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    16.03.2024 : I I T रजिस्ट्रार कॉन्क्लेव, समापन समारोह

    Publish Date: March 16, 2024

    I I T रजिस्ट्रार कॉन्क्लेव, समापन समारोह। 16 मार्च 2024

    प्रोफेसर नंद किशोर, डीन (प्रशासन) I I T बॉम्बे

    श्री गणेश भोरकडे, रजिस्ट्रार

    प्रोफेसर फिलिपोस,

    डॉ नयन दाभोलकर

    देश के विभिन्न भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान – I I T – से आये रजिस्ट्रार

    भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के वरिष्ठ अधिकारी तथा प्राध्यापक गण

    महाराष्ट्र राजभवन में आपका स्वागत करते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है।

    I I T बॉम्बे ने देश के सभी I I T रजिस्ट्रारों के लिए ‘विश्व स्तरीय विश्वविद्यालय प्रशासन का निर्माण’ जैसे महत्वपूर्ण विषय पर दो दिवसीय सम्मेलन आयोजित किया, यह जानकर प्रसन्नता हुई।

    इस सुंदर पहल के लिए मै, प्रथम I I T बॉम्बे को हार्दिक बधाई देता हूं।

    मुझे विश्वास है कि आप सभी को पिछले दो दिन में प्रशासन सुधार संबंधी विभिन्न विषयों नए विचार, चिंता और अंतर्दृष्टि मिली होगी।

    विश्वविद्यालयों के प्रशासन में सुधार का विषय मुझे भी प्रिय है। महाराष्ट्र के २६ सार्वजनिक विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में, मैं भी अपने विश्वविद्यालयों को इसी प्रकार का सम्मेलन आयोजित करने के लिए सूचित करूंगा।

    भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान देश का गौरव हैं।

    राष्ट्र निर्माण में उनका योगदान असाधारण रहा है।

    I I T ने देश को विभिन्न विषयों में चिंतनशील नेता दिए हैं।

    आईआईटी के संकाय और पूर्व छात्रों ने भारत और विदेश दोनों में समाज के सभी क्षेत्रों में बड़ा प्रभाव डाला है। चाहे नॅशनल स्टॉक एक्स्चेंज हो या इस्कॉन हो, आयआयटी के पूर्व छात्र सभी जगह उत्कृष्ट कार्य कर रहे है, यह निश्चित ही गौरव की बात है।

    जब भी विश्वविद्यालयों की राष्ट्रीय रैंकिंग होती है, तो शीर्ष रैंकिंग संस्थानों में हमारे कुछ आईआईटी का नाम होता है।

    स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानो ने भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने के प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं।

    लेकिन आने वाला समय देश के लिए महत्वपूर्ण है।

    माननीय प्रधान मंत्री जी ने वर्ष 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

    ‘विकसित भारत’ की संकल्पना ‘विकसित उच्च, औद्योगिक और तकनीकी शिक्षा’ के माध्यम से ही साकार की जा सकती है।

    भारत में आईआईटी के विकास विस्तार से मुझे पता चला कि 1961 तक हमारे पास 5 आईआईटी संस्थान थे। छठा आईआईटी 1994 में गुवाहाटी में स्थापित किया गया था। वर्ष 2008 में, छह नए आईआईटी शुरू किए गए थे। बाकी आईआईटी उसके बाद खोले गए।

    प्रत्येक आईआईटी एक स्वायत्त संस्थान है। लेकिन प्रशासन को आधुनिक और छात्र हितैषी बनाने के लिए इसमें एकरूपता बनाए रखने का प्रयास किया जाना चाहिए।

    सबसे बड़ी चुनौती सभी आईआईटी में उच्च गुणवत्ता वाले फैकल्टी नियुक्त करना और बनाए रखना है।

    हमारे देश में उद्योग जगत के कर्णधारों और अकादमिक नेताओं की कोई कमी नहीं है। लेकिन वे सभी जगह जा नहीं सकते। तो आपको अपने आईआईटी के साथ उद्योग और व्यापार जगत के दिग्गजों को जोड़ने का प्रयास करना चाहिए।

    आपने देखा होगा कि, अमरिका, इंग्लंड में, कई नोबेल पुरस्कार विजेता विश्वविद्यालयों से जुड़े हुए हैं।

    इसी तरह हमें शीर्ष रिसर्चर्स, रिसोर्स पर्सन्स, सफल उद्योगपति, बैंकर्स और सभी क्षेत्रों के विद्वानों को अपने आईआईटी के साथ जोड़ना चाहिए।

    आईआईटी में प्रवेश के लिए आयोजित संयुक्त प्रवेश परीक्षा काफी कठिन मानी जाती है। इससे कोटा जैसी निजी कोचिंग फैक्ट्रियों का निर्माण हुआ है। जब मैं छात्रों की आत्महत्या के बारे में खबरें पढ़ता हूं तो मुझे दुख होता है। इस मुद्दे पर हमें चिंतन करना होगा।

