27.01.2024 : मराठी भाषा विभाग द्वार अयोजित ‘विश्व मराठी सम्मेलन’
मराठी भाषा विभाग द्वार अयोजित ‘विश्व मराठी सम्मेलन’। सिडको प्रदर्शनी केंद्र। नवी मुंबई। 27 जनवरी 2024
श्री दीपक केसरकर, शिक्षा और मराठी भाषा मंत्री
विशिष्ट आमंत्रितगण
श्रीमती मनीषा म्हैसकर, अतिरिक्त मुख्य सचिव, मराठी भाषा विभाग
डॉ. शामकांत देवरे, निदेशक, राज्य मराठी विकास संस्था
दुनिया भर से आये आमंत्रित, मराठी भाषा प्रेमी, बहनों और भाइयों,
महाराष्ट्र सरकार के मराठी भाषा विभाग द्वारा आयोजित विश्व मराठी सम्मेलन में आप सभी के साथ भाग लेकर मुझे अत्यधिक खुशी हो रही है।
मैं दुनिया के विभिन्न देशों से, और अन्य प्रदेशो से आये, सभी प्रतिनिधियों का, दूसरे विश्व मराठी सम्मेलन में स्वागत करता हूं।
कार्यक्रम पत्रिका से ज्ञात हुआ कि विश्व मराठी सम्मेलन से सभी आयु वर्ग के लोग जुड़े हुए हैं। जो वास्तव में बहुत सराहनीय है।
मुझे बेहद खुशी है कि महाराष्ट्र की संस्कृति और परंपराओं से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा के लिए अगले 3 दिनों में एक रंगारंग कार्यक्रम तैयार किया गया है। इसमे संगीत है, साहित्य है, मनोरंजन है, पुस्तक पाठ के सत्र है और बहुत सारी चर्चाएँ भी हैं।
मेरा जन्म महाराष्ट्र के नजदीक रायपुर में हुआ। कुशाभाऊ ठाकरे मेरे राजकीय गुरु थे। स्वामी विवेकानंद शीला स्मारक के निर्माता एकनाथ रानडे जी से भी मुझे बहुत स्नेह मिला।
हालाँकि मैं मराठी समझ लेता हूँ, फिर भी मुझे दुख है कि मैं धाराप्रवाह मराठी नहीं बोल सकता, जिसके लिए मैं आपसे क्षमा चाहता हूँ।
महाराष्ट्र के लोग वास्तव में भाग्यशाली हैं कि आपके पास संतों और समाज सुधारकों की एक महान विरासत है जिन्होंने मराठी भाषा को गौरव प्राप्त कर दिया।
केवल महाराष्ट्र के लोगों को ही नहीं, बल्कि पूरी मानवता को महाराष्ट्र के संत ज्ञानेश्वर, संत नामदेव, चक्रधर स्वामी, संत तुकाराम, संत रामदास और कई अन्य संतों का आभारी होना चाहिए। जिन्होने उन्नत जीवन जिने का मार्ग दिखाया।
हम दर्पणकार बाल शास्त्री जाम्भेकर को भी भूल नही सकते।
महात्मा फुले, सावित्रीबाई फुले, लोकमान्य तिलक, आगरकर, डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर और अन्य समाज सुधारको का भी हमें आभारी होना चाहिए जिन्होंने जनता को शिक्षित और जागृत करने के लिए मराठी में लिखा।
संत ज्ञानेश्वर ने गर्व से कहा था, ‘माझा मराठा ची बोलु कौतुके’।
दुर्भाग्य से, आज केवल मराठी ही नहीं, अपितु, हिंदी समेत भारत की सभी भाषाओं को चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
भगवत गीता में कहा है :
कोई भी महान व्यक्ति जो भी कार्य करता है, सामान्य व्यक्ति उसका अनुकरण करते हैं।
वह जो भी मानक स्थापित करता है, उसका अनुसरण पूरी दुनिया करती है।
समाज में प्रभाव शाली लोग अंग्रेजी बोलने में बडप्पन मानते है तो निश्चित ही अन्य सभी लोग भी उनका अनुकरण करेंगे।
राज्यपाल के रूप में, मैं अक्सर विभिन्न देशों के राजनयिकों से मिलता हूं। वे अपनी भाषा में बात करते हैं, मैं उनसे हिंदी में बात करता हूं।
समाज में पढ़े-लिखे और प्रभावशाली लोगों द्वारा यह झूठी बात फैलाई गई है, कि अंग्रेजी अभिजात्य वर्ग की भाषा है।
आधुनिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए अंग्रेजी एक अनिवार्य भाषा है, इत्यादि। पिछले कुछ वर्षो में, कई लोगों ने अपने बच्चों को मराठी, हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़ माध्यम के स्कूलों से हटा लिया।
फिर आया इंटरनेशनल स्कूलों का दौर।
