16.12.2023 : विश्व संवाद केंद्र द्वारा आयोजित अमेरिकी सिनेमैटोग्राफर ‘आनंद मैथ्यू शोकी’ द्वारा लिखित पुस्तक ‘इन क्वेस्ट ऑफ गुरु’ का विमोचन
विश्व संवाद केंद्र द्वारा आयोजित अमेरिकी सिनेमैटोग्राफर ‘आनंद मैथ्यू शोकी’ द्वारा लिखित पुस्तक ‘इन क्वेस्ट ऑफ गुरु’ का विमोचन। स्थान : राजभवन मुंबई। 16 दिसंबर 2023
डॉ. निशिथ भंडारकर, मुख्य संवाद अधिकारी, विश्व संवाद केंद्र, मुंबई
मेजर जनरल डॉ जी डी बक्षी, रक्षा विशेषज्ञ
श्री मोहन जी,
दिव्य कर्नल अशोक जी किणी
पुस्तक के लेखक आनंद मैथ्यू शोकी
बहनों और भाइयों,
सबसे पहले मैं सभी को शुभकामनाएं देता हूं और राजभवन में आप सभी का हार्दिक स्वागत करता हूं।
आज विजय दिवस है। आज ही के दिन वर्ष १९७१ में भारत के सैन्य दलों ने पाकिस्तान को परास्त किया था।
यह संयोग है कि, आज हम गुरु तत्व का विजय मना रहे है।
मैं आनंद मैथ्यूज द्वारा लिखित पुस्तक ‘इन क्वेस्ट ऑफ गुरु’ के विमोचन से जुड़कर स्वयं आनंद का अनुभव कर रहा हूं।
ठीक 130 साल पहले, 31 मई 1893 को मुंबई के अपोलो बंदर से स्वामी विवेकानन्द विश्व धर्म संसद में भाग लेने के लिए शिकागो के लिये रवाना हुए थे।
उनका मिशन कितना प्रभावी था, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक अमेरिकी सिनेमैटोग्राफर आज स्वामी विवेकानन्द की भूमि की ओर आकर्षित हुआ है। संयोग से उन्होने वही मिशन हाथ में लिया है, जिसके साथ स्वामी विवेकानन्द ने अपनी शिकागो यात्रा शुरू की थी। सनातन धर्म की महानता बताना।
भारतीय दर्शन और सनातन धर्म गुरु को सर्वोच्च महत्व देता है।
गुरु साक्षात् परब्रह्म।
गुरु को भगवान से भी ऊंचा स्थान दिया गया है।
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय ।
बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोविंद दियो बताय ।।
इस दोहे से तात्पर्य है कि जब आपके समक्ष गुरु और ईश्वर दोनों विधमान हो तो पहले गुरु के चरणों में अपना शीश झुकाना चाहिए, क्योंकि गुरु ने ही हमें भगवान के पास पहुँचने का ज्ञान प्रदान किया है।
गुरु वसिष्ठ के बिना राम अधूरे हैं। महर्षि सांदीपनी के बिना भगवान कृष्ण अधूरे हैं। संत ज्ञानेश्वर अपने भाई और गुरु संत निवृत्तिनाथ महाराज को गुरु मानते है। भारत के प्रत्येक संत अपने गुरु के समक्ष स्वयं को समर्पित कर देते है।
सचमुच गुरु की खोज गहन होती है, कई बार बहुत लंबी भी होती है।
परमात्मा दर्शन की चाह में स्वामी रामकृष्ण परमहंस इतने बेचैन हो गये थे कि हररोज डूबते सूर्य को देखकर कहते थे, “माँ, एक और दिन बीत गया, और अब तक मैंने तुम्हें नहीं देखा है!”
आखिरकार वह सवाल करते, “क्या तुम सच हो, माँ, या, यह सब मेरे मन की मनगढ़ंत कहानी है? यदि तुम अस्तित्व में हो, मैं तुम्हें क्यों नहीं देख सकता?”
