08.06.2023 : ‘सेवा विवेक’ विवेक रूरल डेव्हलपमेंट सेंटर द्वारा आयोजित १७ वे बांबू हस्तकला प्रशिक्षण वर्ग का समापन एवं आदिवासी भगीनियो को सर्टिफिकेट प्रदान समारोह, भालीवली, जिला पालघर
‘सेवा विवेक’ विवेक रूरल डेव्हलपमेंट सेंटर द्वारा आयोजित १७ वे बांबू हस्तकला प्रशिक्षण वर्ग का समापन एवं आदिवासी भगीनियो को सर्टिफिकेट प्रदान समारोह, भालीवली, जिला पालघर
मंच पर विराजमान
श्री राजेन्द्र गावित, संसद सदस्य, पालघर
पद्मश्री रमेश पतंगे जी
श्री. प्रदीप जी गुप्ता, संचालक, ‘सेवा विवेक’,
श्री लुकेश बंड, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, बाम्बू हस्तकला, ‘सेवा विवेक’
श्री चंद्रशेखर सुर्वे जी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, ठाणे विभाग संघ चालक
‘सेवा विवेक’ के सभी पदाधिकारी, अभिभावक एवं आदिवासी बहनों
आदिवासी सक्षमीकरण के ‘सेवा विवेक’ प्रकल्प को भेट देकर अत्याधिक हर्ष का अनुभव कर रहा हूं।
आज अपनी आदिवासी बहनों से मिलकर और उनके चेहरों पर खुशी की मुस्कान देखकर मै बहुत खुश हूं।
आज आप सभी के लिए बहुत बड़ा दिन है। आपने बांस शिल्प कौशल का एक महीने का प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरा कर लिया है, और अब आप बांसके आकाश कंदील, चाय के ट्रे, ज्वेलरी बॉक्स, पेपर वेट, राखीयॉं और कई अन्य बांस की वस्तुएँ बनाने में सक्षम हुए हैं।
आप सही मायने में आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो गए हैं। यही तो लक्ष्य है आत्मनिर्भर भारत का।
मैं आप में से हर एक को, सर्टिफिकेट हासिल करने पर हार्दिक बधाई देता हूं तथा अभिनंदन करता हूं।
मुझे उम्मीद है कि आप अन्य कई बहनों को बांस शिल्प सीखने और आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित करेंगे।
आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि मैं स्वयं भी एक लकड़ी का शिल्पकार हूं, और जब भी थोड़ा बहुत समय मिलता है , तब लकड़ी से भगवान की प्रतिमाएं बनाता हूं।
हालाँकि मुझे कहना होगा, मैं उतनी सुंदर चीज़ें नहीं बना सकता जितनी आप सभी बना सकते हो।
हमारे संविधान के अनुच्छेद 46 का उद्देश्य कमजोर वर्गों और विशेष रूप से अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को विशेष ध्यान से बढ़ावा देना और सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से उनकी रक्षा करना है।
मुझे खुशी है कि आदिवासी महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण के माध्यम से ‘सेवा विवेक’ वांछित लक्ष्य को प्राप्त करने में योगदान दे रहा है।
आदिवासियों के सशक्तिकरण के लिए केंद्र और राज्य सरकार काफी काम कर रही है।
आदिवासियों के कल्याण और उनके आर्थिक उत्थान के लिए कई योजनाएं तैयार की गई हैं।
हालाँकि अकेले सरकार आदिवासियों के सशक्तिकरण के उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर सकती।
विकास की कमियां दूर करने में ‘सेवा विवेक’ जैसे गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका अहम् होती है।