शिक्षकों ने अभिभावकों को घर पर भी अपने बच्चों से अंग्रेजी में बात करने के लिए कहना शुरू कर दिया।
इससे भाषाई विभाजन हुआ है।
एक वर्ग है, जो अंग्रेजी बोल सकता हैं, और एक दुसरा वर्ग है, जो अंग्रेजी नहीं बोल सकता।
अंग्रेजी भाषा के कारण हुए इस ध्रुवीकरण ने क्षेत्रीय भाषाओं के अध्ययन को प्रभावित किया है।
आज हमारे कई बच्चे मराठी, हिंदी और अन्य भाषाओं में पढ़ने-लिखने में असमर्थ हैं।
हम अपने फिल्मी सितारों की पूजा करते हैं।
लेकिन हम अक्सर देखते है कि हमारे कई फिल्मी सितारे अपनी हिंदी फिल्म के इंटरव्यू अंग्रेजी में देते हैं।
कई बार उनके हिंदी डायलॉग्स की स्क्रिप्ट अंग्रेजी में लिखनी पड़ती है।
किसी भाषा को जनता द्वारा बोली जाने के लिए, इसे लोगों द्वारा पसंद किया जाना चाहिए, इसका अभ्यास अमीर और प्रभावशाली लोगों द्वारा किया जाना चाहिए।
एक समय था, जब भारत में बहुत से लोग फ़ारसी भाषा सीखते थे। फिर एक ऐसा दौर आया जब लॉर्ड मैकाले जैसे लोगों ने अंग्रेजी भाषा सीखने को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित किया।
उन्नीस वी सदी के आरंभ में, इंग्लैंड में एक अलग सोच हो रही थी।
वर्ष 1806 में इस्ट इंडिया कंपनी ने नौकरशाहों को भारत में सेवा के लिए भेजने के लिए लंदन के पास एक ईस्ट इंडिया कॉलेज की स्थापना की गई थी।
उन दिनों कॉलेज अपने अधिकारियों को अन्य विषयों के अलावा हिंदुस्तानी, फ़ारसी, बांग्ला, तेलुगु, और मराठी भाषा के रूप में पढ़ाया जाने लगा।
उन दिनों, भारत सरकार की सेवा में आने वाले अंग्रेज लोगों को भारतीय भाषाओं का अध्ययन करने के लिए वार्षिक अनुदान दिया जाता था।
विडंबना यह है कि आज समय आ गया है कि भारत में भारतीय भाषाओं को सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
विश्व की भाषाओं के अध्ययन से पता चलता है कि लोग समृद्ध देशों की भाषाएँ सीखने की ओर प्रवृत्त होते हैं।
यदि आप धन और समृद्धि के निर्माता बनेंगे तो लोग आपकी भाषा सीखेंगे।
माननीय प्रधान मंत्री ने देशवासियो को आश्वासन दिया है कि भारत अगले कुछ वर्षों में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
महाराष्ट्र भी 1 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिए प्रयासरत है।
यह तभी संभव होगा जब महाराष्ट्र के युवा नवप्रवर्तक, उद्यमी, स्टार्ट-अप नेता और धन के निर्माता बनेंगे।
आज लोग फ़्रेंच, जर्मन, स्पैनिश सीखते हैं, क्योंकि इन भाषाओं को सीखने से सीखने वालों को कुछ प्रकार का इनसेनटीव्ह या प्रोत्साहन मिलता है।
हमारे लिये गर्व की बात है कि महाराष्ट्र के कई लोग आज दुनिया के विभिन्न देशों में सफल बिजनेस लीडर, उद्यमी और धन निर्माता के रूप में उभरे हैं।
मैं महाराष्ट्र के सभी सफल बिजनेस लीडर्स से अपील करूंगा कि वे महाराष्ट्र के युवाओं के साथ बातचीत करें और यूट्यूब चैनलों, फेस बुक, इंस्टाग्राम और अन्य प्लेटफार्मों के माध्यम से अपनी सफलता की कहानियां साझा करते रहें।
मराठी दुनिया की शीर्ष 20 सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। हमें मराठी युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाने का प्रयास करना चाहिए।
मराठी भाषा की विभिन्न बोलियों में साहित्य को बढ़ावा देने के प्रयास किये जाने चाहिए।
भारत की आजादी के इस अमृत काल में, आइए हम सब अपनी अमृत वाणी मराठी को दुनिया भर में बढ़ावा देने के लिए सामूहिक प्रयास करें।
मैं आयोजकों को बधाई देता हूं और आप सभी को एक यादगार सम्मेलन की कामना करता हूं।
धन्यवाद।
जय हिंद। जय महाराष्ट्र।
जय मराठी।।