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    07.08.2023 : विज्ञान भारती और मुंबई विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित “जमशेदजी टाटा – भारत के स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायक”: राष्ट्रीय संगोष्ठी और प्रदर्शनी’ का उद्घाटन

    प्रकाशित तारीख: August 7, 2023

    विज्ञान भारती और मुंबई विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित “जमशेदजी टाटा – भारत के स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायक”: राष्ट्रीय संगोष्ठी और प्रदर्शनी’ का उद्घाटन, स्थान: सर कावसजी जहांगीर दीक्षांत समारोह हॉल, मुंबई विश्वविद्यालय, फोर्ट, मुंबई, दि. ७ अगस्त २०२३

    पद्म विभूषण डॉ. अनिल काकोडकर, पूर्व अध्यक्ष, परमाणु ऊर्जा आयोग और पूर्व निदेशक, BARC

    डॉ. शेखर मांडे, राष्ट्रीय अध्यक्ष, विज्ञान भारती

    डॉ. रवींद्र कुलकर्णी, वाइस चांसलर, मुंबई विश्वविद्यालय

    डॉ. अजय भामरे, प्रो वाइस चांसलर, मुंबई विश्वविद्यालय

    विशिष्ट अतिथिगण,

    संकाय के सदस्य,

    छात्र,

    आप सभी को नमस्कार।

    इससे पहले कि मैं स्वर्गीय श्री जमशेदजी टाटा और उनके योगदान के बारे में बात करूं, मैं विज्ञान भारती के राष्ट्रीय संगठन सचिव स्वर्गीय जयंत सहस्रबुद्धे को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहता हूं। हाल ही में उनका निधन हो गया। स्वर्गीय जयंत सहस्रबुद्धे ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वदेशी विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।

    देवियों और सज्जनों,

    यह हमारा सौभाग्य है कि अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त परमाणु भौतिक वैज्ञानिक डॉ. अनिल काकोडकर जी हमारे बीच उपस्थित हैं। हमें इस बात की भी खुशी है कि सीएसआईआर के पूर्व निदेशक एवं विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिए ‘शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार’ प्राप्तकर्ता डॉ. शेखर मांडे जी विज्ञान भारती के अध्यक्ष के रूप में हमारे बीच मौजूद हैं।

    मैं भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से “भारत के स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायक” श्रृंखला के आज के आयोजन “जमशेदजी नसरवानजी टाटा : भारत के आधुनिक विज्ञान के अगुवा” पर इस राष्ट्रीय संगोष्ठी और प्रदर्शनी के आयोजन के लिए मैं मुंबई विश्वविद्यालय और विज्ञान भारती को बधाई देता हूं।

    मुझे यह जानकर खुशी हुई कि विज्ञान भारती ने स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय वैज्ञानिक समुदाय के योगदान पर ऐसे कार्यक्रमों की एक श्रृंखला आयोजित की है।

    हम आम तौर पर आज़ादी को राजनीतिक और आर्थिक नजरिए से देखते हैं। लेकिन आजादी एक बहुआयामी परिणाम है।

    हमारे स्वतंत्रता सेनानियों में कवि, शिक्षक, किसान, मजदूर, आदिवासी, कलाकार, व्यापारी और यहां तक कि वैज्ञानिक भी थे। बंकिम चंद्र के ‘वंदे मातरम’ में पूरे देश को आजादी की लड़ाई में एकजुट करने की ताकत थी।

    स्वतंत्रता प्राप्ति के छिहत्तर साल बाद, अब समय आ गया है कि हम जीवन के सभी क्षेत्रों के अपने स्वतंत्रता सेनानियों को याद करें जिनके योगदान को शायद ही कभी स्वीकार किया गया हो।

    राजभवन के अपने हालिया दौरे के दौरान भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने कहा था कि 1857 से पहले भी देश में विभिन्न स्थानों पर कई स्वतंत्रता संग्राम हुए थे, जिन्हे उजागर करने की आवश्यकता है। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के विभिन्न आदिवासी क्रांतिकारियों के योगदान को भी सामने लाने की आवश्यकता जताई थी।

