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    12.09.2023 : साधु वासवानी मिशन, पुणे द्वारा आयोजित पूज्य दादा जे. पी. वासवानी पर स्मारक डाक टिकट का विमोचन

    प्रकाशित तारीख: September 12, 2023

    साधु वासवानी मिशन, पुणे द्वारा आयोजित पूज्य दादा जे. पी. वासवानी पर स्मारक डाक टिकट का विमोचन मंगलवार, 12 सितंबर 2023, दोपहर 12.15 बजे

    श्री देवुसिंह चौहान, केंद्रीय संचार राज्य मंत्री, भारत सरकार,

    श्री शंकर ललवानी, सांसद, इंदौर

    दीदी कृष्णाकुमारी, प्रमुख, साधु वासवानी मिशन

    श्री सुनील कांबले, विधायक

    डॉ. तानाजी सावंत, सार्वजनिक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री

    श्रीमती आर ए वासवानी, अध्यक्ष, साधु वासवानी मिशन,

    डाक विभाग के अधिकारी श्री रामचन्द्र जयभाय

    पूज्य दादा वासवानी के अनुयायी,

    भाईयों और बहनों,

    श्रद्धेय दादा जशन वासवानी की 104 वीं जयंती के खुशी के अवसर पर उन पर निकाले गये स्मारक डाक टिकट के विमोचन में उपस्थित होकर अत्यंत हर्ष का अनुभव हो रहा है।

    दादा जशन वासवानी के नाम से स्मारक डाक टिकट जारी करके एक महान आत्मा के जीवन का जश्न मनाने के लिए मै ‘साधु वासवानी मिशन’ और डाक विभाग को धन्यवाद देता हूं।

    महाराष्ट्र संतों और समाज सुधारकों की भूमि है। संत ज्ञानेश्वर, संत नामदेव, संत एकनाथ, संत तुकाराम, संत रामदास जैसे अनेक संतों का जन्म इसी पवित्र भूमि पर हुआ।

    इसी भूमि पर सिख धर्म के 10 वें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने अपने जीवन के अंतिम कुछ वर्ष बिताए थे।

    महान शिक्षाविद, संत और समाज सुधारक साधु वासवानी ने विभाजन के बाद पुणे को अपना कर्मस्थल बनाया।

    साधु वासवानी की तरह, उनके सबसे विद्वान और मेधावी शिष्य, दादा जशन वासवानी में संत और समाज सुधारक के ईश्वरीय गुण समाहित थे।

    दादा वासवानी सर्वत्र सम्मानित विचारक, लेखक और दार्शनिक थे।

    वे भाईचारा, शांति, सद्भाव, करुणा और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के मूल्यों की मिसाल थे।

    एक उत्कृष्ट वक्ता रहे, दादा वासवानी ने अपने प्रवचनों और लेखों के माध्यम से भारत और विदेश के लाखों लोगों को एक सार्थक जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित किया।

    स्वामी विवेकानन्द की तरह, दादा वासवानी महाराष्ट्र के शांति और सद्भाव के राजदूत थे।

    साधु वासवानी मिशन के माध्यम से, दादा जे. पी. वासवानी ने शैक्षणिक संस्थान, अस्पताल और अन्य सेवा विंग शुरू किए। उनका मिशन धर्म, जाति, पंथ या समुदाय की परवाह किए बिना, समाज के सभी वर्गों की सेवा करता है।

    इनकी सेवा गतिविधियाँ आज सामाजिक, शैक्षणिक, स्वास्थ्य देखभाल और आध्यात्मिक कई क्षेत्रों को शामिल करती हैं जो लोगों के जीवन को प्रभावित करती हैं।

    उनके द्वारा स्थापित, मीरा कॉलेज फॉर गर्ल्स, साधु वासवानी इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज, साधु वासवानी शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान, और साधु वासवानी नर्सिंग संस्थान राज्य में अच्छी सेवा दे रहे है।

