09.01.2024 : फीनिक्स फाउंडेशन संस्था द्वारा आयोजित पर्यावरणीय स्थिरता शिखर सम्मेलन
फीनिक्स फाउंडेशन संस्था द्वारा आयोजित। पर्यावरणीय स्थिरता शिखर सम्मेलन। मंगलवार, 9 जनवरी 2024 दोपहर 12 बजे
श्री पाशा पटेल, अध्यक्ष, राज्य कृषि मूल्य आयोग और अध्यक्ष, आयोजन समिति, पर्यावरणीय स्थिरता शिखर सम्मेलन
श्री मनोज आहूजा, सचिव, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार
श्री प्रवीण दराडे, प्रधान सचिव, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन, महाराष्ट्र सरकार
डॉ. श्रीमती विभा धवन, महानिदेशक ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान (TERI)
श्री हेमेंद्र कोठारी, अध्यक्ष, डीएसपी एसेट मैनेजर्स, तथा संस्थापक – अध्यक्ष ‘वन्यजीव संरक्षण ट्रस्ट’
पर्यावरण क्षेत्र से जुड़े प्रतिनिधि, वरिष्ठ अधिकारी गण , उद्योग जगत के प्रतिनिधि, विश्वविद्यालय के अध्यापक, रिसर्चर्स
भाइयों और बहनों,
फीनिक्स फाउंडेशन संस्था के तत्वावधान में आयोजित ‘पर्यावरण स्थिरता शिखर सम्मेलन’ से जुड़कर मुझे ख़ुशी हो रही है।
एक राज्यपाल, और एक किसान के बेटे के रूप में पर्यावरण का दिन-बदिन हो रहा क्षरण मेरे लिए हमेशा चिंता का विषय रहा है।
मैंने देखा, और अनुभव किया है, कि बाढ़ और सूखे के कारण उत्पन्न होने वाली जलवायु परिस्थितियाँ हमारे किसानों – देश के अन्नदाताओं को, – किस प्रकार प्रभावित कर रही हैं।
यही कारण है कि मुझे इस शिखर सम्मेलन के विषय में रुचि है।
इस शिखर सम्मेलन से उभरने वाली सिफारिशों का और एक्शन पॉईंट्स का मै इंतजार करुंगा।
मैं फीनिक्स फाउंडेशन, भारत सरकार, महाराष्ट्र सरकार, द एनर्जी एन्ड रिसोर्स इन्स्टिट्यूट – TERI और विभिन्न संगठनों को भी इस समिट के आयोजन के लिए बधाई देता हूं।
मुझे खुशी है कि इस शिखर सम्मेलन का विषय मुख्य रूप से ‘स्थायी भविष्य के लिए बांस की क्षमता का दोहन’ यह है।
वर्ष 2014 में सत्ता में आने के बाद से, प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास को सर्वोच्च महत्व दिया है।
गरीबों तक समान ऊर्जा पहुंच भारत सरकार की पर्यावरण नीति की आधारशिला रही है।
उज्ज्वला योजना के माध्यम से, नौ करोड़ से अधिक परिवारों को स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन तक पहुंच प्रदान की गई है।
पीएम-कुसुम योजना के तहत सरकार द्वारा अक्षय ऊर्जा को किसानों तक पहुंचाया गया है।
सरकार किसानों को सौर पैनल लगाने, नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करने और अतिरिक्त ऊर्जा ग्रिड को बेचने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।
सरकार एलईडी बल्ब वितरण योजना का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन कर रही है।
सरकार ने राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन की स्थापना की घोषणा की है।
इसका उद्देश्य हमारे भविष्य को सशक्त बनाने वाली हरित हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी का उपयोग करना है।
हरित हाइड्रोजन की क्षमताओंके बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए, TERI जैसे संगठनों के साथ सहयोग, महत्वपूर्ण है।
भारत एक विकसित राष्ट्र होने की दिशा में निरंतर अग्रेसर हो रहा है।
यह अनुमान है कि अगले बीस वर्षों में भारत के लोगों की ऊर्जा आवश्यकताएँ लगभग दोगुनी हो जायेगी।
