13.09.2023 : श्रीमद राजचंद्र मिशन धरमपुर द्वारा पर्युषण महापर्व समारोह का आयोजन
श्रीमद राजचंद्र मिशन धरमपुर द्वारा पर्युषण महापर्व समारोह का आयोजन, एनएससीआय डोम, मुंबई, 13 सितंबर 2023 को सायं 1900 बजे
परम पूज्य गुरुदेव श्री राकेश जी,
श्रीमद राजचंद्र मिशन धरमपुर के सभी आत्म प्रेमी
बहनों और भाइयों
सभी को नमस्कार और जय जिनेन्द्र।
पूज्य गुरुदेव श्री राकेश जी के सत्संग प्रवचन में आप सभी के साथ शामिल होकर मुझे अत्यंत हर्ष का अनुभव हो रहा है।
मुझे यह जानकर खुशी हुई कि यहां पुरे सप्ताह में सत्संग प्रवचन, ध्यान और कई अन्य कार्यक्रम हैं।
मैं श्रीमद राजचंद्र मिशन धरमपुर को मानवीय और पशु कल्याण गतिविधियों के माध्यम से पूज्य संत राजचंद्र जी द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने के लिए बधाई देता हूं।
महाराष्ट्र आने के बाद से हमने मुंबई मैराथन से जुडे दो कार्यक्रमों में भाग लिया था।
इन दोनों आयोजनों में, श्रीमद राजचंद्र मिशन धरमपुर और श्रीमद राजचंद्र लव एंड केयर ने अपने मानवीय कार्यों के लिए धन जुटाने के लिए पुरस्कार जीते थे।
पूज्य गुरुदेव श्री राकेश जी से प्रेरित ‘SRMD योग’ द्वारा इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर राज भवन में अत्यंत सफलता पूर्वक योग कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
इतने सारे स्वयंसेवकों और साधकों को निस्वार्थ सेवा के मार्ग पर प्रेरित करने के लिए मै, पूज्य गुरुदेव श्री राकेश जी को वंदन करता हूँ, और धन्यवाद देता हूं।
बहनों और भाइयों,
महाराष्ट्र यह संतों की भूमि है। राज्य के हर हिस्से में अलग अलग समय पर संतों ने जन्म लिया, अवतरित हुए या दूसरे प्रदेश से आकर बसे।
संत ज्ञानेश्वर, तुकाराम, नामदेव, एकनाथ, समर्थ रामदास के पावन अस्तित्व से पुलकित इस प्रदेश में सिख्खोन्के दसवे गुरु, गुरु गोबिंद सिंग पधारे और जीवन के आखरी कुछ वर्ष बिताये। मुझे यह जानकर अत्यधिक ख़ुशी हुई कि परम कृपालु महान संत श्रीमद राजचंद्र जी ने इसी मुंबई शहर में मात्र १९ वर्ष की आयु में ‘शतावधान’ चुनौती को सफलता पूर्वक पुरा किया था। इसी शहर में उनकी महात्मा गांधी जी से मुलाकात हुई थी। महात्मा गांधी के जीवन पर हमेशा श्रीमद राजचंद्र जी के व्यक्तित्व का प्रभाव रहा।
पूज्य गुरुदेव श्री राकेश जी ने श्रीमद राजचंद्र जी के ज्ञान प्रवाह को जारी रखा है।
अन्य पर्वों एवं त्योहारों से भिन्न, पर्युषण आंतरिक शुद्धि का पर्व है। शरीर, मन और भावनाओं की शुद्धि।
दुनिया भर में जैन समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला सप्ताह भर चलने वाला पर्युषण पर्व एक शाश्वत त्योहार है – आध्यात्मिक उत्थान और नैतिक कायाकल्प का त्योहार।
यह एक ऐसा त्योहार है जो जीवित और निर्जीव प्राणियों, मनुष्यों और मूक जानवरों – सभी के जीवन को छूता है। इसलिए पर्युषण यह सृष्टि का त्यौहार पर्व है, ऐसा मै मानता हूँ।
जैन समुदाय के कई सदस्य आत्म-साक्षात्कार की खोज में इस अवधि के दौरान श्रवण, चिन्तन, मनन, तपस्या, व्रत, उपवास और पवित्र ग्रंथों को पढ़ते और सुनते हैं।
इस पवित्र त्योहार की मुख्य पहचान समुदाय के सदस्यों द्वारा एक-दूसरे, मित्रों, सहकर्मियों और शत्रुओं से भी क्षमा याचना करना है।
महात्मा गांधी ने कहा था, “कमजोर कभी माफ नहीं कर सकते। क्षमा वीरों की विशेषता है।”
मुझे विश्वास है, अगर हम सभी – व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के रूप में – दूसरों को माफ करते है, और अतीत में की गई गलतियों के लिए एक-दूसरे से माफी मांगते है, तो दुनिया सबसे खूबसूरत और शांतिपूर्ण जगह बन जाएगी।
