव
अधिकारी गण तथा यहां उपस्थित कला प्रेमि रसिक भाइयों और बेहेनों
भारतीय स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव के पर्व पर राज्य की नादियों के संवर्धन के उद्द्येश्य से ‘चला जाणूया नदीला’ (‘आओ, नदियों को जाने’) इस अभियान का शुभारंभ २ अक्तूबर के दिन किया गया था।
इसी अभियान को और जागरूक करने के लिए श्रीमती हेमा मालिनी जी का नृत्याविष्कार ‘नाट्य विहार’ ‘गंगा’ देखने का आज हमे सौभाग्य मिल रहा है।
जानकर प्रसन्नता हुई कि राज्य शासन की ओर से इस योजना के अंतर्गत आज तक एक लाख अठत्तर हजार से अधिक जनजागृति कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है।
मुझे बताया गया है, ‘आओ, नदियों को जाने’ इस उपक्रम के सफलता के उद्देश्य से मुख्य सचिव, महाराष्ट्र राज्य, की अध्यक्षता मे समिति का गठन किया गया है। जाने माने ‘जल पुरुष’ डॉ. राजेंद्र सिंह जी जैसे महानुभाव इस समिति के मार्गदर्शक है।
महाराष्ट्र की महानता इसी बात में है कि राज्य में लगभग ८०० नदियां है। उन मे से १०८ नदियों को ‘आओ नादियों को जाने’ इस उपक्रम में समाहित किया गया है।
भाइयों और बेहेनों,
जल ही जीवन है। प्रकृति ने मानवता को जल संसाधन का वरदान दिया है।
प्रकृति ने हमें विशाल नदियां प्रदान की है। जिनके तटों पर महान सभ्यताएं फली – फुली।
हिंदुस्थान यह नाम भी तो सिंधू सभ्यता से जुडा है।
भारतीय संस्कृति में नदीयों का विशेष महत्व है और मां के रूप में उनकी पूजा की जाती है।
बहुत से लोग स्नान करने से पहले पाठ करते है:
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ।
नर्मदा सिन्धु कावेरि जलेs स्मिन संनिधिं कुरु।।
ऐसे धार्मिक प्रथाओं ने हमारा प्रकृति से नाता जोडा है।
आज नागरीकरण, शहरीकरण के दबाव में हमारी नदियां और जलस्त्रोत लुप्त हो रहे है।
भूजल का स्तर निरंतर गिर रहा है।
ऐसी स्थिति में मानवता को बचाने के लिये, बायो डायव्हर्सिटी को बचाने के लिये, हम सबको सचेत सजग रहना होगा।
हमारा स्वास्थ्य तभी अच्छा होगा जब प्रदेश की नदियों का स्वास्थ्य ठीक होगा।
इसे पहचानते हुए, महाराष्ट्र के गोदावरी, कृष्णा, तापी, नर्मदा, पश्चिमी चैनलों के घाटियों में नदियों के संरक्षण के लिए पहल करने की गई है। जिसके लिये मै महाराष्ट्र शासन का और विशेषकर वनमंत्री श्री सुधीर मुनगंटीवार जी का अभिनंदन करता हूं। मुख्य सचिव मनुकुमार श्रीवास्तव जी भी हमारी प्रशंसा के पात्र है।
ग्लोबल वार्मिंग, क्लाईमेट चेंज के चलते प्रत्येक वर्ष महाराष्ट्र में बाढ या अकाल की स्थिति निर्माण होती है। धुपकाल में पानी की भारी किल्लत महसूस होती है।
इस के मद्दे नजर हमें समुद्र में बह रहे पानी को रोकने के लिये योजना बनानी होगी।
गंगा को केवल नदी के रूप में देखना पर्याप्त नही है।
नदी भारतीय संस्कृति की जीवनधारा है तथा अध्यात्म और आस्था की संवाहिका है।
संत कबीर ने कहा था
‘कबिरा मन निर्मल भया जैसे गंगा नीर।
यानि गंगा जल को ही निर्मलता की सबसे बडी कसौटी माना जाता था।
संत रविदास भी पावन गंगा को ही मन की निर्मलता का आदर्श मानते थे।
इसीलिये उन्होने कहां था :
‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’
‘चला जाणूया नदीला’ यह अभियान राज्य के ही नही अपितू देश के हर नागरिक तक पहुंचे और नदी बचाओ यह ‘जन आंदोलन’ बने ऐसा मै आवाहन करता हूं और सांस्कृतिक कार्य विभाग को इस सुंदर आयोजन के लिये शुभ कामना देता हूं।
हेमा मालिनी जी के सुंदर नृत्याविष्कार का यही सन्देश है कि हम नदियों कि रक्षा करे, नदियों का सम्मान करे, नदियों का संवर्धन करे। उसी में मानवता का हित समाहित है।
धन्यवाद
जय हिंद । जय महाराष्ट्र ।।