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    18.03.2024 : डॉ. बालासाहेब सावंत कोंकण कृषि विश्वविद्यालय दापोली का 42 वां दीक्षांत समारोह

    Publish Date: March 18, 2024

    डॉ. बालासाहेब सावंत कोंकण कृषि विश्वविद्यालय दापोली का 42 वां दीक्षांत समारोह। दिनांक 18 मार्च 2024

    पद्म भूषण प्रा. ज्येष्ठराज जोशी, भूतपूर्व संचालक तथा भूतपूर्व कुलगुरू ICT मुंबई

    डॉ. संजय भावे, कुलपति, डॉ. बालासाहेब सावंत कोंकण कृषि विश्वविद्यालय

    विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद के सदस्य,

    विद्या परिषद के सदस्य,

    सभी विभागों के अधिष्ठाता,

    आमंत्रित अतिथि गण,

    स्नातक एवं अभिभावकगण

    डॉ. बालासाहब सावंत कोंकण कृषि विश्वविद्यालय के 42 वें दीक्षांत समारोह के साथ जुडकर ख़ुशी हो रही है।

    वास्तव में ऑनलाइन उपस्थित रहने के बजाय प्रत्यक्ष रूप से विश्वविद्यालय का दौरा करने की मंशा थी।

    लेकिन समयाभाव और अन्य व्यस्तताओं के कारण आज आपसे ऑन लाइन के जरिये ही बात कर रहा हूं।

    आज उपाधि प्राप्त कर रहे सभी कृषि स्नातक छात्र- छात्राओं का मै हार्दिक अभिनंदन करता हूं।

    दीक्षांत समारोह के अवसर पर, मैं आपके माता-पिता और अभिभावकों को भी बधाई देता हूं। उन्होंने जीवन के हर मोड़ पर आपका साथ दिया है और आपकी सफलता में निर्णायक भूमिका निभाई है।

    मैं विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों और यहां की पूरी टीम को भी बधाई देता हूं, जिनकी मेहनत के फल स्वरुप आज आप अपने लक्ष्य को हासिल कर पाए हैं।

    आज विशेष रूप से मैं आचार्य पदवी प्राप्त कर रहे स्नातक, स्वर्ण पदक विजेताओं और पदवी प्राप्तकर्ताओं को बधाई देता हूं।

    मैं विश्वविद्यालय के कुलपति, संकाय सदस्यों, अनुसंधान वैज्ञानिकों और पूर्व छात्रों को भी बधाई देता हूं।

    भारत के माननीय प्रधान मंत्री ने अगले कुछ वर्षों में भारत को तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है।

    इस लक्ष्य को प्राप्त करने में कृषि क्षेत्र को सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।

    डॉ. बालासाहब सावंत कोंकण कृषि विश्वविद्यालय, दापोली, कृषि जगत में निर्मित विविध चुनौतियों को स्वीकार करने की क्षमता रखता है।

    विश्वविद्यालय के समस्त विभागों द्वारा किये गये अनुसंधानों को देखकर मुझे प्रसन्नता हुई। विश्वविद्यालय के अंतर्गत कृषि, बागवानी, मत्स्य पालन, कृषि अभियांत्रिकी, वानिकी जैसे महाविद्यालयों तथा अनुसंधान केन्द्रों द्वारा विविधतापूर्ण एवम नवोन्मेषी अनुसंधान किये जा रहे है। साथ ही उनका विस्तृत रूप से प्रचार प्रसार किसानों के लिये किया जा रहा है।

    विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गयी धान की किस्में कोंकण क्षेत्र में तथा अन्यत्र बहुत प्रसिद्ध है। इन किस्मों की वजह से प्रति हेक्टेयर उत्पादन में लगभग पांच गुना वृद्धी हुई है।

    कोंकण का हापूस आम दुनिया में मशहूर है। कोंकण में आम का पैदावार क्षेत्र बढाने में विश्वविद्यालय द्वारा विकसित कलम तथा उत्पादन तकनिकी ज्ञान का अहम योगदान है।

    इसी तरह काजू की विश्वविद्यालय द्वारा विकसित अधिक पैदावार देने वाली ‘वेंगुर्ला सीरीज’ की किस्में अत्यधिक लोकप्रिय है और बहुत बडे क्षेत्र पर इसका उत्पादन लिया जा रहा है।