बहनों और भाइयों,
जैन धर्म के दर्शन में बताए गए आध्यात्मिकता के महान सिद्धांतों ने दुनिया भर में लोगों की पीढ़ियों को प्रभावित किया है।
अहिंसा की इसकी स्थायी विरासत ने जीवन और प्रकृति के प्रति हमारे दृष्टिकोण को आकार दिया है।
जाति व्यवस्था के खिलाफ इसका सैद्धांतिक रुख हमें सभी के लिए समानता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करता है।
जैन धर्म के तर्कसंगत आधार ने वैज्ञानिक सोच के विकास को बढावा दिया है। जैन धर्म तर्कसंगत बौद्धिक प्रवचन की समृद्ध परंपरा का अभिन्न अंग है जो भारत की इस प्राचीन भूमि में विकसित हुआ है।
विश्व का प्रत्येक धर्म शांति, सद्भाव और करुणा का प्रतीक है।
कोई भी धर्म दूसरे धर्म की बहनों और भाइयों के खिलाफ नफरत या हिंसा का उपदेश नहीं देता।
आज शांति मानव जाति से दूर होती जा रही है। लोग बेचैन हैं, समुदाय बेचैन हैं, राष्ट्र युद्धरत हैं।
आज, व्यक्तिगत स्तर पर, समाज के भीतर और राष्ट्रों के बीच शांति बहाल करना सबसे बड़ी चुनौती है।
स्थायी शांति के लिए सबसे पहली चीज भाईचारे की भावना है। स्थायी शांति के दूसरी महत्वपूर्ण चीज़ है सेवा की भावना। सेवा भावना से ही सच्ची शांति संभव है।
दुनिया मे एक वर्ग विलासिता और ऐश्वर्य में रहता है और बहुसंख्यक लोग गरीबी और अभाव में रहते हैं, तो कोई भी व्यक्ति शांति और ख़ुशी से नहीं रह सकता।
हमारे पास जो कुछ है उसे दूसरों के साथ साझा करें। हम अपनी कमाई का एक हिस्सा, मान लीजिए कि दसवां हिस्सा, पीड़ित लोगों की सेवा में उपयोग करने के लिए अलग रखें।
हम सभी प्रेम, करुणा और साझा करने की भावना तथा सेवा के माध्यम से शांति प्राप्त कर सकते हैं। यह ईश्वर की प्राप्ति का सबसे तेज़ मार्ग भी है।
झारखंड के राज्यपाल के रूप में जब जैन समुदाय के पवित्र तीर्थ स्थल ‘श्री सम्मेद शिखरजी’ को पर्यटन स्थल घोषित करने का निर्णय लिया गया, तब उस तीर्थ स्थल की महिमा के मद्देनजर, हमने उसे पर्यटन स्थल होने से रोक दिया।
महाराष्ट्र में आने के बाद, वध के लिए महाराष्ट्र लाए गए ऊंटों की जान बचाने और उनके पुनर्वास में भी हमने अपना दायित्व निभाया।
पर्यूषण की शुभ अवसर पर हम अपने मनुष्यों और अबोल प्राणियों के प्रति प्रेम, भाईचारा, करुणा, जैसे शाश्वत मूल्यों का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध होने का संकल्प करें।
भारत सदैव एक समावेशी, बहुसांस्कृतिक, बहुभाषी और बहु जातीय समाज रहा है।
यह वह भूमि है जहां दुनिया के कुछ महान धर्म, अर्थात् हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म निर्माण हुए।
पारसियों और यहूदियों ने भारत को अपने धर्म और सांस्कृतिक परंपराओं का पालन करने के लिए सबसे ग्रहणशील भूमि पाया।
वे सदियों से बिना किसी भय या उत्पीड़न के भारत में रह रहे हैं और इसकी सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक समृद्धि में योगदान दे रहे हैं।
भारत की सबसे बड़ी विशेषता इसकी विविधता में एकता है। हमने कभी प्रयास नहीं किया दूसरों पर एकरूपता थोपना या विविधता को कम करना।
आज ऐसे समय में जब भारत दुनिया के एक अग्रणी देश के रूप में उभर रहा है, देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी समृद्ध बहुलवादी विरासत और देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बनाए रखना है।
मैं पूज्य गुरुदेव श्री को प्रणाम करता हूं और पर्युषण पर्व के अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।
इस अद्भुत अवसर से मुझे जोड़ने के लिए मैं श्रीमद राजचंद्र मिशन धरमपुर को धन्यवाद देता हूं।
जय हिंद। जय महाराष्ट्र। जय जिनेन्द्र।।