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    04.09.2023 : राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित ‘शताब्दी समारोह पुरस्कार’ और शिक्षक दिवस पुरस्कारों की प्रस्तुति, वसंतराव देशपांडे स्मृति सभागृह, नागपुर

    Publish Date: September 4, 2023

    राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित ‘शताब्दी समारोह पुरस्कार’ और शिक्षक दिवस पुरस्कारों की प्रस्तुति, वसंतराव देशपांडे स्मृति सभागृह, नागपुर, 4 सितंबर 2023

    राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपूर विश्वविद्यालय द्वारा शिक्षक दिन के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम तथा शताब्दी महोत्सव पुरस्कार प्रदान समारोह में उपस्थित

    सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायमूर्ति श्री. विकास सिरपूरकर जी

    विश्वविद्यालय के कुलपती डॉ. सुभाष चौधरी,

    प्रो वाईस चान्सलर डॉ. संजय दुधे

    कुलसचिव डॉ. राजू हिवसे

    राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज जीवन साधना पुरस्कार तथा अन्य सभी पुरस्कारों के प्राप्तकर्ता

    आमंत्रित गण

    शिक्षक,

    छात्र-छात्राएं

    भाईयों और बहनों

    अपनी स्थापना का शताब्दी वर्ष मना रहे राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज विश्वविद्यालय को आज तिसरी बार आकर अत्यधिक प्रसन्नता हुई।

    सबसे पहले मैं शिक्षक दिवस के अवसर पर सभी शिक्षकों को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।

    यह दिन क्रांति ज्योति सावित्रीबाई फुले को कृतज्ञतापूर्वक याद करने का अवसर है, जिन्होंने अत्यधिक कष्ट का सामना करके महिलाओं के लिए शिक्षा के द्वार खोल दिए।

    यह भारत के पूर्व राष्ट्रपति और महान विचारक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को भी याद करने का दिन है, जिनका जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

    ‘राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज जीवन साधना पुरस्कार’, ‘आदर्श शिक्षण संस्था’ पुरस्कार, ‘डॉ. आर. कृष्णकुमार सुवर्ण पदक’ विजेता, ‘शताब्दी महोत्सव सुवर्ण पदक’, आदर्श अधिकारी पुरस्कार, आदर्श शिक्षकेतर कर्मचारी पुरस्कार, उत्कृष्ट राष्ट्रीय छात्र सेना कॅडेट पुरस्कार, तथा अन्य सभी पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं का मै हार्दिक अभिनंदन करता हूं।

    ‘राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज जीवन साधना पुरस्कार’ के विजेता डॉ. एच. एफ. दागीनावाला, प्रा. श्री. सुरेश देशमुख, वर्धा, डॉ. निरूपमा देशपांडे, अमरावती, श्री. शिवकिसन अग्रवाल तथा श्री. हरिश्चंद्र बोरकर, भंडारा का मै विशेष रूप से अभिनंदन करता हूं।

    शिक्षक दिवस एक नई अवधारणा हो सकती है। लेकिन भारत ने हमेशा शिक्षकों को भगवान के रूप में सम्मान दिया है।

    गुरुर ब्रह्मा, गुरुर विष्णु, गुरुर देवो महेश्वरः।
    गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नमः।।

    गुरु अंधकार और अज्ञान को दूर करते हैं, जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति का मार्ग दिखाते हैं।

    मनुष्य की हर उपलब्धि में गुरु या शिक्षकों का अदृश्य हाथ होता है।

    हमने विगत सप्ताह में तीन बडी उपलब्धियाँ देखी हैं।

    ‘चंद्रयान मिशन’ को सफलतापूर्वक पूरा हुआ हैं। भारत, अब चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरने वाला, पहला देश बन गया है, जो हमारे लिए अत्यधिक गर्व की बात है।

    चंद्रमा मिशन के बाद भारत ने अपना सोलर मिशन लॉन्च किया है और आदित्य एल-1 को श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया है।

    खेल के क्षेत्र में, नीरज चोपड़ा ने बुडापेस्ट में आयोजित विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीता।

    ये तीन घटनाएं बताते हैं कि भारत वास्तव में वैश्विक मंच पर आ गया है। भारत के माननीय प्रधान मंत्री ने कहा है कि निकट भविष्य में भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन कर उभार आएगी।

    एक विकसित राष्ट्र के रूप में, भारत में एक ऐसी शिक्षा प्रणाली होनी चाहिए जो विश्व स्तरीय हो और जो विभिन्न विषयों में विचारशील नेताओं को तैयार करे। यहीं पर शिक्षकों और शिक्षा विदों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।

