29.06.2024 : ‘वाग्धारा’ संस्था द्वारा आयोजित ‘वाग्धारा कला महोत्सव’ तथा ‘राष्ट्र सेवा सम्मान’
‘वाग्धारा’ संस्था द्वारा आयोजित ‘वाग्धारा कला महोत्सव’ तथा ‘राष्ट्र सेवा सम्मान’। २९ जून २०२४
श्री रूमी जाफरी, फिल्म निर्देशक
श्री जयंत देशमुख, कला निर्देशक
डॉ. वागीश सारस्वत, अध्यक्ष, ‘वाग्धार
श्री अजय कौल, प्राचार्य, चिल्ड्रेन वेलफेयर स्कुल
सुश्री कंचन अवस्थी अभिनेत्री
रंगभूमि, साहित्य, संस्कृति, शिक्षा, कला, सिनेमा, पत्रकारिता तथा सामाजिक क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य कर रहे ‘राष्ट्र सेवा सम्मान’ के सभी प्राप्तकर्ता
भाइयों और बहनों,
‘वाग्धारा कला महोत्सव’ तथा ‘वाग्धारा राष्ट्र सेवा सम्मान’ समारोह के साथ जुड़कर और कला क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य कर रहे ऐसे प्रतिष्ठित लोगों से मिलकर खुशी हो रही है।
आप सभी सम्मान प्राप्त कर्ताओं का मै हार्दिक स्वागत और अभिनंदन करता हूं।
हमारे पुराने पडोसी जयंत जब भी मुझे मिलने आते है और किसी प्रोग्राम में मुझे बुलाते है तो मुझे जाना ही पड़ता है। जयंत हमारे नजरो के सामने बड़ा हुआ।
जयंत मुंबई में फिल्म इंडस्ट्री में काम करता है इतना पता था। लेकिन, वह क्या करता है यह नहीं पता था। यहां आने के बाद पता चला कि, जयंत एक प्रसिद्ध कला निर्देशक और सेट डिजाइनर हैं, जिन्होंने कई फिल्मों, और टीवी धारावाहिकों के लिए सेट तैयार किए हैं, निर्देशन किया है। उनके प्रति स्नेह और आदर और बढ़ गया।
जयंत की वजह से मेरा डॉ वागीश सारस्वत से परिचय हुआ। डॉ. वागीश जाने माने पत्रकार रहे है, लेखक, व्यंग्यकार और अभी पार्टी प्रवक्ता के रूप में आज कार्य कर रहे है।
जानकर प्रसन्नता हुई कि युवाओं को एक सार्थक मंच देने के उद्देश्य से डॉ. ठाकुर दास दिनकर के नेतृत्व में वर्ष 1985 में ‘वाग्धारा राष्ट्रीय मंच’ की स्थापना की गई थी। आज डॉ. वागीश सारस्वत जी तथा अन्य सभी सदस्य ‘वाग्धारा’ की विरासत समर्पण भाव और प्रतिबद्धता के साथ आगे बढ़ा रहे हैं, जो वाकई सराहनीय है।
हमारा देश साहित्य, तत्वज्ञान, संगीत, नृत्य शास्त्र, कला और संस्कृति की एक महान भूमि रही है। हम सभी अच्छे कार्य के आरंभ में गणेश जी को वंदन इसलिये करते है, क्यो कि, गणेश जी १४ विद्या और ६४ कलाओं के स्वामी है।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा था कि, कला, वास्तुकला और संस्कृति तभी फलती-फूलती है जब समाज में विचारों की स्वतंत्रता हो और अपने तरीके से काम करने की स्वतंत्रता हो।
हमें स्कूलों और कॉलेजों में कला शिक्षा की आवश्यकता है ताकि सीखना आनंददायक हो सके।
हमें व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में भी कला, ललित कला और प्रदर्शन कला की आवश्यकता है।
कला शिक्षा सीखने को सुखद बनाएगी और रचनात्मकता को बढ़ावा देगी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कला शिक्षा बच्चों को लोगों की समस्याओं के प्रति संवेदनशील बनाएगी। यह शिक्षा को तनाव मुक्त बनाने में मदद करेगी।
मित्रों,
