13.09.2023 : महाराष्ट्र विधान परिषद की उप सभापति डॉ. नीलम ताई गोरहे के जीवन और कार्य पर आधारित पुस्तक ‘ऐस पैस गप्पा नीलम ताईशी’ का विमोचन
महाराष्ट्र विधान परिषद की उप सभापति डॉ. नीलम ताई गोरहे के जीवन और कार्य पर आधारित पुस्तक ‘ऐस पैस गप्पा नीलम ताईशी’ का विमोचन। राजभवन मुंबई 13 सितंबर 2023 शाम 5 बजे
श्री एकनाथ शिंदे, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री
श्री देवेन्द्र फड़णवीस, उपमुख्यमंत्री
श्री अजित पवार, उपमुख्यमंत्री
श्री चंद्रकांत दादा पाटील, उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री
डॉ. सदानंद मोरे, अध्यक्ष, महाराष्ट्र राज्य साहित्य आणि संस्कृति मंडल,
आज के पुस्तक की नायिका डॉ. श्रीमती नीलम ताई गोरहे, उप सभापति, महाराष्ट्र विधान परिषद
श्री रवींद्र खेबुडकर
आज के कार्यक्रम के सभी आमंत्रक
पुस्तक की लेखिका श्रीमती करुणा गोखले
प्रकाशक श्री दिलीप मजगांवकर, राजहंस प्रकाशन
विशिष्ट आमंत्रित गण
देवियों और सज्जनों
राजभवन में मैं आप सभी का हार्दिक स्वागत करता हूं।
मुझे बेहद खुशी है कि महाराष्ट्र राज्य विधान परिषद की उप सभापति डॉ. नीलमताई गोरहे की आत्मकथा पर आधारित पुस्तक का विमोचन राजभवन में किया जा रहा है।
सबसे पहले मैं उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएं देता हूं, जो कल ही मनाया गया।
‘ऐस पैस गप्पा’ किताब साक्षात्कार (इंटरव्यू) रूप में लिखा आत्मचरित्र है।
लेखिका श्रीमती करुणा गोखले ने डॉ. नीलमताई गोरहे से किये सवालो के माध्यम से डॉ. नीलम ताई ने उत्तर के रूप में अपनी जीवन कथा सुनाई हैं।
यह पुस्तक पाठक को डॉ. श्रीमती नीलम गोरे के जीवन का एक प्रामाणिक और दिलचस्प विवरण प्रस्तुत करती है। व्यापक रूप में यह पुस्तक सभी महिलाओं की कहानी है, जो अत्यंत प्रतिकूल परिस्थिती होते हुये भी, समाज के लिये कुछ करना चाहती है, समाज में सुधार लाना चाहती है।
श्रीमती करुणा गोखले को विस्तृत साक्षात्कार देकर डॉ. नीलम ताई गोरहे ने भविष्य में राजनीति में आने को इच्छुक महिलाओं को राह दिखाई है।
मै नीलम ताई गोरहे, और करुणा गोखले, दोनो को हार्दिक बधाई देता हूं।
यह पुस्तक डॉ. श्रीमती नीलम ताई गोरहे जैसे एक सुसंस्कृत राजनीतिक महिला नेता का जीवन, संघर्ष और कार्य दिखाता है, उजागर करता है।
नीलम ताई गोरहे आज महाराष्ट्र विधान परिषद की उप सभापति है। लेकिन वह विगत २० वर्षो से विधान परिषद की सदस्य – आमदार है। राजनीति में आने के पहले वह महिलाओं के लिये त्रैमासिक चलाती थी। स्त्री आधार केंद्र की वह संस्थापक अध्यक्ष है। आप अच्छी लेखिका हैं और रशियन भाषा से भी परिचित है। राजनीति की व्यस्तता के बावजूद आपने दुनिया का श्रेष्ठ साहित्य पढा है, जो काफी सराहनीय है।
लंबे समय से वह महिलाओं के अधिकारों के लिये लडती आई है। आज राजनीति में भी उन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी है, जिस पर लंबे समय से पुरुषों का वर्चस्व रहा है।
उनकी यात्रा सिर्फ व्यक्तिगत नहीं है, बल्कि अनगिनत अन्य लोगों, विशेषकर महिलाओं के लिए प्रेरणा का प्रतीक है, जो सत्ता के गलियारों में अपनी आवाज बुलंद करने की इच्छा रखती हैं।
इस पुरुष-प्रधान क्षेत्र में डॉ. गोरे की उन्नति सार्वजनिक सेवा के प्रति उनके अटूट दृढ़ संकल्प, परिश्रम और समर्पण का प्रमाण है।
राजनीति की अक्सर उथल-पुथल भरी दुनिया में, डॉ. नीलम गोरे ने महिलाओं और हमारे समाज के अन्य हाशिए पर रहने वाले वर्गों की विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए लगातार आवाज उठाई है।
वह समझती है कि लैंगिक असमानताएं और सामाजिक अन्याय ऐसे मुद्दे नहीं हैं जिन्हें दबा दिया जा सके।
