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    22.06.2024 : ‘गेटवेज टू द सी’ – हिस्टोरिक पोर्ट्स एंड डॉक्स ऑफ मॉडर्न मुंबई। ‘मुंबई क्षेत्र के ऐतिहासिक बंदरगाह और गोदी’ पुस्तक का लोकार्पण तथा लेखकों का अभिनंदन समारोह

    Publish Date: June 22, 2024
    'गेटवेज टू द सी’ - हिस्टोरिक पोर्ट्स एंड डॉक्स ऑफ मॉडर्न मुंबई। 'मुंबई क्षेत्र के ऐतिहासिक बंदरगाह और गोदी' पुस्तक का लोकार्पण तथा लेखकों का अभिनंदन समारोह

    ‘गेटवेज टू द सी’ – हिस्टोरिक पोर्ट्स एंड डॉक्स ऑफ मॉडर्न मुंबई। ‘मुंबई क्षेत्र के ऐतिहासिक बंदरगाह और गोदी’ पुस्तक का लोकार्पण तथा लेखकों का अभिनंदन समारोह। 22 जून 2024

    वाइस एडमिरल इंद्रशील राव (सेवानिवृत्त) सदस्य, मैरीटाइम मुंबई संग्रहालय सोसायटी

    कैप्टन के. डी. बहल, अध्यक्ष, मैरीटाइम मुंबई म्युझियम सोसायटी

    श्रीमती अनिता येवले, उपाध्यक्ष, मैरीटाइम मुंबई म्युझियम सोसायटी

    डॉ. शेफाली शाह, संपादक, ‘गेटवेज टू द सी’

    उपस्थित सभी लेखक तथा उनके परिवार जन

    देवियों और सज्जनों

    सबसे पहले मैं आप सभी का महाराष्ट्र राजभवन में हार्दिक स्वागत करता हूँ।

    इस पुस्तक के विमोचन के लिए राजभवन से बेहतर कोई स्थान नहीं हो सकता था, जो स्वयं ‘गेटवे टू द सी’ यांनी ‘समुद्र का प्रवेश द्वार’ है।

    मैं ऐसे राज्य से आता हूँ, जिसकी कोई तटरेखा नहीं है।

    अपने जीवन के अनेक वर्षो तक मैने समंदर नही देखा था।

    लेकिन, आज मुंबई के निर्माण में जिनकी अहम भूमिका रही है ऐसे अनेक बंदरगाहों और गोदियों के इतिहास पर लिखी गयी पुस्तक का विमोचन करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हो रहा है।

    इस पुस्तक में जिन्होने विभिन्न बंदरगाहों और गोदियों का इतिहास लिखा ऐसे सभी प्रतिभाशाली लेखकों से मिलकर खुशी हो रही है।

    मुंबई की सच्ची महानता देश के कोने-कोने से सर्वश्रेष्ठ और प्रतिभाशाली लोगों को आकर्षित करने में निहित है।

    पुस्तक के सभी 17 लेखकों, संपादकों को, पब्लिकेशन डिव्हिजन और मरिटाइम मुंबई म्युझियम सोसायटी को मै पुस्तक लोकार्पण के अवसर पर हार्दिक बधाई देता हूँ।

    लेकिन, आज मैं सबसे बड़ी प्रशंसा भारतीय नौसेना के दिग्गज – वाइस एडमिरल इंद्रशील राव और मास्टर मरिनर कैप्टन K D बहल की करूँगा। उन्होने पुस्तक के निर्माण में अहम भूमिका निभाई है| एडिटर डॉ शेफाली शाह, श्रीमती अनिता येवले और पब्लिकेशन डिव्हिजन भी हमारे अभिनंदन के पात्र है।

    देवियों और सज्जनों,

    मानव सभ्यता का इतिहास बताता है कि जिन लोगों ने समुद्र पर विजय प्राप्त की, वे समृद्ध हुए।

    लगभग 7500 किलोमीटर की तटरेखा वाला भारत हमेशा से एक महान समुद्री राष्ट्र रहा है।

    वर्ष 1947 से पहले भारत की तटरेखा आज से भी बड़ी रही होगी, क्योंकी पाकिस्तान और बांगलादेश भी भारत का हिस्सा थे।

