Close

    17.01.2024 : सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय का 123 वां दीक्षांत समारोह, पुणे

    Publish Date: January 17, 2024

    सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय का 123 वां दीक्षांत समारोह, पुणे, 17 जनवरी 2024

    श्री विनय सहत्रबुद्धे, पूर्व सांसद

    प्रो. डॉ. सुरेश गोसावी, कुलपति, सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय

    डॉ. प्रफुल्ल पवार, कुलसचिव

    डॉ. महेश काकडे, निदेशक, परीक्षा मंडल

    सिनेट, कार्यकारी परिषद और विद्या परिषद के सदस्य,

    स्नातक छात्र-छात्राएं और उनके माता-पिता,

    आमंत्रित अतिथि गण,

    शिक्षक और कर्मचारी गण,

    मीडियाकर्मी

    देवियों और सज्जनों,

    भारतवर्ष के इस ऐतिहासिक शहर में, मैं सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के एक सौ तेइसवे दीक्षांत समारोह में आप सभी का हार्दिक अभिनंदन करता हूँ।

    पुणे शहर का अपना लंबा विशिष्ट इतिहास रहा है।

    छत्रपती श्री शिवाजी महाराज के वास्तव्य से पुनित यह भूमि है।

    ऐसे ऐतिहासिक शहर में स्थापित इस विश्वविद्यालय का नाम प्रातःस्मरणीय आद्य शिक्षिका सावित्रीबाई फुले जी से मंडित है। आरंभ में मै इन सभी महान विभूतियों कि स्मृति को नमन करता हूँ।

    इस अवसर पर आप सभी को बधाई देते हुए मैं स्वर्ण पदक विजेता और विविध पुरस्कारों से सम्मानित छात्रों का विशेष अभिनंदन करता हूं। साथ ही छात्र-छात्राओं के माता पिता, अध्यापक तथा अभिभावकों का भी मै हार्दिक अभिनंदन करता हॅूं।

    पिछले कुछ वर्षों में सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय ने भारत में उच्च शिक्षा के एक प्रमुख केंद्र के रूप में ख्याति प्राप्त की है। इसे ‘पुर्व का ऑक्सफोर्ड’ माना जाता है।

    देवियों और सज्जनों,

    ज्ञान केवल तथ्यों या सूचनाओं का संग्रह नहीं है; यह वह कुंजी है जो समझ, ज्ञान और प्रगति के द्वार खोलती है। यह वह नींव है जिस पर सभ्यताओं का निर्माण होता है, और यह नवाचार और परिवर्तन का उत्प्रेरक है।

    सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण बात है कि ज्ञान हमें सशक्त बनाता है।

    यह व्यक्तियों को सही निर्णय लेने, अपने आस-पास की दुनिया को समझने और जीवन की जटिलताओं से निपटने के लिए सक्षम बनाता है।

    तेजी से बदलते वैश्विक परिदृश्य में, जहां चुनौतियां और अवसर लगातार विकसित हो रहे हैं, ज्ञान एक दिशा सूचक यंत्र की तरह है जो हमारी यात्रा में हमारा मार्गदर्शन करता है।

    हमारे शास्त्र किसी भी तथ्य की तीन प्रकार से पुष्टि करने का आग्रह करते है। ‘गुरु प्रचिती’ याने गुरु या शिक्षक की राय, ‘शास्त्र प्रचिती’ याने शास्त्रों या पुस्तकों की राय; और अंत में, ‘आत्म प्रचिती’ याने स्वयं का अनुभव।

    ज्ञान आलोचनात्मक सोच भी बढ़ाता है।

    यह हमें हमारे सामने आने वाली जानकारी पर सवाल उठाने, विश्लेषण करने और मूल्यांकन करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

    आलोचनात्मक सोच एक स्वस्थ, संपन्न समाज की रीढ़ है।

    यह हमें तथ्य और कल्पना के बीच अंतर करने, धारणाओं को चुनौती देने और अच्छी तरह से सही विकल्प चुनने में सहायता करता है।

