17.11.2023 : सदाबहार देव आनंद की 100वीं जयंती समारोह के अवसर पर ‘देव आनंद’ पर कॉफी टेबल बुक का विमोचन
सदाबहार देव आनंद की 100वीं जयंती समारोह के अवसर पर ‘देव आनंद’ पर कॉफी टेबल बुक का विमोचन। सेंट्रम, साउथ लाउंज, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर, मुंबई। शुक्रवार 17 नवंम्बर 2023
डॉ. विजय कलंत्री, अध्यक्ष, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर मुंबई और अध्यक्ष, ऑल इंडिया एसोसिएशन ऑफ इंडस्ट्रीज
श्री आनंद थिरानी, अध्यक्ष, कोरस इंडिया लिमिटेड
कैप्टन सोमेश बत्रा, उपाध्यक्ष, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर
श्रीमती रूपा नाईक, महानिदेशक, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर मुंबई
विशिष्ट आमंत्रित सदस्य; और
देव आनंद प्रशंसक
देव आनंद साहब का बडा प्रशंसक होने के नाते, ‘देव आनंद’ जी के जीवन पर ‘कॉफी टेबल बुक’ का विमोचन करना, मैं अपने आप का सम्मान समझता हूं।
मैं डॉ. विजय कलंत्री जी को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने मुझे पुस्तक के विमोचन के लिए आमंत्रित किया, जिससे मुझे अपने युवा दिनों को याद करने का मौका मिला।
राज्यपाल के रूप में व्यक्ति को प्रोटोकॉल के साथ रहना होता हैं।
राज्यपाल को किसी भी थिएटर में जाने, मूवी देखने और मुंबई की मशहूर ‘पाव भाजी’ खाने की आजादी नहीं मिलती ।
अगर मैं वहां जाऊंगा भी, तो लोग पसंद करेंगे या नहीं यह नही जानता।
लेकिन एक समय ऐसा भी था जब एक स्वतंत्र पक्षी के रूप में, मैं सिनेमाघरों में जाता था, कतारों में खड़ा होता था और यहां तक कि फिल्मों के टिकट भी ‘ब्लैक’ में खरीदता था।
मैं भाग्यशाली हूं कि मेरा जन्म उसी वर्ष हुआ जब भारत को स्वतंत्रता मिली। इस प्रकार मैं भारतीय फिल्म उद्योग के ‘स्वर्ण युग’ का गवाह बन सका ।
इस स्वर्णिम युग में, पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार, राज कपूर, सुनील दत्त, राज कुमार, मनोज कुमार, बलराज साहनी जैसे श्रेष्ठ अभिनेता; और मीना कुमारी, मधुबाला, वहीदा रहमान जैसी महान अभिनेत्रियाँ हुई | कई गायक, संगीतकार और फिल्म लेखकों ने उस युग को स्वर्ण युग बनाया और भारतीय फिल्म उद्योग को वैश्विक स्तर पर ले गये ।
इन महान अभिनेताओं, निर्देशकों, संगीतकारों और फिल्म निर्माताओं के लुप्त होने के साथ ही फिल्मों में मेरी रुचि थोडी बहुत कम हो गई।
लेकिन मैं अभी भी देव आनंद की गाइड, तेरे घर के सामने, CID और अन्य फिल्मों के गाने गुनगुनाता हूं।
देवियों और सज्जनों,
18 फरवरी 1999 को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने देवानन्द को फोन कर कहा, “तैयार रहना, मेरे साथ जाना है।”
देवानन्द को नही मालूम कहां जाना है। दुसरे दिन पता चला अटल जी के साथ दिल्ली से लाहौर जाना है ।
अटल जी ने नवाज शरीफ को पुछां था, “भारत से क्या लाना है”, तो नवाज शरीफ ने कहां था “अपने साथ देवानंद को ले आना।” देवानंद, नवाज शरीफ के अच्छे दोस्त थे।
नेपाल के राजा महेंद्र जी भी देवानन्द के अच्छे मित्र थे । नेपाल के राजा ने देवानन्द को नेपाल आने के लिए प्लेन भेजा । देवानन्द जब नेपाल पहुंचे, तब राजा उन्हे ऐसे जगह ले गये, जहाँ हिप्पी लोग नशे में थे ।
हिप्पियों में एक लड़की भी थी । उस दृश्य को देखकर देवानन्द ने फिल्म बनाई, जिसमें गाना था ‘दम मारो दम’।
‘विद्या’ फिल्म की शूटिंग में एक दृश्य फिल्मा रहे थे । नाव में देवानन्द और सुरैया, चप्पू चलाते गाना गा रहे थे। अचानक नाव पलट गयी । देवानन्द ने सुरैय्या को बचाया । तब सुरैय्या ने कहा, ‘आप नहीं बचाते तो, मैं जिंदा नहीं रहती’।