    विश्वविद्यालय द्वारा महाराष्ट्र के 720 किलोमीटर लंबे समुद्रतटीय क्षेत्र तथा मीठे पानी के मत्स्य पालन में महत्वपूर्ण अनुसंधान कार्य किया गया है। जिसकी वजह से मत्स्य उत्पादन में वृद्धी हुई है।

    बांस इस प्रदेश का एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। इसके रोपण, प्रबंधन तथा प्रसंस्करण के विभिन्न पहलुओं पर शोध किये जा रहे है, जैसे अगरबत्ती, हस्तकला, फर्निचर एवं बांस के खाद्य पदार्थ इत्यादि। बांस को रसायनों द्वारा उपचारित कर के उसका उपयोग सस्ते और टिकाऊ घर, एवं पॉलीहाउस बनाने में किया जा रहा है।

    किसानों की आय को दोगुना करना, उन्हें तकनीकी जानकार बनाना, कृषि अनुसंधान और शिक्षा को बढ़ावा देना, और कृषि से संबंधित बुनियादी ढांचे का निर्माण करना, कृषि क्षेत्र के विकास और किसानों के कल्याण के लिए कुछ प्रमुख लक्ष्य रखे गये हैं और उन पर काम किया जा रहा है।

    इस वर्ष से महाराष्ट्र के सभी विश्वविद्यालयों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति का क्रियान्वयन होने जा रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उद्देश्य समावेशी और उत्कृष्टता के दोहरे उद्देश्यों को प्राप्त करके 21 वी सदी की जरूरतों को पूरा करने की दिशा में शिक्षा प्रणाली को पुनर्जीवित करना है।

    नयी शिक्षा नीति क्रियात्मक सोच और अनुसंधान को प्रोत्साहित करने का प्रयास भी करती है। इस नीतिका लक्ष्य उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात GER को वर्ष 2035 तक 50 प्रतिशत तक बढ़ाना है।

    विश्वविद्यालयद्वारा अध्ययन – अध्यापन, प्रकाशन, अनुसन्धान एवं समाज से जुड़ने के लिए अनेक गतिविधियों का निरंतर आयोजन किया जा रहा है, यह विश्वविद्यालयकी महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

    मित्रों,

    आने वाले वर्षों में हमें आसन्न चुनौतियों के लिए खुद को तैयार रखना होगा।

    नंबर एक : भारत दुनिया में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बनकर उभरा है।

    हमारे पास खेती के लिए जनशक्ति और खेती की जानकारी है।

    हालाँकि खेती का रकबा लगातार घट रहा है।

    हमें अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भर और चयनित क्षेत्रों में खाद्य अधिशेष बनने के लिए विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार की शक्ति की आवश्यकता होगी।

    जलवायु परिवर्तन अब कोई दूर का ख़तरा नहीं है – यह एक वास्तविकता है जिससे दुनिया भर के किसान रोज़ जूझ रहे हैं।

    बढ़ते तापमान, अनियमित मौसम पैटर्न, कीटों और बीमारियों का बढ़ता दबाव और वर्षा के बदलते पैटर्न ने कृषि को पहले से कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण बना दिया है।

    विश्वविद्यालय को किसानों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पूरी जानकारी देकर तैयार रखना होगा।

    प्रिय स्नातक छात्रों,

    मुझे आपसे बहुत उम्मीदें हैं।

    वर्ष 2047 में जब भारत एक विकसित राष्ट्र होगा, आप सभी अपने करियर के शिखर पर होंगे।

    आपके पास भारत को कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने और देश को दुनिया की ‘फूड बास्केट’ में बदलने में अपनी भूमिका निभाने का अनूठा अवसर है।

    अपनी स्थापना से यह विश्वविद्यालय लगातार कृषि शिक्षा एवं तकनीकी ज्ञान में सतत कार्यरत है। भविष्य में भी अपना योगदान कोंकण एवं देश के विकास में देता रहे ऐसी मेरी शुभकामना है।
    मैं एक बार फिर विश्वविद्यालय को बधाई देता हूं और उसके भविष्य के प्रयासों में सफलता की कामना करता हूं।

    धन्यवाद।
    जय हिंद। जय महाराष्ट्र।।