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    17.06.2023 : MIT स्कूल ऑफ गवर्नमेंट द्वारा आयोजित पहला राष्ट्रीय विधायक सम्मेलन का समापन सत्र

    Publish Date: June 17, 2023

    MIT स्कूल ऑफ गवर्नमेंट द्वारा आयोजित पहला राष्ट्रीय विधायक सम्मेलन का समापन सत्र

    श्री एकनाथ शिंदे, मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र

    डॉ प्रमोद सावंत, मुख्यमंत्री, गोवा

    श्री हरिवंश, उप सभापति, राज्यसभा

    श्री राहुल नार्वेकर, अध्यक्ष, महाराष्ट्र विधानसभा

    श्री शिवराज पाटील, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष

    डॉ मीरा कुमार, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष

    श्री देवेष चन्द्रा ठाकुर, अध्यक्ष, बिहार, विधान सभा

    श्री अवध बिहारी चौधरी, वक्ता, बिहार, विधान सभा

    डॉ सी. पी. जोशी, वक्ता, राजस्थान, विधान सभा

    श्री कुलदीप सिंह पठानियाँ, वक्ता, हिमाचल प्रदेश, विधान सभा

    श्री ललरिनलियाना साईलो, वक्ता, मिजोराम, विधान सभा

    श्री सतीश महाना, वक्ता, मध्य प्रदेश, विधान सभा

    श्री यु. टी. खादर फरीद, वक्ता, कर्नाटक, विधान सभा

    श्री अरुण कुमार उप्रेती, वक्ता, सिक्किम, विधान सभा

    श्री एमबलम सेलवम, वक्ता, पॉन्डिचेरी, विधान सभा

    डॉ. राहुल कराड, संयोजक

    विभिन्न राज्य विधान मंडलों के सभापति, अध्यक्ष,

    सम्मानित प्रतिनिधियों,

    एमआईटी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट द्वारा आयोजित राष्ट्रीय विधायक सम्मेलन में देश के विभिन्न हिस्सों से आए सभी विधायकों का इस समापन सत्र में मैं हार्दिक स्वागत करता हूं।

    यह संभवत पहली बार है कि भारत के सभी प्रदेशों के विधायक एक साझा मंच पर एकत्रित हुए हैं।

    मैं एमआईटी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट को उसकी शानदार पहल के लिए बधाई देता हूं। मुझे विश्वास है इस पहल से विधायकों को अपने अनुभव साझा करने और राज्य के विभिन्न हिस्सों में अपनाई जाने वाली सर्वोत्तम प्रथाओं को सीखने का अवसर मिला।

    मैं माननीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी का इस सम्मेलन को उनके बहूमूल्य सम्बोधन के लिए हृदय से आभार व्यक्त करना चाहता हूं।

    दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधान मंत्री के रूप में, आपका मार्गदर्शन और नेतृत्व हम सभी को लोकतंत्र और मजबूत करने में सहायक सिद्ध होगा।

    हम राष्ट्र की प्रगति के प्रति आपकी अटूट प्रतिबद्धता के लिए अत्यंत आभारी हैं।

    मैं वर्ष 1980 में मध्य प्रदेश विधान सभा का सदस्य बना। उस समय छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश का हिस्सा था।

    विधानसभा में मेरे पांच वर्षों ने मुझे संसदीय लोकतंत्र के कामकाज और कार्य के नियमों को समझने में मदद की।

    प्रश्नकाल क्या होता है, शून्यकाल क्या होता है, स्थगन प्रस्ताव क्या होता है, प्राईवेट मेम्बर बिल, यह मेरी समझ में नहीं आता था।

    मुझे यह भी नहीं पता था कि सदन की विभिन्न समितियां कैसे काम करती हैं।

    इसलिए राज्य स्तर पर मेरे पांच साल काफी शिक्षाप्रद रहे।

    इसने मुझे लोकसभा के सदस्य के रूप में मेरी अगली भूमिका के लिए तैयार किया।

    मुझे 7 बार लोकसभा का सदस्य बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

    मुझे विभिन्न संसदीय समितियों के अध्यक्ष और सदस्यों के रूप में कार्य करने का अवसर मिला।