    आज, भले ही बहुत देर से, हम स्वर्गीय जमशेदजी टाटा के जीवन, कार्य और राष्ट्र की प्रगति, उत्थान और विकास में उनके विविध योगदान को याद कर रहे हैं।

    भारत के अधिकांश लोग स्वर्गीय जमशेदजी टाटा को भारत के अब तक के सबसे बड़े औद्योगिक घराने टाटा समूह के संस्थापक के रूप में जानते हैं। हालाँकि जमशेदजी टाटा उससे कहीं अधिक थे। वह सच्चे दूरदर्शी थे। उनका मानना था कि भारत की प्रगति की कुंजी औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के साथ शिक्षा के माध्यम से युवाओं को सशक्त बनाने में निहित है।

    औद्योगीकरण के क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों ने न केवल हमारे देश के आर्थिक परिदृश्य को बदल दिया, बल्कि अनगिनत उद्यमियों को बड़े सपने देखने और उन्हे साकार करने की दिशा में साहसिक कदम उठाने के लिए प्रेरित किया।

    उनका मानना था स्वतंत्रता के लिये पहले भारत की औद्योगिक आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करनी होगी । इस प्रकार वह ‘आत्मनिर्भर भारत’ के शुरुआती समर्थकों में से एक थे।

    उन्होंने भारत का पहला लोहा और इस्पात उद्योग, टिस्को, जमशेदपुर में स्थापित किया। हम सभी जानते हैं कि उन्होंने मुंबई में होटल ताज महल की स्थापना की। उनके प्रयासों से स्थापित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सायन्स बैंगलोर, विज्ञान प्रौद्योगिकी शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान की मिसाल है। आज २०२३ वर्ष में भी, भारतीय विज्ञान संस्थान को भारत के शीर्ष तीन उच्च शिक्षण संस्थानों में स्थान दिया गया है।

    देवियों और सज्जनों,

    भारतीय सभ्यता में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की एक मजबूत परंपरा रही है। आधुनिक आविष्कारों के सदियों पहले से ही भारत विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सक्रिय योगदान दे रहा था। गणित और चिकित्सा; धातु कर्म और खनन; कैलकुलस और वस्त्रोद्योग; वास्तुकला और खगोल विज्ञान – मानव विज्ञान और उन्नति में भारतीय सभ्यता का योगदान समृद्ध और विविध रहा है।

    महानतम भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री भास्कराचार्य ने बीजगणित, कैलकुलस और दशमलव प्रणाली में कुछ महानतम ग्रंथ लिखे।

    दुर्भाग्य से विदेशी आधिपत्य के लंबे दौर में हमने आत्मविश्वास खो दिया, हीन भावना से भर गये। एक समय आया जब विज्ञान, कला और प्रौद्योगिकी में हमारी उपलब्धियों को संदेह की दृष्टि से देखा जाने लगा। लेकिन, आज परिदृश्य बदल रहा है।

    मेरा मानना है कि हम विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार की शक्ति के माध्यम से ही गरीबी, भूख, बीमारी, स्वच्छता, कुपोषण, जलवायु परिवर्तन, जल और ऊर्जा असुरक्षा जैसी अपनी चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं।

    देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी शिक्षा के मानकों के विषय पर मै चिंतित होता हूं। हमारे पास बहुत बड़ी संख्या में सामान्य, निम्न स्तर के विज्ञान संस्थान हैं। इनके बीच में उत्कृष्टता के कुछ द्वीप हैं।

    लगभग 75 वर्षों तक, हम एक ऐसी शिक्षा प्रणाली पर निर्भर रहे जो हमारे औपनिवेशिक आकाओं के हितों की पूर्ति के लिए बनाई गई थी। यह शिक्षा प्रणाली हमें कहीं नहीं ले जा रही थी।

    यह एक तथ्य है कि हमारे अधिकांश स्नातक लिपिक जैसी नौकरियों और डेस्क जॉब्स की इच्छा रखते हैं।

    शिक्षा प्रणाली से नवीनता की भावना गायब हो गई; अनुसंधान और स्वतंत्र सोच की भावना खत्म हो गई; उद्यम और साहस की भावना को हतोत्साहित किया गया।

    आज हम सबसे गतिशील राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को अपनाने और इसके कार्यान्वयन की शुरुआत के साथ, हम शिक्षा के प्रति एक नया दृष्टिकोण अपना रहे हैं।