संत कबीर महाराज ने दो टुक साफ कहा है :
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ।
संत कबीरदास के दोहे का अर्थ होता है, जो प्रयत्न करते हैं, वे ही कुछ पा लेते हैं।
गुरु को पाना है, तो खुद को खोने की, मिटाने की तैयारी रखनी होती है।
गुरु कोई व्यक्ति नहीं है।
गुरु निराकार तत्व है। गुरु अनादि है, गुरु अनंत है । गुरु सर्वव्यापी है, गुरु निरंतर है।
जगत गुरु का ही रुप है। गुरु ही शिष्य का रूप धारण करता है और प्रश्न पुछता है।
और वही फिर एक विद्वान गुरु का रूप धारण करता है, और शिष्य का अज्ञान अंधकार मिटाता है।
गुरु की खोज वास्तव में आपके स्वयं की खोज है।
आज विद्यार्थी होशियार हैं। उनका आईक्यू बहुत ज्यादा होता है।
लेकिन, हम उन्हें सभी भौतिक ज्ञान सिखा रहे हैं।
हम उन्हें फिजिक्स, केमिस्ट्री, गणित, अकाउंटेंसी, अभियांत्रिकी, मेडिसिन पढ़ा रहे हैं।
लेकिन हम उन्हें यह नहीं सिखा रहे हैं कि सार्थक जीवन कैसे जिया जाए।
हम उन्हें यह खोजने के लिए प्रेरित नहीं करते हैं: “मैं कौन हूँ?”
आज शांति मानवजाति से दूर जा रही है।
व्यक्तिगत स्तर पर अशांति है।
परिवारों में अशांति रहती है।
राष्ट्रों के बीच युद्ध होते रहते हैं।
लोग जाति, पंथ, नस्ल, लिंग और धर्म और राष्ट्रीयताओं के आधार पर आपस में भेदभाव पैदा कर रहे हैं।
सनातन धर्म के पास आज मानवता के सामने आने वाली सभी समस्याओं का समाधान है।
सनातन धर्म का सहारा लेकर आप भीतर और बाहर शांति पैदा कर सकते हैं।
सनातन धर्म में पुरुष, स्त्री, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र जैसे भेद मिट जाते हैं।
सनातन धर्म आपको संपूर्ण विश्व को अपने परिवार के विस्तार के रूप में देखने के लिए कहता है: ‘वसुधैव कुटुंबकम।’
मुझे खुशी है कि आनंद मैथ्यू ने खुद को सनातन धर्म की राह पर समर्पित कर दिया है।
मुझे खुशी है कि गुरु की उनकी खोज दिव्य कर्नल अशोक किणी जी के चरण कमल में समाप्त हो गई है।
कर्नल अशोक किणी जी एक उच्च सम्मानित सेना अधिकारी रहे है और आज आत्मज्ञान के मार्ग लोगों को जागृत करने के लिए उन्होने खुद को समर्पित कर दिया है।
आजकल की नई पीढी को पुराने बाबाजी का ज्ञान पसंद नहीं आता।
लेकिन जब आनंद मैथ्यूज जैसे युवा और शिक्षित व्यक्ति उन्हे सनातन धर्म का वैज्ञानिक तरीके से विशुद्ध ज्ञान अमृत देते है, तो वे सकारात्मकता से उसका स्वीकार करते है।
हमें अपनी अगली पीढ़ी और वर्तमान पीढ़ी को खुश और संतुष्ट बनाने के लिए आनंद मैथ्यूज जैसे लोगों की और उनके द्वारा लिखित सत-साहित्य की जरूरत है।
हमें परिवार में, समाज में और राष्ट्रों के बीच, शांति स्थापित करने के लिए ‘इन क्वेस्ट ऑफ गुरु’ जैसे पुस्तकों की आवश्यकता है।
मैं लेखक, प्रकाशक और गुरु जन और उन सभी को बधाई देता हूं जिन्होंने आनंद मैथ्यूज को गुरु की खोज में मदद की है।
विश्व संवाद केंद्र को इस सुंदर आयोजन के लिये धन्यवाद देता हूं और प्रकाशन के सफलता की कामना करता हूं।
धन्यवाद। ॐ शांति।।