25.11.2023 : एशियाटिक सोसायटी मुंबई का स्थापना दिवस समारोह
एशियाटिक सोसायटी मुंबई का स्थापना दिवस समारोह। टाऊन हॉल, फोर्ट मुंबई। ११३० बजे। २५ नवंबर २०२३
डॉ. सब्यसाची मुखर्जी, महानिदेशक, छत्रपती शिवाजी महाराज वस्तू संग्रहालय
प्रोफेसर (श्रीमती) विस्पी बालापोरीया, अध्यक्षा, एशियाटिक सोसायटी मुंबई
डॉ श्रीमती नलवाला
प्रोफेसर श्रीमती मंगला सर-देशपांडे
सोसायटी के सभी सम्मानित सदस्य
आज सम्मानित हो रहे विद्वान भाईयों और बहनों,
मुंबई का बौद्धिक वैभव जिसे कह सकते है, ऐसे एशियाटिक सोसायटी मुंबई के ‘महा ग्रंथालय’ में आकर अत्यधिक प्रसन्नता हुई।
मेरे लिये बडी खुशी की बात है कि, इस संस्थान के 219 वें स्थापना दिवस के अवसर पर उपस्थित रहने का मुझे अवसर मिला है।
सबसे पहले मै, स्थापना दिवस के अवसर पर एशियाटिक सोसायटी मुंबई का हार्दिक अभिनंदन करता हूं।
दो सौ वर्ष पहले, इस संस्था की सुंदर वास्तू का निर्माण पूरा होने पर एशियाटिक सोसायटी के अध्यक्ष तथा मुंबई के गव्हर्नर जॉन माल्कम ने कहा था कि,
“वित्तीय कठिनाइयों के बीच भी ज्ञान प्राप्ति और प्रसार के लिए कोई भी सुविधा देना वास्तव में सच्ची बुद्धिमानी है, और उज्जवल भविष्य के लिये निवेश है।”
आज, एशियाटिक सोसायटी मुंबई यह संस्थान, पौर्वात्य कला, विज्ञान और साहित्य का अध्ययन और अनुसंधान का एक खजाना है।
मुझे बताया गया है कि सोसायटी के पास दुर्लभ पुस्तकों का एक समृद्ध संग्रह है, जिनमें से कई पुस्तक मूल्यवान हैं।
उदाहरण के लिए कल्पसूत्र, शाहनामा और दांते की ‘डिवाइन कॉमेडी’ की पांडुलिपियाँ यहाँ है।
अन्य पांडुलिपियाँ भी हैं, उनमें से कुछ ताड़ के पत्ते पर, संस्कृत, पाली, अरबी और फ़ारसी में हैं और लगभग 12,000 सिक्कों का एक मुद्राशास्त्रीय संग्रह है। इसमें समुद्र गुप्त काल और मुगल काल के सोने के सिक्के और सोपारा बौद्ध अवशेष शामिल हैं। रेअर मॅप्स का भी एक अनूठा संग्रह है।
किसी दिन इस महत्वपूर्ण संग्रह को देखने के लिए मै स्वयं फुरसत में आऊंगा।
मुझे बताया गया है कि देश के कोने-कोने से तथा विदेशों से भी अनेक विद्वान एशियाटिक सोसायटी की लायब्ररी में दुर्लभ संदर्भ सामग्री खोजने आते हैं।
जानकर ख़ुशी हुई कि, इस लायब्ररी में भारतरत्न महामहोपाध्याय डॉ. पी. वी. काणे, डॉ. भाऊ दाजी लाड, रामकृष्ण गोपाल भांडारकर और पंडित भगवानलाल इंद्रजी, जैसे विद्वान लोग जुड़े थे और उन्होंने सोसायटी के तत्वावधान में उत्कृष्ट शोध किया है।
हमने यह भी पढ़ा कि भारत रत्न डॉ बाबासाहेब आंबेडकर भी इस लायब्ररी में आते थे, जो अपने आप में गर्व की बात है।
आज कल यह आम धारणा हो रही है कि युवा लोगों ने ग्रंथालयों से मुंह मोड़ लिया है।
पर ये सच नहीं है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के आगमन के साथ, लोग ‘इज ऑफ रिडींग’ की खोज कर रहे हैं।
‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ की तरह लोग अपनी सुविधानुसार ‘ईज ऑफ रीडिंग’ करना चाहते हैं। समाचार पत्र आने के पहले लोग खबरे मोबाईल पर ही देख लेते है।
आज ज्यादातर लोग और खासकर बच्चे और युवा अपने स्मार्टफोन या किंडल पर पढना पसंद करते हैं।
वे अपने स्मार्ट फोन का उपयोग क्रिकेट मैच देखने, ऑनलाईन लेक्चर सुनने, फिल्में देखने, दोस्तों के साथ गपशप करने और यहां तक कि किताबें पढ़ने के लिए करते हैं।
तो पुस्तक पढना बंद नहीं हुआ। पढने का तरिका बदल गया है ऐसा मै मानता हूं।
मुंबई जैसे बड़े शहरों में, किताब लाने या वापस करने के लिए बार-बार ग्रंथालय जाना संभव नहीं हो पाता है।
