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    06.03.2024 : ONLINE : कविकुलगुरू कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय, रामटेक का 12 वां दीक्षांत समारोह

    Publish Date: March 6, 2024

    ONLINE : कविकुलगुरू कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय, रामटेक का 12 वां दीक्षांत समारोह। दि. 6 मार्च 2024

    श्री. प्रल्हाद जोशी, संस्कृत विश्वविद्यालय, कुलपति तथा

    प्रो. हरे राम त्रिपाठी, कुलपति, कविकुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय

    विश्वविद्यालय के विभिन्न प्राधिकारण सदस्य,

    विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपति

    प्राचार्य,

    संस्कृत विद्वान,

    संस्कृतप्रेमि,

    उपाधि प्राप्त कर रहे सभी छात्र – छात्राएं !

    दीक्षांत समारोह में उपस्थित सभी को सादर प्रणाम।

    कविकुलगुरू कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित इस 12 वें दीक्षांत समारोह में सम्मिलित होकर प्रसन्नता हो रही है।

    वास्तव में ऑनलाइन उपस्थित रहने के बजाय प्रत्यक्ष रूप से विश्वविद्यालय का दौरा करने की मंशा थी।

    पर समयाभाव और अन्य व्यस्तताओं के कारण आज आपसे ऑन लाइन के जरिये ही बात कर रहा हूं।

    आज के इस दीक्षांत समारोह में अपनी डिग्री, डिप्लोमा, स्नातकोपरांत पदवी, आचार्य तथा D. Litt. प्राप्त कर रहे सभी छात्र – छात्राओं का मै हार्दिक अभिनंदन करता हूं।

    दीक्षांत समारोह का दिन आपके माता-पिता और सभी प्राध्यापकों के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है।

    आज उन सभी का मै अभिनंदन करता हूं और उन्हे बधाई देता हूं।

    पदक विजेता छात्र – छात्राएं, पीएचडी उपाधि प्राप्त कर्ता तथा डी. लिट. प्राप्त कर्ता विशेष बधाई के हकदार है क्योंकि इनसे प्रेरणा लेकर अन्य छात्र छात्राएं भी आगे बढ़ेंगे।

    यह प्रसन्नता की बात है कि डिग्री प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों में छात्राओंकी संख्या निरंतर बढ रही है।

    वर्ष 1998 में स्थापित इस विश्वविद्यालय ने विगत 26 वर्षो में संस्कृत भाषा के प्रचार प्रसार तथा अनुसंधान क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

    यह बड़े गर्व और संतुष्टि की बात है कि विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र राज्य, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण पदों पर विराजमान हैं।

    उत्कृष्टता की इस परंपरा को हमें निरंतर आगे बढ़ाना होगा।

    देवियों और सज्जनों,

    जानकर प्रसन्नता हुई कि, विश्वविद्यालय ने हाल ही में अपना रजतोत्सव मनाया है।

    कुलाधिपति के रूप में, मेरे लिए गर्व की बात है कि देश के बेहतरीन संस्कृत विश्वविद्यालयों में कविकुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय ने शीर्ष स्थान प्राप्त किया है।

    विश्वविद्यालय ने नये शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में पहले से ही कदम उठाये है, जिसके कुलगुरू प्रो. हरे राम त्रिपाठी हमारे अभिनंदन के पात्र है।

    कुलपति की रिपोर्ट से ज्ञात हुआ कि, विश्वविद्यालय का अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र वारंगा में विकसित हो रहा है तथा अगले सत्र से वह प्रारंभ होने जा रहा है। मुझे विश्वास है कि यह केंद्र उत्कृष्टता के केंद्र के रूप में उभरेगा और दुनिया भर से छात्रों को आकर्षित करेगा।

    मित्रों,

    भारत का भूत, वर्तमान तथा भविष्य भी संस्कृत के विना संभव नहीं।

    संस्कृत भाषाओं की जननी है।

    आज भारत सभी क्षेत्रों में ‘आत्मनिर्भरता’ को प्राप्त करने के लिए प्रयास कर रहा है।

    दुर्भाग्यवश शिक्षा, स्वास्थ्य तथा अन्य कई क्षेत्रों में आज भी अंग्रेजी का ही बोलबाला है।

    मै समझता हू कि आत्म निर्भरता की शुरुआत माता, मातृभूमि और मातृभाषा से ही हो सकती है।

    स्वतंत्रता के इस अमृतकाल में हमारा संकल्प होना चाहिये कि, वर्ष 2047 तक देव वाणी संस्कृत देश की पहली पसंद की भाषा होनी चाहीए।

    प्रिय स्नातकों,

    प्राचीन काल से ही भारत को दुनिया की सबसे महान सभ्यताओं में से एक माना जाता रहा है। हमारा देश इतिहास और संस्कृति, आस्था और दर्शन का भंडार रहा है।

    अपनी पुस्तक ‘द केस फॉर इंडिया’ में, अमेरिकी दार्शनिक और इतिहासकार विल ड्यूरेंट लिखते हैं,