तब देवानन्द बोले, ‘बाकी जिंदगी मुझे दे दो। ‘ और सुरैया से प्यार हो गया।
एक घटना है, देवानन्द ने सुरैय्या के लिए एक हीरे की अंगूठी खरीदी, उसे सुरैय्या को दिए | सुरैय्या के घर वाले रिश्ते के लिए तैय्यार नही थे । एक दिन सुरैय्या उस अंगूठी को लेकर जूहू बीच गई | अंगूठी को प्यार से चूमा, और अंगूठी को समुद्र में फेक दीया । उसके बाद देवानन्द ने कभी मुड् कर सुरैय्या के तरफ नही देखा।
1975 में, देश में इमरजेसीं लगी, तो किसी बात से, उस समय के सूचना प्रसारण मंत्री श्री विद्याचरण शुक्ल ने देवानन्द के फिल्म और गाने पर दुरदर्शन और आकाशवाणी मे बैन कर दिया था ।
देवानन्द जी दिल्ली गये और श्री विद्याचरण शुक्ल से मिल कर कहां, प्रजातंत्र में ऐसी कार्यवाही ठीक नही है । कुछ बातें कर मुम्बई आने के लिए एयरपोर्ट आये तो बताया गया कि सरकार ने बैन हटा लिया है । इससे पता चलता है कि, देवानन्द जी अपनी बाते दमदारी से रखते थे।
आज, हम यहां एक सच्चे किंवदंती, और भारतीय फिल्म उद्योग के प्रतीक – एकमात्र, देव आनंद की जन्म शताब्दी मनाने के लिए एकत्र हुए हैं।
सिनेमा की दुनिया में उनके योगदान ने न केवल लाखों प्रशंसकों के दिलों में बल्कि भारतीय फिल्म के इतिहास में भी एक अमिट छाप छोड़ी है।
देव साहब ने अपनी आकर्षक स्क्रीन उपस्थिति, करिश्माई व्यक्तित्व और अद्वितीय अभिनय कौशल के साथ छह दशकों से अधिक समय तक सिल्वर स्क्रीन की शोभा बढ़ाई।
अपनी सिनेमाई यात्रा के माध्यम से, उन्होंने हमें हँसाया, रुलाया और प्यार में डाल दिया, और साथ ही हमें अपनी अपार प्रतिभा से आश्चर्यचकित कर दिया।
भारतीय सिनेमा का स्वर्ण युग, एक ऐसा काल जिसमें देव आनंद जैसे दिग्गजों का उदय हुआ, अद्वितीय रचनात्मकता और कलात्मक अभिव्यक्ति का समय था।
यह एक ऐसा युग था जब भारतीय सिनेमा वास्तव में अपने चरम पर था, ऐसी फिल्मों के साथ जो न केवल मनोरंजन करती थीं बल्कि प्रेरित करती थीं, मानदंडों को चुनौती देती थीं और हमारे देश के बदलते सामाजिक ताने-बाने को प्रतिबिंबित करती थीं। इस अवधि के दौरान, भारतीय सिनेमा ने राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इसने भाषाई और सांस्कृतिक बाधाओं को पार करते हुए विविध पृष्ठभूमि के लोगों को कहानी कहने और मनोरंजन की साझी छतरी के नीचे एकजुट किया।
देव आनंद की फिल्मों ने, अपने सार्वभौमिक विषयों और संबंधित पात्रों के साथ, इस प्रयास में बहुत योगदान दिया।
उनका काम महज मनोरंजन से परे था; इसने दर्शकों में आत्मविश्वास जगाया, उन्हें बड़े सपने देखने और प्यार, आशा और दृढ़ता की शक्ति में विश्वास करने के लिए प्रोत्साहित किया।
उनके पात्र आम आदमी के साथ प्रतिध्वनित होते हैं, उनके स्वयं के संघर्षों, आकांक्षाओं और विजय का प्रतिबिंब प्रस्तुत करते हैं।
भारतीय फिल्मों और विशेषकर देव आनंद का प्रभाव हमारी सीमाओं तक ही सीमित नहीं है।
उन्होंने दूर-दूर तक यात्रा की है और विभिन्न देशों के दर्शकों पर अपनी छाप छोड़ी है।
अपनी फिल्मों के माध्यम से, देव आनंद हमारी संस्कृति, मूल्यों और भावनाओं की समृद्ध टेपेस्ट्री का प्रदर्शन करते हुए भारतीय सिनेमा के वैश्विक राजदूत बन गए।
आज इस महत्वपूर्ण अवसर पर हम देव आनंद को उनकी 100वीं जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
मैं देव आनंद पर एक कॉफी टेबल बुक लाने के लिए आयोजकों का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं।
यह संकलन न केवल उनकी स्थायी विरासत का एक प्रमाण है, बल्कि सिनेमा की दुनिया में उनके द्वारा लाए गए जादू और आकर्षण का एक झरोखा भी है।
धन्यवाद, और देव साहब की रोशनी हमारे दिलों में हमेशा चमकती रहे।
जय हिन्द ! जय महाराष्ट्र !