इसलिये इ-बुक्स, ऑडिओ बुक्स, डिजिटल बुक्स पसंदीदा विकल्प बन चुके हैं।
अक्सर जब पुस्तकें बहुत पुरानी हो जाती हैं, तो पुस्तकालय उन्हें जारी नहीं करता है।
ऐसे में लाइब्रेरी को पुस्तक की डिजिटल प्रति उपलब्ध कराने का कष्ट करना चाहिए।
एशियाटिक लाइब्रेरी भाग्यशाली है कि उसके पास बहुत बड़ी जगह उपलब्ध है, जो मुंबई में एक लक्जरी है।
लाइब्रेरी को इंटेरिअर डिजाइनरों की मदद से रि-डिजाइन करना चाहिए और इसे युवा पाठकों के अनुकूल बनाना चाहिए।
एशियाटिक लाइब्रेरी के लिए यह अध्ययन करना अच्छा होगा कि दुनिया की अन्य लाइब्रेरी किस प्रकार खुद को नया रूप दे रही हैं और तदनुसार अपने भविष्य के विकास की योजना बनानी चाहिए।
मुंबई शहर दान और परोपकार के लिए जाना जाता है। इस सोसायटी के निर्माण में भी नाना शंकरशेट जैसे अनेक दान वीरों का योगदान रहा है।
मैंने हाल ही में टाटा मुंबई मैराथन से जुडे एक सम्मान समारोह में भाग लिया।
मैराथन के माध्यम से, देश भर से सैकड़ों गैर सरकारी संगठन विभिन्न विभिन्न सामाजिक कार्यों के लिए करोड़ों रुपये धन जुटाते हैं।
इसलिए धन की उपलब्धता इस शहर में कोई समस्या नहीं है।
हमें सही प्रस्तावों के साथ सही लोगों से संपर्क करने की जरूरत है।
यदि संभव हो तो हमें सोसायटी के मामलों के प्रबंधन में युवा पीढ़ी के प्रतिनिधियों को, कॉर्पोरेट मेम्बर्स को भी शामिल करना चाहिए।
मुझे बताया गया है कि एशियाटिक सोसायटी के तत्वावधान में अतिथि व्याख्यान और विरासत पर्यटन का भी आयोजन किया जाता है, जो सराहनीय है।
राज्य के २६ विश्वविद्यालयों का कुलाधिपती होने के नाते एशियाटिक सोसायटी को राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर काम करने का मै आहवान करुंगा।
अकेला मुंबई शहर कई विश्वविद्यालयों, केंद्रीय विश्वविद्यालयों और निजी विश्वविद्यालयों का घर है।
विश्वविद्यालयों के साथ बढ़ते जुड़ाव से लाइब्रेरी में लोगों की संख्या बढ़ेगी।
लाइब्रेरी का अपना वार्षिक साहित्यिक उत्सव भी होना चाहिए, जो इसे गतिविधियों का केंद्र बना देगा।
एशियाटिक सोसायटी एक संगीत समारोह का भी आयोजन कर सकता है।
आज दुनिया में विरासत की तरह और कुछ भी नहीं बिकता।
दुनिया अपनी विरासत का प्रदर्शन कर करोड़ों कमा रही है।
हमें अपनी गतिविधियों को बनाए रखने के लिए अपनी विरासत का अवश्य प्रदर्शन करना चाहिए।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसे विद्वान संस्थान अब धन की कमी के कारण अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
यह महत्वपूर्ण है कि हमें लाभार्थियों, कॉरपोरेट्स और शुभचिंतकों से दान आकर्षित करने के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिए।
जानकर ख़ुशी हुई कि महाराष्ट्र सरकार ने डिजिटलीकरण के दूसरे चरण के लिए सोसायटी को महत्वपूर्ण अनुदान दिया है।
इसने सोसायटी को एक वेब पोर्टल स्थापित करने में सक्षम बनाया है, जिसने भारत और विदेश के विद्वानों को शोध सामग्री तक पहुंचने में सक्षम बनाया है।
आइए हम सब मिलकर एशियाटिक सोसाइटी ऑफ मुंबई को फिर से महान बनाएं।
एशियाटिक सोसाइटी वास्तव में भाग्यशाली है कि उसे भारत के जानेमाने विद्वान, इतिहासकार, लेखक और संपादक उसके अध्यक्ष के रूप में मिले।
आज सोसायटी की मानद फैलोशिप दी गई है ऐसे सभी विद्वानों को बधाई देता हूं।
एक बार फिर एशियाटिक सोसाइटी का अभिनंदन करता हूं और कामना करता हूं कि वह अपने भविष्य के प्रयासों में निरंतर सफलता प्राप्त करती रहे।
धन्यवाद।
जय हिन्द। जय महाराष्ट्र।।