07.10.2023 : भारतीय विदेश सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी श्री. ज्ञानेश्वर मुले की पुस्तक ‘मैं जहां-जहां चला हुं’ का विमोचन
भारतीय विदेश सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी श्री. ज्ञानेश्वर मुले की पुस्तक ‘मैं जहां-जहां चला हुं’ का विमोचन। राज भवन मुंबई. 7 अक्टूबर 2023
डॉ. ज्ञानेश्वर मुले, IFS (रिटायर्ड) तथा सदस्य, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग
श्रीमती साधना शंकर, मुख्य आयकर आयुक्त
श्रीमती निदर्शना गोवानी, ट्रस्टी, कमला अंकीबाई घमंडीराम गोवानी ट्रस्ट
पुस्तक के अनुवादक श्री शशि निघोजकर,
विशिष्ट आमंत्रितगण,
देवियो और सज्जनों
सेवानिवृत्त विदेश सेवा अधिकारी डॉ. ज्ञानेश्वर मुले द्वारा लिखित पुस्तक ‘मैं जहां जहां चला हूं’ के विमोचन से जुड़कर मुझे वास्तव में खुशी हो रही है।
कुछ महीने पहले, मैंने उनकी धर्मपत्नी, मुख्य आयकर आयुक्त, श्रीमती साधना शंकर की पुस्तक ‘एसेंडेंस’ का इसी राजभवन में विमोचन किया था, जो एक विज्ञान कथा थी।
यह इकलौता युगल होगा, जिसमें पती और पत्नी, दोनो के पुस्तक का विमोचन राजभवन में किया गया।
डॉ. ज्ञानेश्वर मुले का एक राजनयिक के रूप में जापान, रूस, मॉरीशस, सीरिया और मालदीव में अच्छा करियर रहा है।
उन्होंने वाणिज्य और वित्त मंत्रालय में भी काम किया है।
मैंने पढ़ा है कि भारत के कोने-कोने में पासपोर्ट कार्यालय खोलने में उनकी भूमिका के लिए उन्हें भारत का ‘पासपोर्ट मैन’ माना जाता है।
डॉ. ज्ञानेश्वर मुले का जनसंपर्क व्यापक रहा है। अनेक समाचार पत्रो में उनके ज्ञान वर्धक आलेख छपे है।
डॉ. ज्ञानेश्वर मुले की यह किताब उनके निजी अनुभवों पर आधारित है।
उनकी ‘पाकिस्तान डायरी’ और ‘सुंदर जापान’ दोनो चाप्टर्स दिलचस्प हैं।
इसी तरह विभिन्न देशों के नाइयों पर उनका विवरण भी सुंदर है।
डॉ. ज्ञानेश्वर मुले एक जाने माने लेखक और राजनयिक होने के साथ-साथ एक अच्छे इंसान भी रहे हैं।
वह अपने आस-पास होने वाली घटनाओं पर गहरी नजर रखते है।
यह उनकी किताब को बहुत दिलचस्प बनाता है।
एक राजनयिक का जीवन चुनौतीपूर्ण होता है। वह अपना करियर एक जगह टिककर नहीं बिता सकते।
हर तीन या चार साल बाद उनकी पोस्टिंग किसी अज्ञात जगह पर कर दी जाती है।
इन समर्पित व्यक्तियों को विदेशी भूमि में अपने घरेलू देश के हितों का प्रतिनिधित्व करने का काम सौंपा जाता है, एक ऐसी भूमिका जो अपने साथ चुनौतियों और सम्मान का एक अनूठा सेट लेकर आती है।
अलग-अलग लोगों के बीच रहना कैरियर राजनयिक होने का सबसे महत्वपूर्ण लाभ है। यह अनुभव विभिन्न संस्कृतियों, परंपराओं और दृष्टिकोणों की गहरी समझ को बढ़ावा देता है।
विदेशी समाजों के ताने-बाने में खुद को डुबो कर, राजनयिक अमूल्य अंतर्दृष्टि प्राप्त करते हैं जो प्रभावी बातचीत और सहयोग की सुविधा प्रदान करती हैं।
लेकिन, डिप्लोमैट का अज्ञात गंतव्यों पर लगातार स्थानांतरण एक महत्वपूर्ण चुनौती पैदा कर सकता है। विदेश सेवा में बार-बार स्थानांतरण परिवारों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है, जिससे शिक्षा, करियर और सामाजिक संबंध बाधित हो सकते हैं।
राजनयिक अंतरराष्ट्रीय संबंधों और वैश्विक मुद्दों की व्यापक समझ हासिल करते हैं, जिससे वे विदेश नीति को आकार देने में विशेषज्ञ बन जाते हैं।
यह पेशा घरेलू और विदेश दोनों ही प्रभावशाली हस्तियों तक बेजोड़ पहुंच प्रदान करता है, जिसका लाभ अपने देश की भलाई के लिए उठाया जा सकता है।
विविध वातावरण में रहने से व्यक्तिगत विकास को बढ़ावा मिलता है, किसी के विश्वदृष्टिकोण का विस्तार होता है और अनुकूलन क्षमता बढ़ती है।
राजनयिक स्वयं को राजनीतिक अस्थिरता या सुरक्षा जोखिम वाले क्षेत्रों में पा सकते हैं, जिसके लिए उच्च स्तर की सावधानी और सतर्कता की आवश्यकता होती है।
हमारे संत लिखते हैं कि देश विदेश का भ्रमण आपको बुद्धिमान व्यक्ति बनाती है।
मुझे विश्वास है कि डॉ. ज्ञानेश्वर मुले की पुस्तक आपको एक कैरियर राजनयिक के जीवन के बारे में जानकारी प्रदान करेगी। यह युवा पुरुषों और महिलाओं को राजनयिक सेवा में शामिल होने के लिए भी प्रोत्साहित करेगा।
मैं डॉ. ज्ञानेश्वर मुले को पुस्तक लिखने के लिए बधाई देता हूं और पाठकों को पुस्तक की अनुशंसा करता हूं। उनके लिखने की स्टाईल अच्छी है और मैं उनसे लिखता रहने का अनुरोध करूंगा।
मै पुस्तक की अनुवादक श्री शशि निघोजकर का भी हार्दिक अभिनंदन करता हूँ।
धन्यवाद।
जय हिंद। जय महाराष्ट्र।।