    एक समय था जब भारत मानव प्रयास के लगभग हर क्षेत्र में अग्रणी था। इसकी उपलब्धियाँ दुनिया भर के इतिहासकारों और लेखकों द्वारा प्रशंसा का विषय थीं।

    ‘इंडिया इन बॉंडेज’ पुस्तक के अमरीकी लेखक जे. टी. सुंदरलैंड के अनुसार, “दुनिया को ज्ञात लगभग हर प्रकार का निर्माण या उत्पाद, लंबे समय से भारत में उत्पादित किया जाता था।

    भारत, यूरोप या एशिया के किसी भी अन्य देश की तुलना में, कहीं अधिक बड़ा औद्योगिक और विनिर्माण राष्ट्र था।

    उसके कपड़ा सामान – उसके करघे के सूती, ऊनी, लिनन और रेशम के बढ़िया उत्पाद – पूरी दुनिया में प्रसिद्ध थे।

    भारत में महान वास्तु कला थी। भारत न केवल सबसे बड़ा जहाज निर्माण करने वाला देश था, बल्कि उसका जमीन और समुद्र के रास्ते बड़ा वाणिज्य और व्यापार था, जो सभी ज्ञात देशों तक फैला हुआ था। ऐसा था वह भारत, जिसे अंग्रेज़ों ने आकर पाया था।”

    अगर हम अपना खोया हुआ गौरव पाना हैं, तो इसका समाधान तीन चीजों में है: शिक्षा, शिक्षा और शिक्षा।

    राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भारत की शिक्षा प्रणाली को 2030 तक बदलने का प्रयास करती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति आज की ज्ञान अर्थव्यवस्था में भारत को एक ‘ज्ञान केंद्र’ के रूप में स्थापित करने का प्रयास करती है।

    इसका उद्देश्य हमारे प्राचीन मूल्यों को संरक्षित करते हुए हमारे युवाओं को 21वीं सदी की दुनिया के लिए तैयार करना है।

    भारत को वैश्विक ज्ञान केंद्र बनने के लिए, हमारे शिक्षण संस्थानों को विश्व स्तर पर तुलनीय होना होगा।

    आज दुनिया भर के विश्वविद्यालय छात्रों को आकर्षित करने और बनाए रखने के लिए सर्वोत्तम पाठ्यक्रम और छात्रवृत्तियां प्रदान करने की होड़ में हैं। दस लाख से अधिक भारतीय छात्र कनाडा, अमरिका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और 50 अन्य देशों के विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।

    अक्सर ये छात्र शिक्षा पुरी होने के बाद भी बेहतर संभावनाओं के लिए विदेश में रहते हैं।

    समय आ गया है कि हम भी हमारे विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में दुनिया भर से सर्वश्रेष्ठ छात्रों को आकर्षित करे। अपने कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के स्तर तक ऊपर उठाकर इसे हासिल कर सकते हैं।

    विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में मेरी दृढ़ता से भावना है कि विश्वविद्यालयों को अपने प्रशासन में सुधार करना चाहिए और इसे छात्र-केंद्रित बनाना चाहिए।

    विश्वविद्यालयों को छात्रों के प्रश्नों और चिंताओं का विनम्रतापूर्वक और तात्कालिकता की भावना के साथ उत्तर देने के लिए उत्तरदायी होना चाहिए। जब विश्वविद्यालय स्तर पर उनकी शिकायतों का समाधान नहीं किया जाता है, तो छात्र कुलाधिपति के पास जाते हैं।

    विभिन्न परीक्षाओं के रिज्ल्ट घोषित करने में देरी कतई स्वीकार्य नहीं है। विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को अपने छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने का कोई अधिकार नहीं है।

    दुनिया के श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में अक्सर छात्रो द्वारा शिक्षकों का असेसमेंट होता है। हमारे कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में भी छात्रों द्वारा शिक्षक मूल्यांकन शुरू किया जाना चाहिए। शिक्षकों की रैंकिंग उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी विश्वविद्यालयों की रैंकिंग। इससे छात्रों को कॉलेजों और विश्वविद्यालयों का बेहतर विकल्प चुनने में मदद मिलेगी।