आज जब भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है, हमें योग के साथ हमारी कला, संस्कृति के प्रचार प्रसार के लिये भी प्रतिबद्ध होना चाहिए।
साहित्य, संगीत, लेखन, रंगमंच, नृत्य, गायन, वादन, चित्रकला, काष्ठ कला, वास्तु कला आदि सब विभिन्न कलाओं के रूप हैं।
इन सभी कलाओं का अपना स्थान और अपना योगदान है।
अभिनय, रंगमंच, गायन में पारंगत होने के लिए गुरुओं की जरूरत होती है।
कोई भी वाद्य यंत्र बिना गुरु और बिना साधना के सीखना संभव नहीं है।
जो लोग कला के लिए अपना जीवन समर्पित करते हैं वह अक्सर कहते हैं कि हम अभी भी सीख रहे हैं, सीखने की प्रक्रिया उम्र के आखिरी पड़ाव और लोकप्रियता के आखिरी शिखर तक लगातार चलती रहती है।
मुंबई कला की नगरी है। मुंबई सरस्वती की नगरी है, मुंबई माया नगरी है, मुंबई को मां मुंबा देवी के साथ – साथ लक्ष्मी जी की नगरी भी कहा जाता है।
मुंबई में देश के कोने कोने से कलाकार लोग अपनी कला को निखारने के लिए, लोकप्रियता पाने के लिए, नाम कमाने के लिए और धन कमाने के लिए आते हैं।
देश के विभिन्न प्रदेशों से आये गायक, गीतकार, संगीतकार, रंगकर्मी, अभिनेता अभिनेत्रियां मुंबई में आकर नाम प्रतिष्ठा प्राप्त की है।
मोहम्मद रफी साहब पंजाब से आये, तलत मेहमूद लखनऊ से आये। पंडित हरिप्रसाद चौरासिया जी प्रयागराज से आये। सचिन देव बर्मन त्रिपुरा से आये। ये सभी महान लोग महाराष्ट्र के हो गये।
मुंबई शहर मैं असम, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, केरल, सिक्किम, नागालैंड, राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, गुजरात आदि सभी प्रांतों से कलाकार आते हैं।
हमारे छत्तीसगढ़ से भी हजारों लोग यहां आते हैं और सफलता हासिल करते हैं।
टेलीविज़न, डिजिटल मीडिया और यहाँ तक कि सोशल मीडिया के आने से कई कला रूपों को नया जीवन मिला है।
जो लोग थिएटर किराए पर नहीं ले सकते, वे सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिभा दिखा सकते हैं। मैं इसे कला जगत का लोकतंत्रीकरण कहता हूं।
हमारे पास हमारी भारतीय संस्कृति की तमाम कलाएं बेहद समृद्ध हैं, अकेले भरत मुनि का नाट्य शास्त्र कलाओं के लिए पर्याप्त हैं।
नया करना बहुत जरूरी है, नए लोगों का आगे आना भी बहुत जरूरी है लेकिन साथ में सभ्यता, संस्कृति और संस्कार की भी रक्षा की जानी चाहिए।
जो कला से जुड़ता है वो समृद्ध व वैभवशाली होता है। लेखन कला, भाषण कला या इस संसार में जो भी रचनात्मक है, वह कला है।
महाराष्ट्र के विश्वविद्यालयों में ‘इंद्रधनुष’ नाम से सांस्कृतिक महोत्सव का आयोजन किया जाता है जिससे नए नए कलाकार उभर कर आते है।
कला को प्रोत्साहन देना भी राष्ट्र सेवा है। क्योंकि कलाओं से ही जीवन की सार्थकता बनती है।
डॉ. वागीश सारस्वत ने व वाग्धारा कला महोत्सव का आयोजन किया और इस कला महोत्सव के लिए मुझे आमंत्रित किया इसके लिए में स्वयं को भाग्यशाली समझता हूं।
मुझे बताया गया है कि आज मुंशी प्रेमचंद के रंगभूमि नाटक का भी मंचन किया जा रहा है।
मैं वाग्धारा की पूरी टीम को ह्रदय से धन्यवाद देता हूं और शुभकामनाएं देता हूं कि कलाओं के विकास के लिए हमेशा नित नए आयोजन करते रहें।
जय हिंद। जय महाराष्ट्र।।