    स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में उनका काम प्रेरणादायक है। वासवानी मेडिकल कॉम्प्लेक्स, अस्पताल, हार्ट इंस्टीट्यूट, आई हॉस्पिटल, कैंसर इंस्टीट्यूट, गरीब मरीजों को निःशुल्क सेवा दे रहे हैं।

    कोविड-19 महामारी में मिशन ने दादाजी की शिक्षा को ध्यान में रखते हुए मजदूरों, फंसे हुए प्रवासियों, कुष्ठरोगियों, विधवाओं और एकल महिलाओं को भोजन उपलब्ध कराया। मैं उनके प्रयासों की सराहना करता हूं ।

    आम तौर पर लोग मानवाधिकारों के लिए खड़े होते हैं। लेकिन, दादा वासवानी पशु अधिकारों के लिए भी खड़े थे।

    शाकाहार को बढ़ावा देते हुए उन्होंने लोगों को मूक जानवरों के प्रति दयालु होने के लिए प्रोत्साहित किया।

    अपनी उत्कृष्ट पुस्तक ‘पीस ऑर पेरिश : देयर इज नो अदर चॉइस’ में दादा वासवानी ने कहा है कि वैश्विक शांति की आधारशिला शांति के तीन आयामों में निहित है – आंतरिक शांति, राष्ट्रों के बीच शांति और प्रकृति के साथ शांति।

    आज पृथ्वी पर हर एक आत्मा शांति के तलाश में है।

    छात्र बेचैन है, युवा बेचैन हैं, दफ्तर जाने वाले कामकाजी लोग तनावग्रस्त हैं। बुजुर्ग भी तनावग्रस्त हैं। राष्ट्र युद्धरत हैं। समुदाय आपस में लड़ रहे हैं।

    इसलिए हमें भीतर, बाहर और प्रकृति के साथ शांति की आवश्यकता है। एक समृद्ध अतीत वाले वैश्विक देश के रूप में, भारत शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की कुंजी रखता है।

    दादा ने बिल्कुल सही कहा था कि धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देने के उत्साह में हमने सभी धर्मों की अच्छी शिक्षाओं को अपनी पाठ्यपुस्तकों से हटा दिया।

    व्यापक अर्थ में धर्म का अर्थ नैतिकता और नैतिक मूल्य हैं, जो एक स्वस्थ समाज के लिए बहुत आवश्यक हैं।

    शिक्षा पर उनके विचार राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में प्रतिबिंबित होते हैं जो नैतिकता और नैतिक मूल्यों और शिक्षा के भारतीयकरण पर जोर देती है।

    दादा जे पी वासवानी के अंतिम शब्द उनके शाश्वत संदेश को दर्शाते हैं: उन्होंने कहा:

    “मृत्यु भौतिक शरीर के लिए है। आत्मा मर नहीं सकता, वह दूसरे शरीर में स्थानांतरित हो जाता है। बच्चा जब पैदा होता है, तब मुट्ठी बंधी होती है, लेकिन मनुष्य जब संसार से जाता है, तो हाथ खुले रहते है, बच्चा पैदा होता है तो मुट्ठी में इच्छा शक्ति लेकर आता है और जब जाता है तो अपने कर्म को छोड़कर जाता है, कुछ भी साथ नहीं ले जाता। इसलिए रोओ मत, आंसू मत बहाओ, बल्कि दूसरों की मदद करो। भूखों को खाना दो, प्यासे को पानी दो और जरूरतमंदों को कपड़े दो। ये अच्छे कर्म आपके उन प्रियजनों की मदद करेंगे जिन्होंने अपना भौतिक शरीर छोड़ दिया है।”

    दादा वासवानी के नेक विचार सभी को प्रेरित करते रहेंगे।

    मैं दादा वासवानी की स्मृति को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं, मानवता के लिए उनके कार्यों को नमन करता हूं और साधु वासवानी मिशन को उसके भविष्य के प्रयासों में सफलता की कामना करता हूं।

    धन्यवाद !
    जय हिन्द ! जय महाराष्ट्र !!