    अतीत में भारत के समृद्धि का श्रेय देश की विशाल समुद्री विरासत को जाता है।

    भारत का दुनिया के कई दूर-दराज के देशों के साथ व्यापार रहा है। व्यापार के साथ, धर्म, संस्कृति, भाषा और व्यंजनों का भी आदान प्रदान हुआ।

    मुझे बताया गया है कि, मराठी भाषा में आज भी अनेक पुर्तगाली भाषा के शब्द समाहित हुये है।

    समुद्री विरासत की बात करें तो हमें छत्रपति शिवाजी महाराज की दूरदर्शिता की प्रशंसा करनी होगी, जिन्होंने हिंदवी स्वराज की रक्षा करने के लिये अपनी नौसेना का निर्माण किया।

    इसी कडी में हमें सरखेल कान्होजी आंग्रे की दूरदर्शिता को भी नमन करना होगा जिन्होंने शिवाजी महाराज की विरासत को आगे बढाया और हमारे महासागरों की रक्षा के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया।

    बंदरगाह धन संपदा के निर्माता होते हैं।

    भारतीय सभ्यता का इतिहास दर्शाता है कि बंदरगाहों के आसपास कई शहर निर्माण हुए।

    बंदरगाहों के पास विकसित शहर और कस्बे विविध संस्कृतियों और राष्ट्रीयताओं के लोगों को भी लाते हैं।

    बंदरगाहों के विकसित होने के बाद मुंबई भारत की आर्थिक राजधानी के रूप में उभरी।

    एक समाज और एक राष्ट्र के रूप में हमारी प्रगति का पता लगाने के लिए अतीत और वर्तमान बंदरगाहों और गोदी का अध्ययन महत्वपूर्ण है।

    इतिहास एक महान शिक्षक है। वर्तमान पुस्तक मुंबई के महत्वपूर्ण बंदरगाहों जैसे सोपारा, वसई, वर्सोवा, माहिम को समझने और समझाने का एक बेहतरीन प्रयास है।

    आज हम ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के रूप में सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं।

    हमें महासागरों के स्वास्थ्य की रक्षा करनी होगी और समुद्री विविधता को बनाए रखना होगा।

    आज भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की आकांक्षा रखता है, ऐसे में भारत के बंदरगाहों की भूमिका और भी महत्वपूर्ण होने जा रही है।

    इस समय मुंबई के साथ साथ, भारत के सभी बंदरगाहों और गोदियों का अध्ययन करना सार्थक होगा।

    इससे हमें यह भी पता चलेगा कि कैसे और क्यों कुछ शहर अपना महत्व खो देते हैं और गुमनामी में चले जाते हैं।

    मुंबई के पास सोपारा, कल्याण, थाने और चौल जैसे कुछ बंदरगाहों की तरह, सूरत, कैम्बे और हुगली जैसे देश के कुछ अन्य बंदरगाहों ने कुछ वर्ष बाद अपना महत्व खो दिया था।

    मुझे विश्वास है कि इस तरह का अध्ययन भविष्य के लिए एक उपयोगी मार्गदर्शक सिद्ध होगा।

    ‘गेटवेज टू द सी’ पुस्तक ने मुंबई क्षेत्र में हमारे प्राचीन बंदरगाहों की गौरवशाली विरासत को हमारे सामने लाया है।

    मुझे लगता है कि यह पुस्तक हमारे स्कूल, कॉलेजेस तथा विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने के लिए उपयुक्त है। इससे हमारी नई पीढ़ी हमारे प्राचीन बंदरगाहों के गौरवशाली अतीत से अवगत होगी। मै निश्चितही राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से पुस्तक की अनुशांसा करुंगा।

    मैरीटाइम मुंबई म्यूजियम सोसाइटी हमें यह उत्कृष्ट पुस्तक देने के लिए तहे दिल से बधाई की पात्र है।

    मैं सभी लेखकों, संपादकों, मुद्रकों और प्रकाशकों का अभिनंदन करता हूँ और आपके भविष्य के प्रयासों में सफलता की कामना करता हूँ।

    जय हिंद। जय महाराष्ट्र।।