    मैं आपको बता सकता हूं कि संसदीय समिति हमारे लोकतंत्र में कितनी प्रभावी भूमिका निभाते हैं।

    पहले विधान सभा में किसी विषय के बहस में भाग लेने के लिए आवश्यक सामग्री एकत्रित करते थे। लेकिन अब नेट, गुगल के माध्यम से जल्द ही जानकारी ले सकते है। अक्सर देखने में आता है कि विधान सभा के समितियों की बैठक में विधायक तैयारी से नहीं आते, जिसके कारण चर्चा जैसा होना चाहिए वैसा नहीं हो पाता।

    यह देखा जाता है कि सदस्य विधान सभा की कार्यवाही के समय पूरा समय नहीं बैठते। अगर हम दूसरे सदस्य क्या बोल रहे है उसे भी सुने, तो कई महत्वपूर्ण जानकारी मिल सकती है ।

    अक्सर यह भी देखा जाता है कि विधान सभा की कार्यवाही प्रारंभ होती तो कोरम पूरा नहीं होता। कई बार जरूरी बिल पर बहस होती है तो व्हीप के जरिये कोरम पूरा करना पडता है।

    अगर उत्कृष्ट सदस्य बनना है, तो सभी कार्यवाही में भाग लेना चाहिए। और अपनी बातों को सही ढंग से सदन में रखना चाहिए। सदस्य सदन में जो भी बोलता है, विधान सभा का धरोहर हो जाता है, वह रिकॉर्ड होता है। इसलिये कई सदस्य जब सदन के बहस में भाग लेते तो कई बातों को रिफरेंस के रूप में बोलते है। इसलिये मेरा आग्रह है, सभी सदस्यों को सदन में ज्यादा से ज्यादा समय देना चाहिये।

    जब कोई सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण करता है, तो उसे मसूरी, हैदराबाद, नागपुर या अन्य स्थानों पर प्रशिक्षण लेना पड़ता है।

    इसी तरह मुझे लगता है कि पहली बार सदन में कदम रखने से पहले एक विधायक को कम से कम 3 महीने का प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहिए। एम आई टी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट और विभिन्न राज्य विधान मंडल इस दिशा में पहल कर सकते है।

    यह सम्मेलन हमारे लिए एक साथ आने, विचारों का आदान-प्रदान करने और एक-दूसरे के अनुभवों से सीखने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच के रूप में कार्य करता है। बहुत अच्‍छा होगा यदि यह सम्‍मेलन हर वर्ष आयोजित किया जाए।

    विभिन्न विषयों पर रखे हुए सेशन्स, राज्यों के पॅव्हिलियन, हमें एक दुसरे को समझने में उपयुक्त सिद्ध होंगे ऐसा मुझे विश्वास है।

    विधायकों के रूप में, नीतियों और कानूनों को आकार देने की बड़ी जिम्मेदारी आप लेते हैं। जो हमारे प्रदेश के नागरिकों के जीवन को सीधे प्रभावित करते हैं।

    हमारे फैसलों में समुदायों को बदलने, व्यक्तियों को सशक्त बनाने और प्रगति को गति देने की शक्ति है।

    इसलिए, हमारे लिए यह अनिवार्य है कि हम उत्कृष्टता के लिए लगातार प्रयास करें, बदलाव का सहर्ष स्वीकार करे और शासन के लिए नवीन दृष्टिकोणों को बढ़ावा दें।

    पूरे इतिहास में, महान नेताओं ने राष्ट्र निर्माण में ज्ञान और शिक्षा के महत्व को पहचाना है।

    इस सम्मेलन का विषय, “सर्वश्रेष्ठ अभ्यास और अभिनव विकासात्मक मॉडल,” सामयिक और प्रासंगिक दोनों है।

    हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी जी ने नये संसद भवन का उदघाटन किया। नई संसद को पेपरलेस बनाने की बात कही है। हमें अपने अद्वितीय राष्ट्रीय और क्षेत्रीय संदर्भों के अनुरूप उन्हें अनुकूलित करते हुए दुनिया भर से सफल मॉडलों को समझना और अपनाना चाहिए।

    नई संसद में सदस्य डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए किसी भी भाषा में कार्यवाही पढ़ या सुन सकता है। यह डिजिटल संसद, कागज रहित संसद होने जा रही है।