    भारत अब सबसे ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है | माननीय प्रधान मंत्री की परिकल्पना के अनुसार, दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की हमारी यात्रा काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि हम अर्थव्यवस्था के सभी तीन मुख्य क्षेत्रों, अर्थात सेवा क्षेत्र, मैनफैक्चरिंग और कृषि क्षेत्र को कैसे बढ़ावा देते हैं।

    यह तीन क्षेत्र, शिक्षा, अनुसंधान, नवाचार और उद्यम की भावना के महत्वपूर्ण इनपुट पर निर्भर करते हैं।

    भाईयों और बहनों,

    भारत दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश बनकर उभरा है। हमें विश्व में सर्वाधिक युवा राष्ट्र के रूप में भी जाना जाता है। इसके साथ अवसर भी है और खतरे भी हैं।

    दुनिया के कई उम्रदराज़ देशों को कुशल जनशक्ति की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत से बड़ी उम्मीदें हैं। यह भारत के लिए एक अवसर है।

    हम अपने युवाओं को उत्पादक मानव संसाधनों में बदलकर इस अवसर का लाभ उठा सकते हैं।

    आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग के उद्भव की पृष्ठभूमि में, संपूर्ण शिक्षा प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन आना तय है।

    आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आने वाले युग में सीखना आजीवन और निरंतर रखना होगा। हमें आगे बने रहने के लिए अपने लोगों को स्कील, रिस्कील और अपस्कील बनाना होगा।

    मैंने पढ़ा है कि मैकिन्से एंड कंपनी का अनुमान है कि मशीन लर्निंग से 2030 तक 40 से 80 करोड़ नौकरियों को विस्थापित कर देगा, जिससे 37.5 करोड लोगों को पूरी तरह से नौकरी की श्रेणियां बदलने की आवश्यकता होगी।

    एक से अधिक कौशल सीखने से भारतीयों को AI और मशीन लर्निंग से उत्पन्न खतरों से बचने में मदद मिलेगी।

    एक दौर था जब 90 प्रतिशत अमेरिकी खेती पर निर्भर थे। औद्योगिक क्रांति के कारण व्यापक परिवर्तन हुआ और आज केवल 2 प्रतिशत अमेरिकी कृषि पर निर्भर हैं। प्राथमिक शिक्षा की बड़े पैमाने पर शुरुआत के साथ इस परिवर्तन को प्रबंधित किया गया।

    अब तक पढ़ना, लिखना और अंकगणित ये महत्वपूर्ण कौशल माने जाते थे। इन कौशलों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने पीछे छोड़ दिया है। आज हम अपनी शिक्षा को AI और मशीन लर्निंग के अनुरूप कैसे ढाले सकते है, इसपर चिंतन होना आवश्यक हुआ है। हमें AI व्यवस्था से लाभ उठाने के लिए अपने लोगों को कुशल और पुन: कुशल बनाने की रणनीति की भी आवश्यकता है।

    भाईयों और बहनों,

    जमशेदजी टाटा राष्ट्र की सेवा के प्रति सिद्धांतों और प्रतिबद्धता वाले महान व्यक्ति थे। आज जब हम सर जमशेदजी टाटा की उल्लेखनीय उपलब्धियों का स्मरण कर रहे हैं, तो हमें उन मूल्यों और सिद्धांतों से निर्देशित होना चाहिए जिन्हें उन्होंने संजोया और बरकरार रखा।

    जब वे जीवित थे तब कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व पर कोई कानून नहीं था। लेकिन फिर भी, कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व, सतत विकास और नैतिक व्यावसायिक प्रथाओं के प्रति उनका समर्पण और प्रतिबद्धता सभी उद्यमियों के लिए मार्गदर्शक है।

    समापन करने से पहले, मैं स्वर्गीय जमशेदजी टाटा की’ स्मृति में इस कार्यक्रम के आयोजन के लिए मुंबई विश्वविद्यालय और विज्ञान भारती का अभिनंदन करता हूं, और आपके सहयोग के लिए आप सभी को धन्यवाद देता हूं।

    जय हिन्द ! जय महाराष्ट्र !!