‘सेवा विवेक’ने आदिवासी महिलाओं के आर्थिक सक्षमीकरण का एक मुद्दा हाथ में लिया, और विगत बारह वर्षों से संस्था ने इस दिशा में निष्ठा से काम किया है।
‘सेवा विवेक’ ने अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाओं को बांस के काम में प्रशिक्षित किया है। इस हेतु पालघर जिले के कई गावों के साथ संपर्क प्रस्थापित कर वहाँ की महिलाओं को एकत्रित कर प्रशिक्षण देने का काम किया है। यह काम इतना आसान नहीं है।
किसी गाँव में जाना, महिलाओं को इकठ्ठा करना, उनका विश्वास हासील करना, उनको प्रशिक्षण के लिए राजी करना, यह कठिन काम ‘सेवा विवेक’के कार्यकर्ताओं ने अथक परिश्रम से किया है । जिसके लिए वे सभी अभिनंदन के पात्र हैं।
बांबू से उत्पाद निर्माण करना एक बात है; और बनाए हुए उत्पाद की बिक्री करना दूसरी बात है।
उत्पाद बेचने के लिए आपको उचित पैकेजिंग, ब्रांडिंग और मार्केटिंग की जरूरत होती है।
ऐसे में ‘बांबू सेवक’ की भूमिका काफी अहम हो जाती है।
‘सेवा विवेक’के कार्यकर्ताओं ने इसकी ओर ध्यान दिया है, और वस्तुओं की बिक्री करने वाली सेवाभावी बांबू सेवकों की टीम खड़ी कर दी।
गर्व की बात है कि बांबू सेवकों में कुछ डॉक्टर्स है, कुछ शिक्षक है, कुछ उद्योजक भी है |
इस अवसर पर इन सभी ‘बांबू सेवकों’ का मैं हृदय से अभिनंदन करता हूँ।
मैं समझता हूं कि बांस के उत्पाद बनाने के लिए आपको दूर-दूर से बांस लाने पड़ते हैं।
स्थानीय स्तर पर बांस की खेती को बढ़ावा दिया जाए तो उत्पाद की कीमत कम होगी और मुनाफा ज्यादा होगा।
मुझे खुशी है कि ‘सेवा विवेक’ आस-पड़ोस में बांस की खेती को बढ़ावा दे रहा है।
बहनों और भाइयों
एक समय था जब भारत दुनिया की कौशल राजधानी हुआ करता था।
हमारे बुनकर रेशम की ऐसी साड़ी बनाते थे जिसे माचिस की एक छोटी सी डिब्बी में फिट किया जा सकता था।
हमारा देश वास्तुकला, इंजीनियरिंग, धातु विज्ञान और कई कलाओं में विश्व में अग्रणी था।
विदेशी वर्चस्व के लंबे समय के दौरान हमने अपना कौशल खो दिया।
भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भारत को एक बार फिर देश को ‘स्कील कैपिटल’ बनाने का प्रण लिया है।
आज दुनिया भर में ऑरगॅनिक खाद्य उत्पादों और बांस आधारित उत्पादों की मांग बढ़ रही है।
बांस के उत्पादों और हमारे जैविक खाद्य उत्पादों को बेचने के लिए भारत को अपना खुद का ‘Amazon’ जैसा वैश्विक प्लेटफॉर्म बनाने पर विचार करना चाहिये।
मैं राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से बांस उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए आग्रह करुंगा।
राज्यपाल के रूप में मैं अपने विदेशी मेहमानों को आपके द्वारा तैयार की गई बांस की वस्तुएं उपहार में दूंगा और मैं राज्य सरकार से भी कहूंगा कि प्लास्टिक के उत्पादों के बजाय हमारी आदिवासी बहनों द्वारा निर्मित बांस के उत्पाद कार्यालयों में खरीदे जाएं।
एक बार फिर सभी आदिवासी बहनों को बांस हस्तशिल्प पाठ्यक्रम के सफल समापन पर बधाई देता हूं और आपके प्रयासों में सफलता की कामना करता हूं।
मैं ‘सेवा विवेक’, सभी बांस सेवकों और शुभचिंतकों के अच्छे कार्यों की सराहना करता हूं।
धन्यवाद
जय हिन्द । जय महाराष्ट्र ।।