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    19.08.2023 : मराठी वृत्तपत्र लेखक संघ मुंबई के तत्वावधान में प्रोफेसर डॉ. गजानन शेपाल द्वारा लिखित ‘रंगसभा’ पुस्तक का विमोचन

    Publish Date: August 19, 2023

    मराठी वृत्तपत्र लेखक संघ मुंबई के तत्वावधान में प्रोफेसर डॉ. गजानन शेपाल द्वारा लिखित ‘रंगसभा’ पुस्तक का विमोचन

    मंच पर उपस्थित ‘रंगसभा’ ग्रंथ के लेखक प्रोफेसर डॉ. गजानन शेपाल,

    ललितकला अकादमी के भूतपूर्व अध्यक्ष तथा ज्येष्ठ शिल्पकार डॉ. उत्तम पाचरणे जी,

    मराठी वृत्तपत्र लेखक संघ, मुंबई के अध्यक्ष श्री. रविंद्र मालुसरे,

    श्री विवेक सबनीस, ज्येष्ठ पत्रकार

    सर जे. जे. स्कूल ऑफ अप्लाईड आर्ट के प्रभारी अधिष्ठाता, डॉ. संतोष क्षिरसागर

    उपस्थित दृश्य कलाकार, कला प्रेमी, कला छात्र – छात्राएं

    पत्रकार भाईयों और बहनों,

    एक छोटासा दृश्य कलाकार होने के नाते, सर जे जे स्कूल ऑफ आर्ट, देखने का मेरा लंबे समय से सपना था।

    मुझे खुशी है कि मराठी पत्र लेखक संघ ने मुझे इस दृश्य कला और व्यावहारिक कला के भव्य, पुराने संस्थान का, दौरा करने का, अवसर प्रदान किया है।

    मैं श्री रवींद्र मालुसरे जी, अध्यक्ष, मराठी वृत्तपत्र लेखक संघ, मुंबई, को इस पुस्तक विमोचन समारोह का आयोजन करने के लिए, और मुझे निमंत्रित करने के लिये धन्यवाद देता हूं।

    मराठी वृत्तपत्र लेखक संघ, मुंबई, अपने अमृत महोत्सवी वर्ष मे पदार्पण कर रही है। मै संस्था का हार्दिक अभिनंदन करता हूँ और संस्था से जुडे सभी को शुभकामना देता हूँ।

    सर जमशेदजी जीजीभाय का मुंबई के निर्माण में बहुत बड़ा योगदान रहा है। आज डेढ़सौ से अधिक वर्षों के बाद भी उनकी सहायता से शुरू हुए जे. जे. अस्पताल, जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट, राज्य के लोगों के लिए अनुपम योगदान दे रहे हैं।

    जे. जे. स्कूल, इस संस्था ने, देश को कुछ शीर्ष श्रेणी के राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय चित्रकार, मूर्तिकार और अन्य कलाकार दिए हैं, जिन्होंने अपनी उपलब्धियों से देश को गौरवान्वित किया है।

    ख्यातनाम चित्रकार वासुदेव गायतोंडे, एम एफ हुसेन, के के हेब्बर, एस एच रजा, तैयब मेहता, जहांगीर सबावाला, ऐसे अनेक कलाकार, जे. जे. स्कूल ने देश को दिये हैं।

    आज, महाराष्ट्र की समृद्ध, कला विरासत की पावन भूमि में, मुझे प्रोफेसर गजानन शेपाल द्वारा लिखित पुस्तक ‘रंगसभा’ का विमोचन करते हुए बहुत खुशी हो रही है।

    डॉ. गजानन शेपाल एक जाने माने कलाकार तथा अध्यापक हैं। लेकिन साथ ही वे बहुत अच्छे लेखक भी हैं।

    दैनिक ‘तरुण भारत’ में लिखे गये, अपने लेखन के माध्यम से, प्रोफेसर गजानन शेपालने, कई ज्ञात-अज्ञात, लेकिन सच्चे कलाकारों तथा कला क्षेत्र से जुडे कार्यकर्ताओं को दुनिया के सामने लाया है।

    साथ ही उन्होंने कला महाविद्यालयों, कला संस्थानों और कला प्रदर्शनियों की जानकारी भी अपने पाठकों को दी। उन स्तंभ में से चयनित, एक सौ आलेखों का संपादन करके, इस सुंदर ग्रंथ ‘रंगसभा’ ग्रंथ की रचना की है।

    मैं, लेखक डॉ. गजानन शेपाल जी को, समकालीन कला और कलाकारों का सुंदर विश्वकोश पुस्तक के रूप में तैयार करने के लिए बधाई देता हूं।