    ज्ञान के बिना, आलोचनात्मक सोच महज़ आकांक्षा बन जाती है, और सही निर्णय लेने की हमारी क्षमता से समझौता हो जाता हैं।

    ज्ञान एक ऐसा सेतु है जो अतीत को वर्तमान से और वर्तमान को भविष्य से जोड़ता है।

    हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ज्ञान केवल शैक्षिक उपलब्धि के बारे में नहीं है।

    इसमें व्यावहारिक ज्ञान, भावनात्मक बुद्धिमत्ता और सांस्कृतिक जागरूकता सहित कौशल का एक व्यापक स्पेक्ट्रम शामिल है।

    एक सर्वांगीण व्यक्ति वह है जो विभिन्न रूपों में ज्ञान की तलाश करता है, अध्ययन के विभिन्न क्षेत्रों के अंतर्संबंध और उस समृद्धि को पहचानता है जो विविधता दुनिया की हमारी समझ में लाती है।

    मित्रों,

    आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा युवा देश बन रहा है।

    भारत में पूरी दुनिया के जनशक्ति की आपूर्ति करने की क्षमता है।

    हाल ही में सम्माननीय प्रधानमंत्री जी ने युवाओं की क्षमताओं का ध्यान रखते हुए वॉइस ऑफ यूथ @2047 इस कार्यक्रम की घोषणा की है।

    हम माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में विश्व स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए तैयार हैं।

    मुझे विश्वास है कि, सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के पास देश के सामाजिक युवा वर्ग की एक फौज है।

    विश्वविद्यालय कल के नीति निर्माताओं को आकार दे रहा है। ये वे युवा हैं जो निकट भविष्य में भारत का नेतृत्व करने वाले हैं।

    आने वाले शैक्षणिक वर्ष में महाराष्ट्र दीर्घदर्शी राष्ट्रीय शिक्षा नीति को स्वीकार कर रहा है।

    इस शतक कि यह पहली शिक्षा नीति है। यह नीति बताती है कि, उच्च शिक्षा में सामाजिक स्तर पर एक बौद्धिक और कुशल राष्ट्र का निर्माण करने की क्षमता है।

    एक ऐसा राष्ट्र जो अपनी समस्याओं का स्वयं समाधान खोज उसे कार्यान्वित कर सकता है।

    उच्च शिक्षा ज्ञान निर्माण करके और नवाचार को बढ़ावा देकर राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में योगदान दे सकती है।

    इसलिए, गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा का उद्देश्य बेहतर रोजगार के अवसर पैदा करने तक सीमित नहीं है, बल्कि उच्च शिक्षा एक जीवंत, सामाजिक रूप से संलग्न, सहयोगी समुदाय और एक समृद्ध राष्ट्र बनाने की कुंजी है।

    नई शिक्षा नीति में उच्च शिक्षा को प्राथमिकता दी गई है।

    जहाँ उच्च शिक्षा की उपयोगिता बढ़ रही है, वहीं देश की प्राथमिक, माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा में रचनात्मक हस्तक्षेप की भी आवश्यकता है।

    विश्वविद्यालय के विभागों और संबद्ध कॉलेजों में संकाय को अधिक संवेदनशील होना चाहिए और पाठ्यक्रम एवं नई शिक्षा नीति के महत्वपूर्ण मुद्दों पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

    आज आप सबको जो उपाधियां मिली हैं, वे आपकी कड़ी मेहनत और शिक्षा के प्रति आपके समर्पण एवं प्रतिबद्धता का प्रतीक हैं।

    मुझे विश्वास है कि आपने जो ज्ञान और कौशल्य अर्जित किया है, वह आपके लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक सिद्ध होगा और आप देश और समाज के उत्थान के लिए इसका उपयोग अवश्य करेंगे।

    इन्हीं शब्दों के साथ मै पुन: एक बार सभी स्नातकों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं और सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय को शुभकामनाएं देता हूँ।

    जय हिंद। जय महाराष्ट्र।।