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    19.02.2024 : जैन विश्वभारती संस्थान का 14 वा दीक्षान्त समारोह

    प्रकाशित तारीख: February 19, 2024

    जैन विश्वभारती संस्थान का 14 वा दीक्षान्त समारोह। 19 फरवरी 2024

    परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी,

    साध्वी प्रमुखाश्री जी,

    जैन विश्वभारती संस्थान के कुलाधिपति तथा केंद्रीय कानून एवं संस्कृति मंत्री श्री अर्जुनराम जी मेघवाल,

    कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़,

    जैन विश्व भारती के अध्यक्ष श्री अमरचंद जी लूंकड़,

    आज जिन्हे डी. लिट. उपाधि से सम्मानित किया गया ऐसे ICICI बैंक के पूर्व अध्यक्ष तथा जिओ फाईनानशियल सर्विसेस के अध्यक्ष श्री के वी कामत,

    आज के दुसरे डी. लिट. प्राप्तकर्ता प्रोफेसर दयानंद भार्गव जी,

    दीक्षांत समारोह में उपाधि प्राप्त कर रहे सभी आचार्य, स्नातक छात्र – छात्राएं

    अभिभावक गण

    आमंत्रित भाईयों और बहनों

    कल ही जैन आचार्य श्री विद्यासागर रावजी महाराज ने समाधी ली। उन्हे मै भावभीनी श्रद्धांजली अर्पण करता हूं।

    जैन विश्वभारती संस्थान के 14 वें दीक्षान्त समारोह में सम्मिलित होकर अत्यंत प्रसन्नता हुई।

    यह दिन सभी स्नातको के लिए विशेष रूप से यादगार दिन है। क्यो की आचार्य महाश्रमण जी की शुभ उपस्थिति में सभी स्नातक अपनी उपाधि प्राप्त कर रहे है।

    महाराष्ट्र संतों और समाज सुधारकों की भूमि रही है।

    संत ज्ञानेश्वर, संत नामदेव, संत एकनाथ, संत तुकाराम, संत रामदास जैसे अनेक संतों का जन्म इसी पवित्र भूमि पर हुआ।

    इसी भूमि पर सिख धर्म के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह महाराज ने अपने जीवन के अंतिम कुछ वर्ष बिताए थे।

    हमारा सौभाग्य है कि हमारे मध्य में जैन संत आचार्य महाश्रमण जी विराजमान है।

    जैन धर्म भारत की पुरे विश्व को देन है।

    जैन धर्म ने हमेशा शांति, अहिंसा और समन्वय का पुरस्कार किया है।

    महात्मा गांधी के विचारों पर जैन धर्म शास्त्र का गहरा प्रभाव था।

    आज जैन धर्म की शिक्षाएं विश्व के लिए पहले से कई अधिक प्रासंगिक है।

    जैन तेरापंथ संघ के प्रति मेरे मन में हमेशा से बहुत अधिक आदर और सम्मान रहा है।

    भारत की स्वतंत्रता के बाद, जैन तेरापंथ के आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन शुरू किया था।

    जिसमें छोटी-छोटी प्रतिज्ञाओं के माध्यम से युवाओं के चरित्र निर्माण पर जोर दिया गया।

    उन्होंने राष्ट्र चेतना जगाने के लिए लाखों किलोमीटर की पदयात्रा की थी।

    आचार्य तुलसी के पश्चात तेरापंथ संघ का नेतृत्व विज्ञान-विचारक संत आचार्य महाप्रज्ञ ने किया।

    संस्थान के वर्तमान अनुशास्ता, आचार्यश्री महाश्रमण जी के आध्यात्मिक अनुशासन एवं निर्देशन में यह संस्थान वर्तमान में राष्ट्र के भावी चारित्रवान कर्णधारों का निर्माण कर रहा है।

    अपनी देश व्यापी यात्रा में पूज्य आचार्य महाश्रमण जी नैतिकता, सद्भावना और नशामुक्ति का प्रचार प्रसार कर रहे है।

    जैन विश्वभारती संस्थान एक अनुठा विश्वविद्यालय है जो उच्च शिक्षा के साथ युवाओं में संस्कारों का सिंचन करता है।