    मुझे विश्वास है कि अगले कुछ वर्षों में सभी राज्य विधानसभाएं भी कागज रहित हो जाएंगी।

    इससे पहले बड़ी संख्या में सदस्यों को बजट के कागजात बांटे जाते थे। कागज की भारी बर्बादी होती थी। इसके बाद राज्य विधानसभाएं भी कागजी कार्रवाई से दूर हो जाएंगी।

    राज्य विधानमंडल आम तौर पर साल में तीन बार सत्र बुलाते हैं, यानी बजट, मानसून और शीतकालीन सत्र।

    यह देखा गया है कि राज्य विधानमंडल प्रति वर्ष पहले की तुलना में कम दिनों के लिए बैठक कर रहे हैं।

    राज्य विधानमंडल मुख्य रूप से कानूनों को पारित करने और बजट को मंजूरी देने के लिए जिम्मेदार हैं।

    राज्य विधानमंडल, विभिन्न तंत्रों के माध्यम से, कार्यपालिका (सरकार) के कार्य पर एक पर्यवेक्षण निकाय के रूप में कार्य करती है।

    विधानसभा की कम बैठकें इसकी जांच की जिम्मेदारी पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।

    उदाहरण के लिए, सरकार राज्य विधानमंडल में पारित होने के लिए विभिन्न विधेयक पेश करती है। इन विधेयकों का शासन, और नागरिकों के जीवन पर प्रभाव पड़ता है।

    पर्याप्त बैठकों की कमी के कारण, सदस्यों के पास विधेयकों पर विचार-विमर्श की तैयारी के लिए पर्याप्त समय नहीं होता है, और उनमें से कई बिना अधिक चर्चा के ही पारित कर दिए जाते हैं।

    कई महत्वपूर्ण विधेयक और यहां तक कि बजट भी बिना किसी चर्चा के एक ही दिन में पारित कर दिए जाते हैं।

    वर्षों से, राज्य केंद्रीय योजनाओं के कार्यान्वयन का केंद्र बिंदु बन गए हैं। इसलिए, सरकार के काम की जांच करने के लिए विधान मंडलों के लिए अधिक बार बैठक करना आवश्यक है।

    भारतीय संविधान का अनुच्छेद 174 केवल निर्दिष्ट करता है कि राज्य विधानसभाओं की दो बैठकों के बीच छह महीने से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए।

    यह किन्तु राज्य विधानमंडलों के लिए बैठने के दिनों की संख्या निर्धारित नहीं करता है।

    सन 2002 में, संविधान के कामकाज की समीक्षा करने के लिए एक समिति ने सिफारिश की है कि 70 से कम सदस्यों वाले राज्य विधानमंडलों के सदनों को एक वर्ष में कम से कम 50 दिनों के लिए मिलना चाहिए, और अन्य सदनों को कम से कम 90 दिनों के लिए मिलना चाहिए।

    कई देशों में राज्य विधान मंडल की बैठकों के लिए एक निश्चित कैलेंडर होता है। यह सुनिश्चित करता है कि अन्य राजनीतिक घटनाक्रम इसके कामकाज को प्रभावित नहीं करते हैं।

    जब विधायक मामूली कारणों से सदन को बाधित करते हैं, तो लोगों का लोकतंत्र पर से विश्वास उठ जाता है। व्यवधानों पर नियंत्रण रखने में पार्टी व्हीप अहम भूमिका निभा सकते है।

    मैं आप सभी को सत्रों में सक्रिय रूप से भाग लेने, सार्थक चर्चाओं में शामिल होने और अपनी बहुमूल्य अंतर्दृष्टि साझा करने के लिए अनुरोध करता हूं।

    अंत में, मैं इस उल्लेखनीय सम्मेलन के आयोजन में उनके अथक प्रयासों के लिए एमआईटी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट की सराहना करता हूं।

    मैं सभी प्रतिभागियों, प्रतिनिधियों और पीठासीन अधिकारीयों को इस कार्यक्रम को शानदार और सफल बनाने में उनके योगदान के लिए आभार व्यक्त करना चाहता हूं।

    जय हिन्द। जय महाराष्ट्र।।