इसके बजाय, उन्होंने सभी के लिए अधिक समावेशी और न्यायसंगत समाज बनाने के लिए अथक प्रयास करते हुए इन चुनौतियों को स्वीकार किया है।
समय-समय पर, उन्होंने शक्तिशाली आंदोलनों का आयोजन और नेतृत्व किया है, जिन्होंने महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान आकर्षित किया है और सत्ता पक्ष को संज्ञान लेने के लिए मजबूर किया है।
इन आंदोलनों ने न केवल महिलाओं की समस्याओं को उजागर किया है, बल्कि ठोस नीतिगत बदलाव भी किए हैं, जिससे अनगिनत व्यक्तियों के जीवन में सुधार हुआ है।
महिला सशक्तिकरण के प्रति डॉ. गोरे का समर्पण, दलित और वंचितों के कल्याण के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता और सकारात्मक बदलाव के लिए लोगों को संगठित करने की उनकी क्षमता ऐसे गुण हैं जो हमारी प्रशंसा और सम्मान के पात्र हैं।
उन्होंने हमें दिखाया है कि जब एक व्यक्ति उद्देश्य की गहरी भावना से प्रेरित होता है, तो वह समाज में सार्थक परिवर्तन ला सकता है। इस पुस्तक का विमोचन केवल डॉ. नीलम गोरे के जीवन और कार्य का उत्सव नहीं है; यह उस अपार क्षमता की भी याद दिलाता है जो हममें से प्रत्येक के भीतर बदलाव लाने की है।
आज महिलाएं अपने बल पर, जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में, अपना उचित स्थान हासिल कर रही हैं।
भारत में स्थानीय स्वायत्त निकायों में महिलाओं के लिए अनिवार्य 50 प्रतिशत आरक्षण ने स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने में उनकी अधिक भागीदारी सुनिश्चित की है।
प्रशासन में भी महिलाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। इस साल सिविल सेवा परीक्षाओं में पहले 10 टॉपर्स में से छह महिलाएं थीं।
पहले की तुलना में अब अधिक महिला पुलिस कांस्टेबल और अधिक महिला सैन्य अधिकारी हैं।
किसी भी कॉर्पोरेट कार्यालय में जाएँ और आपको अधिक महिला चार्टर्ड अकाउंटेंट और कंपनी सचिव दिखेंगे। स्कूल कॉलेजेस में महिला प्रिंसिपल मिलेंगी।
वास्तव में शिक्षण का क्षेत्र बड़े पैमाने पर महिलाओं द्वारा संभाला जाता है।
अगले कुछ वर्षों में जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं का दबदबा रहेगा।
आज, कई देशों का नेतृत्व महिलाओं द्वारा किया जा रहा है और कुछ देशों में मंत्रिमंडलों में भी महिलाओं का वर्चस्व है।
ये उपलब्धियाँ बड़े पैमाने पर लैंगिक समानता उपायों की बदौलत संभव हो पाई हैं।
राजनीति, संसद, विधानमंडलों और सार्वजनिक जीवन में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अभी भी कम है।
महिला सांसदों की संख्या 23 प्रतिशत से भी कम है, जबकि पुरुषों की संख्या 77 प्रतिशत से अधिक है, जिससे जेण्डर समानता में बड़ा अंतर है।
महाराष्ट्र वास्तव में भाग्यशाली है कि उसे ऐसी महिलाएं मिलीं जो अपने समय से बहुत आगे थीं।
इसी भूमि पर लगभग 200 वर्ष पूर्व क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले का जन्म हुआ था। अरुणा आसफ अली, सुशीला नायर, उषा मेहता जैसी महिलाएं स्वतंत्रता संग्राम में सबसे आगे थीं।
हाल के दिनों में विधान मंडल में अहिल्या रांगणेकर, डॉ. प्रतिभा पाटिल, प्रभा राव, मृणाल गोरे जैसे नाम तुरंत दिमाग में आते हैं। उन्हीं की तरह डॉ. नीलम गोरे भी महाराष्ट्र की अग्रणी नेताओं में से हैं। उनमें राज्य और खासकर महिलाओं की प्रगति में योगदान देने की काफी क्षमता है।
मैं डॉ. नीलम ताई गोरहे को उनकी जीवन यात्रा को एक दिलचस्प कहानी के रूप में साझा करने के लिए बधाई देता हूं और उनके भविष्य के प्रयासों में सफलता की कामना करता हूं।
धन्यवाद।
जय हिन्द। जय महाराष्ट्र।।