    “संस्कृत यूरोप की भाषाओं की जननी थी; भारत हमारे दर्शन की जननी है; अरबों के माध्यम से, भारत हमारे अधिकांश गणित की भी जननी है; कई मायनों में, भारत हम सभी की माता है।”

    सचमुच, विभिन्न विषयों में भारत की उपलब्धियां चौकाने वाली है।

    भास्कराचार्य दुनिया के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा करने में लगने वाले समय 365.2588 दिनों की सटीक गणना की थी।

    मैं अक्सर सोचता हूं कि उन्होंने उस समय, इतनी सटीक गणना कैसे की होगी। उन्होंने वैदिक परंपरा में बीज गणित पर ‘लीलावती’ ग्रंथ भी लिखा था।

    सुश्रुत संहिता को प्राचीन शल्य चिकित्सा पर सबसे व्यापक पाठ्यपुस्तकों में से एक माना जाता है। चरक ने आयुर्वेद के प्राचीन विज्ञान पर चरक संहिता लिखी।

    राज्यपाल के रूप में, मैं अक्सर विभिन्न देशों के राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों, राज्यपालों और राजदूतों से मिलता हूँ।

    मुझे इन महानुभावों से यह जानकर आश्चर्य हुआ कि दुनिया के कई विश्वविद्यालयों में इंडोलॉजी और संस्कृत को समर्पित अलग-अलग विश्वविद्यालय विभाग हैं।

    अकेले जर्मनी में, संस्कृत, शास्त्रीय और आधुनिक इंडोलॉजी पढ़ाते हैं। जर्मनी के अलावा, अमेरिका, इटली, ब्रिटेन और शेष यूरोप से भी छात्र संस्कृत सीखने के लिए जर्मनी जाते हैं। ब्रिटेन के कुछ विश्वविद्यालय भी संस्कृत में इसी तरह के कार्यक्रम पेश करते हैं।

    इसी तरह, पोलैंड, चेक गणराज्य, ऑस्ट्रिया और ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालय भी संस्कृत में कार्यक्रम पेश करते हैं।

    योग और आयुर्वेद की तरह संस्कृत को लेकर भी दुनिया में दिलचस्पी बढ़ रही है। मुझे लगता है कि भारत को संस्कृत के प्रति बढ़ती रुचि का लाभ उठाना चाहिए।

    जर्मनी के ‘ग्योथ इंस्टीट्यूट’ या ‘मैक्स मुलर भवन्स’ की तरह, हमें लिखित और मौखिक संस्कृत में अल्पकालिक कार्यक्रम पेश करने के लिए संस्कृत शिक्षण संस्थानों का एक वैश्विक नेटवर्क बनाना होगा।

    पिछले साप्ताह मेरी एक दर्जन से अधिक अमेरिकी विश्वविद्यालयों के प्रमुखों के साथ बैठक हुई। वे हमारे विश्वविद्यालयों के साथ शैक्षणिक और अनुसंधान आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के इच्छुक हैं।

    राष्ट्रीय शिक्षा नीति विश्वविद्यालयों के बीच अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करती है।

    अतः मैं कविकुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय से अच्छे विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी करने की अपील करूंगा ताकि हमारे छात्रों को अंतरराष्ट्रीय शिक्षण अनुभव प्रदान किया जा सके। साथ ही विदेशी छात्र भी विभिन्न विषयों में भारत की महानता को समझेंगे।

    हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग के युग में रह रहे हैं। A I शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में व्यापक परिवर्तन लाने जा रहा है। हमें अपने स्नातकों को A I के लाभों और नुकसानों से परिचित कराना और शिक्षित करना चाहिए।

    मैं कविकुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय से अपील करूंगा कि :

    1. ‘विकसित भारत’ उद्देश्य के मद्देनजर, अगले 10 वर्षों में विश्वविद्यालय को भारत के शीर्ष दस विश्वविद्यालयों में पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित करें।

    2. संस्कृत स्नातकों और विद्वानों के लिए कैरियर विकल्पों पर प्रकाश डालें, ताकि सर्वश्रेष्ठ और प्रतिभाशाली छात्र विश्वविद्यालय में शामिल हों।

    ३. देश तथा विश्व के लिए सर्वोत्तम संस्कृत अध्यापक तैयार करें।

    4. संस्कृत के माध्यम से अंतर-विषयक अनुसंधान को प्रोत्साहित करें।

    5. देश के सभी संस्कृत विद्वानो को विश्वविद्यालय के साथ जोडे।

    मैं एक बार फिर सभी स्नातक छात्र – छात्राओं को दीक्षांत समारोह हार्दिक बधाई देता हूं और उनसे अपील करता हूं कि वे अपनी उपलब्धियों से विश्वविद्यालय और देश को गौरवान्वित करें।

    जयतु संस्कृतम। जयतु भारतम।
    जय हिंद। जय महाराष्ट्र।।