    विश्वविद्यालयों और कॉलेजों द्वारा सर्वोत्तम फैकल्टी की भर्ती पर तत्काल ध्यान दिया जाना चाहिए। कई कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में 30 से 40 फीसदी तक शिक्षकों के पद रिक्त हैं। हमें अपने विश्वविद्यालयों को वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर बनाने के तरीके और साधन खोजने होंगे ताकि वे सर्वोत्तम संकाय सदस्यों को नियुक्त और बनाए रख सकें।

    आज हम वैश्विक कनेक्टिविटी के युग में रहते हैं। विश्वविद्यालयों को शैक्षणिक कार्यक्रम डिजाइन करने, कुछ सेमेस्टर पूरा करने, पाठ्यक्रम डिजाइन करने, छात्रों और संकाय सदस्यों के आदान-प्रदान के लिए दुनिया के सर्वोत्तम कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के साथ गठबंधन और साझेदारी बनानी चाहिए।

    आज के छात्र कई स्रोतों से ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। यूनिवर्सिटी या कॉलेज उनमें से एक है। उन्हें ऑनलाइन व्याख्यान, डिजिटल कक्षाओं में भाग लेने, विभिन्न संदर्भ सामग्री ऑनलाइन खोजने आदि का लाभ मिलता है। शिक्षकों की भूमिका सीखने में सुविधा प्रदान करने वाले की हो गई है। आज शिक्षक दिन के अवसर पर मै सभी शिक्षकों को आजीवन सीखने वाला बनने के आवाहन करता हूं।

    आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग सिखाने और सीखने की प्रक्रिया में एक क्रांतिकारी विघटनकारी बदलाव के रूप में आ रहा है।

    कई कौशल जिन्हें समय लेने वाला माना जाता था, वे एक सेकंड में पूरे हो जाएंगे। आप चैट-GPT जैसे AI टूल का उपयोग करके प्रोजेक्ट बना सकते है, पत्र लिख सकते हैं, प्रेजेंटेशन बना सकते हैं, अनुवाद कर सकते हैं। ये सब काम आधे मिनट के अंदर हो जाते है।

    पढ़ना, लिखना और अंकगणित कौशल जिन्हें महत्वपूर्ण कौशल माना जाता था, AI ने तेजी से पीछे छोड़ दिया है।

    जहां एआई से शिक्षकों और छात्रों को कई फायदे होंगे, वहीं नौकरियों का नुकसान भी होगा। इसके लिए नए कौशल सीखने की आवश्यकता होगी।

    मैकिन्से और कंपनी की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक ऑटोमेशन से 40 से 80 करोड नौकरियां बाधित हो जाएंगी। 37.5 करोड लोगों के पुरी तरह नए क्षेत्र में काम करना होगा।

    समय आ गया है कि हम अपने स्नातकों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से परिचित कराएं। नए नए कौशल सिखने को प्रोत्साहित करे।

    कई विश्वविद्यालय एआई का जिम्मेदारीपूर्ण उपयोग करने की तैयारी कर रहे हैं।

    मैं सभी विश्वविद्यालयों से AI पर चर्चा और विशेषज्ञ वार्ता आयोजित करने की अपील करूंगा। विश्वविद्यालय छात्रों और कर्मचारियों को AI साक्षर बनने में कैसे सहायता कर सकते हैं इस पर चिंतन होने की आवश्यकता है। हमें, छात्रों को AI का नैतिक उपयोग करना भी सिखाना होगा और AI तंत्रज्ञान सभी छात्रों तक पहुंचना सुनिश्चित करना होगा।

    हम छात्र दशा में थे, तब हमारे हर हर एक शिक्षक हमारे माता-पिता और हमारी सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि को भली भान्ति जानते थे।

    वे प्रत्येक छात्र के जीवन के सुख-दुःख को जानते थे। महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालयो में यह हो नहीं पाता।

    लेकिन, मैं सभी शिक्षकों से, छात्रों के साथ मित्रता का मजबूत बंधन विकसित करने की अपील करूंगा।

    हमें अपने छात्र-छात्राओं को हर तरह के व्यसनों से बचाना होगा। हमें अपनी युवक युवतियों को डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से होने वाले यौन शोषण और आर्थिक शोषण से बचाने के लिए भी बहुत सचेत रहना होगा।

    आप हमारे कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को सुरक्षित बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

    मुझे विश्वास है कि, आप सभी के सहयोग से भारत 2047 तक एक विकसित राष्ट्र होगा।

    शिक्षक दिन के अवसर पर पुनः अभिनंदन करता हूं तथा आज के शताब्दी पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं को हार्दिक बधाई देता हूं।

    धन्यवाद
    जय हिंद । जय महाराष्ट्र ।।