    जैन विश्वभारती संस्थान वैश्विक स्तर पर मानव समुदाय के सार्वभौमिक एवं वैयक्तिक उन्नयन हेतु अनेकान्त, अहिंसा, सहिष्णुता तथा शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व का प्रचार प्रसार कर रहा है।

    वर्तमान समय में विभिन्न राष्ट्रों द्वारा अपनी क्षेत्रीय सीमाओं एवं नियंत्रण को बढ़ाने की प्रबल लालसा एवं महत्त्वाकांक्षा के निरन्तर संपोषण ने विश्वयुद्ध जैसी गम्भीर परिस्थितियों को जन्म दिया जा रहा है, जिसके कारण सम्पूर्ण विश्व को आर्थिक अस्थिरता, विस्थापन जैसी अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

    वैश्विक शांति की आधारशिला शांति के तीन आयामों में निहित है – आंतरिक शांति, राष्ट्रों के बीच शांति और प्रकृति के साथ शांति।

    आज पृथ्वी पर हर एक आत्मा शांति के तलाश में है।

    छात्र बेचैन है, युवा बेचैन हैं, दफ्तर जाने वाले कामकाजी लोग तनावग्रस्त हैं। बुजुर्ग भी तनावग्रस्त हैं। राष्ट्र युद्धरत हैं। समुदाय आपस में लड़ रहे हैं।

    इसलिए हमें भीतर, बाहर और प्रकृति के साथ शांति की आवश्यकता है।

    एक समृद्ध अतीत वाले वैश्विक देश के रूप में, भारत शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की कुंजी रखता है।

    हमें स्कुल शिक्षा में संत साहित्य समाहित करने की नितांत आवश्यकता है।

    यदि नयी पिढी आचार्य तुलसी, आचार्य महाप्रज्ञ, आचार्य महाश्रमण जैसे महान संतो के विचार पढ़ेंगी, तो हम निश्चित ही एक चरित्रवान पिढी निर्माण कर पाएंगे।

    अतः आज सम्पूर्ण विश्व में जैन विश्वभारती जैसे शिक्षण संस्थानों की अति आवश्यकता है, जो मूल्यपरक शिक्षा के माध्यम से विश्व-कल्याण की भावना एवं अहिंसक जीवनशैली को अंगीकार करने की प्रेरणा प्रदान करते हों।

    मुझे ख़ुशी है कि आज के दीक्षांत समारोह में भारतीय मेधा की दो महत्त्वपूर्ण हस्तियो को संस्थान द्वारा मानद डॉक्टरेट उपाधि प्रदान की जा रही है।

    श्री के. वी. कामत तथा प्रो. दयानंद भार्गव देश की बौद्धिक संपदा के बहुमूल्य रत्न हैं। इस अवसर पर मै उन्हें हार्दिक बधाई देता हूं तथा उनका अभिनंदन करता हूं।

    मैं जैन विश्वभारती संस्थान के विद्यार्थियों को कहना चाहूंगा कि वे देश के नवनिर्माण में अपना योगदान दें।

    देश की अर्थव्यवस्था, राजनैतिक एवं सामाजिक व्यवस्था के निर्माण के साथ-साथ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास में भी योगभूत बनें।

    बनी पगडंडियों के स्थान पर नवाचार के माध्यम से नये रास्ते खोजें, नये विकल्प खोजें और अपनी शक्ति का सम्यक् नियोजन करें।

    आज विश्वभर में सबसे अधिक युवा भारत में हैं, इसलिए हमारा दायित्व है कि हम बिना प्रकृति को क्षति पहुंचाए संपदा का निर्माण करें।

    मुझे यह जानकर बड़ी खुशी है कि जैन विश्वभारती संस्थान आचार्य महाप्रज्ञ प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्र के माध्यम से वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों को भी प्रोत्साहन एवं गति प्रदान कर रहा है।

    नई शिक्षा नीति के माध्यम से देश की शिक्षा-व्यवस्था में कई परिवर्तन आ रहे हैं, आपको भी उन परिवर्तनों के लिए न केवल तैयार होना है, अपितु अन्य संस्थानों का नेतृत्व भी करना है।

    अंत में, मैं जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के स्नातकों को इस महत्वपूर्ण दिन पर बधाई देता हूं और आप सभी के भविष्य के प्रयासों में सफलता की कामना करता हूं।

    धन्यवाद।
    जय हिंद। जय महाराष्ट्र।।