    अजंता और एलोरा की गुफाएँ, अशोक के स्तंभों के नक्काशीदार शेर, पहाड़ों को काटकर बनाए गए मंदिरों और महलों की सुंदर वास्तुकला, मधुबनी पेंटिंग, महाबलीपुरम की चट्टानें, खजुराहो और कोणार्क, वास्तुकला की समृद्ध और विविध विरासत के कुछ उदाहरण हैं। हर राज्य की, हर जनजाति समाज की, अपनी-अपनी परंपराओं और विचारों का प्रतिनिधित्व करने वाली विभिन्न प्रकार की चित्रकला शैलियाँ प्रचलित हैं। भारत की इस कलात्मक और सांस्कृतिक विविधता को, संरक्षित करने की आवश्यकता है।

    कला और सांस्कृतिक प्रदर्शन, हमारे ग्रामीण और आदिवासी जीवन का हमेशा ही अभिन्न अंग रहा है।

    हमारे आदिवासी गांव में, हर घर की दीवार पर, एक पेंटिंग होती है। सामने आँगन में एक रंगोली होती है।

    शहरों में रहने वाले लोग भी, अपने घरों को पेंटिंग, मूर्तिकला और अन्य कला प्रतिष्ठानों से सजाना पसंद करते हैं। लेकिन, हमें कला को सुलभ और किफायती बनाना चाहिए। यह कला का वास्तविक लोकतंत्रीकरण होगा।

    यदि हम अपनी कलाकृती को किफायती नहीं बनाते हैं, तो संभावना है कि चीन जैसे देश हमारे घरों में सस्ती पेंटिंग और मूर्तियां घुसा देगें।

    दृश्य और प्रदर्शन कला, मानव मस्तिष्क को विकसित करने और उच्च अभिरुचि विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। कला शिक्षा के माध्यम से, युवा कई कार्यों को, दूसरों की तुलना में अधिक आसानी से सीखने की क्षमता विकसित करते हैं। वे छात्रों और युवाओं को, उनके तनाव को प्रबंधित करने में भी मदद करते हैं।

    मेरा मानना है कि, कला, विज्ञान शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा, इंजीनियरिंग शिक्षा और यहां तक कि अन्य व्यावसायिक शिक्षा का भी एक अभिन्न अंग होनी चाहिए।

    मुझे ज्ञात किया गया है कि, महाराष्ट्र में 39 अनुदानित और 150 से अधिक प्रायवेट कला महाविद्यालय हैं। इन कॉलेजों में हजारों छात्र कला का अध्ययन करते हैं।

    हमारे कला महाविद्यालयों को सशक्त बनाने और उन्हें गतिशील केंद्र बनाने की आवश्यकता है। हमारे महाविद्यालयों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास किये जाने चाहिए। मैं सरकार से, हमारे कला संस्थानों में शिक्षकों के सभी रिक्त पदों को, भरने का आग्रह करूंगा।

    कला और शिल्प से लेकर डिजाइन, वास्तुकला, मनोरंजन और विज्ञापन, सामाजिक-आर्थिक प्रगति, नवाचार और रोजगार सृजन लाने के लिए है। हमें कला को, कलाकारों, और राष्ट्र के लिए, आय और धन सृजन के नजरिए से देखना होगा।

    रचनात्मक और सांस्कृतिक उद्योग (या औपचारिक भाषा में सीसीआई), अब विश्व अर्थव्यवस्था में, सबसे आकर्षक और सबसे तेजी से बढ़ते क्षेत्रों में से एक हैं।

    मैंने अप्रैल 2022 में यूनेस्को के लिए प्रकाशित ‘द क्रिएटिव इकोनॉमी’ नामक पेपर में पढ़ा कि रचनात्मक वस्तुओं का वैश्विक बाजार, विश्व अर्थव्यवस्था के सबसे तेजी से बढ़ते क्षेत्रों में से एक है, जो दुनिया भर में लगभग 30 मिलियन नौकरियां पैदा करता है।

    हमारे निजी क्षेत्र को कला, शिल्प, त्योहारों, विरासत, संगीत, प्रकाशन और फैशन में रचनात्मक और सांस्कृतिक उद्योगों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिये।

    यह प्रतिभाशाली कलाकारों को, इस पेशे से जुड़े रहने के लिए आकर्षित करेगा। भारत को इस अर्थव्यवस्था का लाभ उठाना चाहिए।

    न्यूयॉर्क शहर के ‘मेट गाला फैशन फेस्टिवल’ की तरह, मुंबई शहर को भी हमारी समृद्ध कलात्मक विविधता को प्रदर्शित करने वाले ‘मेट कला’ जैसे आयोजन के बारे में सोचना चाहिए। यह मुंबई को दुनिया के सांस्कृतिक मानचित्र पर लाएगा।

    समाप्त करने से पहले, मैं इस अद्भुत पुस्तक के लिए डॉ. गजानन शेपाल की सराहना करता हूँ। इस कार्यक्रम के आयोजन के लिए मराठी वृत्तपत्र लेखक संघ मुंबई को भी धन्यवाद देता हूं।

    जय हिंद। जय महाराष्ट्र।।