भारतीय संस्कृति ने हमेशा प्रकृति का सम्मान किया है | हमारे रीति-रिवाज, दैनिक प्रथाएं और अनेक फसल उत्सव प्रकृति के साथ हमारे मजबूत संबंधों को प्रदर्शित करते हैं।
जरूरतें कम करना, पुनः: उपयोग, पुनर्चक्रण करना, पुनः प्राप्त करना, पुनः डिजाइन करना और पुनर्निर्माण करना भारत की सांस्कृतिक प्रथाओं का अभिन्न अंग रहा है।
आज पर्यावरणीय स्थिरता के बारे में लोगों को शिक्षित और सक्षम बनाने की तत्काल आवश्यकता है। इस प्रयास में नागरिकों और सभी हितधारकों की भागीदारी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में, मैं सभी सार्वजनिक विश्वविद्यालयों से पर्यावरण स्थिरता के अध्ययन को प्राथमिकता देने का आग्रह करता हूँ।
मैंने पहले ही विश्वविद्यालयों को अपने कैम्पसेस को हरा-भरा तथा ‘कार्बन तटस्थ’ बनाने का निर्देश दिया है।
पिछले सप्ताह श्री पाशा पटेल के साथ मेरी बहुत अच्छी चर्चा हुई।
हमें पर्यावरण संरक्षण और अपने किसानों के उत्थान के लिए बांस का सर्वोत्तम उपयोग करने की आवश्यकता है।
बांस हवा से CO2 को शुद्ध कर सकता है, सीवरेज के पानी का उपचार कर सकता है, भारी धातुओं को हटा सकता है, मिट्टी के कटाव को रोक सकता है, मिट्टी की जलधारण क्षमता को बढ़ा सकता है और हवा में कण पदार्थ को कम कर सकता है।
मुझे ख़ुशी है कि, महाराष्ट्र ने प्रदेश के लाखों छोटे किसान भाईयों के लिए बांबू रोपण की योजना शुरू की है, जिस में प्रती हेक्टर पर्याप्त अनुदान दिया जा रहा है।
मुझे बताया गया है कि, सार्वजनिक – निजी साझेदारी इस योजना को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
आने वाले 3-4 वर्ष में दस मिलियन एकड़ क्षेत्र में बांबू के जंगल निर्माण होने की क्षमता है।
बांस में कार्बन अवशोषण की उच्च क्षमता होती है।
दस लाख एकड़ बांस कितना कार्बन सोख सकता है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
इससे हमें मिलने वाले ऑक्सीजन की मात्रा में भी वृद्धि होगी।
दूसरी ओर, हमारे किसान भाई, जो आज क्लाइमेट चेंज के संकट से जूझ रहे है, उन्हे भी बांबूसे एक स्थिर आय स्रोत उपलब्ध होगा।
अगर हमारा उद्योग क्षेत्र आगे आता है तो इस कार्य को और भी चेतना मिलेगी।
पर्यावरण की स्थिरता के लिए उद्योगों की सक्रिय साझेदारी की आवश्यकता है।
आज दुनिया भर में बांस के उत्पादों की भारी मांग है। बांस की खेती को लाभदायक बनाने के लिए उद्योग जगत को हमारे किसानों, आदिवासियों और बांस उत्पादकों के साथ मिलकर काम करना चाहिए।
हाल ही में हमने एक प्रेझेंटेशन देखा, जिसमे सिंधुदुर्ग जिले की एक छोटी सी कंपनीने विदेश में शानदार कलात्मक स्ट्रक्चर बनवाए है।
हमारे वरिष्ठ सहयोगी और कोकण के गौरव, श्री सुरेश प्रभू जी के आशीर्वाद से आज 10,000 एकड़ भूमि पर बांबू विकसित किया गया है।
अल्फान्सो आम और काजू की इस जमीन पर किसान बांबू उगा रहा है तो जरूर इसमें कुछ आर्थिक उपलब्धि है।
पर्यावरण स्थिरता का विषय केवल सम्मेलनों और चर्चाओं तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए।
यह हमारी जीवनशैली और विचार प्रक्रिया का अभिन्न अंग बनना चाहिए।
मैं आप सभी की इस पहल की सराहना करता हूं और आपके प्रयासों में सफलता की कामना करता हूं।
एक बार फिर, मै श्री पाशा पटेल जी का, फिनिक्स फाऊंडेशन की पुरी टीम का, तथा सम्मेलन के अन्य सभी आयोजको का हार्दिक अभिनंदन करता हूं और मुझे अपने विचार व्यक्त करने के लिए यह मंच प्रदान करने के लिए धन्यवाद देता हूं।
जय हिंद। जय महाराष्ट्र।।