    दूसरे, हमें अपने संस्थानों को समावेशी बनाना होगा।

    विशेष करके हमारे संस्थान ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों के प्रति अधिक संवेदनशील होने चाहिए। हमारे समाज में गहरी जातीय धाराएँ सक्रिय हैं। हमारे कमजोर वर्गों, एससी, एसटी, माइनॉरिटी और यहां तक कि ट्रांसजेंडर छात्रों के सुरक्षा के लिए एक समावेशी व्यवस्था होनी चाहिए।

    रैगिंग या भेदभाव का सामना करने वाले छात्रों के लिए एक प्रभावी शिकायत निवारण व्यवस्था होनी चाहिए।

    भारत के मुख्य न्यायाधीश ने I I T संस्था को न केवल उत्कृष्टता पर ध्यान केंद्रित करने, बल्कि “भेदभाव को समाप्त करने और सहानुभूति को बढ़ावा देने” के लिए भी सलाह दी है।

    अन्य विश्वविद्यालयों की तुलना में आईआईटी में महिलाओं का अनुपात काफी कम दिखता है। मैंने पढ़ा है कि I I T में लिंगानुपात लगभग 20 प्रतिशत है, जो काफी कम है। हमारे आईआईटी को महिलाओं के लिए समावेशी बनाने के लिए सचेत प्रयास करने की आवश्यकता है।

    दूसरे, हमें सभी आईआईटी में ह्यूमैनिटीज और सामाजिक विज्ञान को मजबूत करना और लागू करना होगा।

    राष्ट्रीय शिक्षा नीति इंटर डिसिप्लिनरी अध्ययन को बढ़ावा देती है और मुझे लगता है कि आईआईटी के छात्रों को भी, यदि वे चाहें तो, इतिहास, कला और संगीत का अध्ययन करने का भी विकल्प होना चाहिए।

    अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने के लिए, हमें अपने कैम्पस में सर्वोत्तम और प्रतिभाशाली छात्रों को आकर्षित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय कौन्सेलर्स की आवश्यकता है।

    हमारे I I T की छात्र, दुनिया को टेक्नॉलॉजी प्रदान करते है। तो यह और भी जरुरी है कि हमारा प्रशासन अत्याधुनिक और स्टूडेंट – फ्रेंडली होना चाहिए।

    प्रत्येक छात्र-छात्राओं की शिकायतों को विनम्रता से सुना जाए और उसका समाधान किया जाए।

    आज हमारे आईआईटी ने अबू धाबी और ज़ांज़ीबार में कैंपस खोले हैं।

    यह एक स्वागत योग्य घटना है।

    हमारे I I T संस्थानों में बडी संख्या में विदेशी छात्रों को आकर्षित करने के लिए भी सचेत प्रयास किए जाने चाहिए।

    महाराष्ट्र में 26 सार्वजनिक विश्वविद्यालयों के चांसलर के रूप में मेरी अपेक्षा है कि आईआईटी हमारे विश्वविद्यालयोंके प्रशासन के लिए भी एक अच्छा टेम्प्लेट तैयार करें।

    अक्सर, हमारे विश्वविद्यालय और आईआईटी एक-दूसरे से दूर साइलोज में काम कर रहे हैं।

    मैं आशा करता हूं कि हमारे विश्वविद्यालय और आईआईटी साथ मिल-जुलकर काम करेंगे।

    हर आईआईटी का अपना वार्षिक रिसर्च और इनोवेशन फेस्टिवल होना चाहिए।

    आपको वार्षिक रिसर्च और इनोवेशन फेस्टिवल में छात्रों, शोधकर्ताओं और संकाय सदस्यों की उपलब्धियों का प्रदर्शन करना चाहिए।

    ऐसे महोत्सवों में पारंपरिक विश्वविद्यालयों को भी आमंत्रित कर, शामिल किया जाना चाहिए।

    मुझे सभी आईआईटी प्रशासकों से बहुत उम्मीदें हैं और मुझे विश्वास है कि आप आने वाले वर्षों में हमारे I I T संस्थानों को विश्व स्तरीय बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

    आईआईटी में नवप्रवर्तन और उद्यमिता की संस्कृति है। यहा छात्रों को न केवल दायरे से हटकर सोचने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, बल्कि उन्हें अपने विचारों को वास्तविकता में बदलने के लिए आवश्यक उपकरण और सहायता भी दी जाती है।

    वर्ष २०४७ तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान को अमूल्य योगदान देना है। इन संस्थानों को मजबूत करने में सभी रजिस्ट्रारों और निदेशकों की प्रतिबद्धता और भूमिका महत्वपूर्ण होगी।

    इन शब्दों के साथ, मैं आपको बधाई देता हूं और आपके विचार-विमर्श और भविष्य के प्रयासों के लिए शुभकामनाएं देता हूं।

    धन्यवाद।
    जय हिंद। जय महाराष्ट्र।।